1 कार 5 हथियार हों तो रफ्तार की जंग जीतना मुश्किल नहीं है. रफ्तार की जंग जीतने का सबसे बड़ा हथियार है कार. हवा से बातें करती कार, सपने बुनती कार. तकनीक और डिज़ाइन के मामले में आप इन कारों की तुलना किसी लड़ाकू विमान से कर सकते हैं.
200 से 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार
ड्राइवर के बैठने के स्थान को कहते हैं कॉकपिट. इन कारों में भी फ्रंट और रीयर विंग्स होते हैं. टनों वजनी विमान को उड़ान भरने के लिए 270 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार की जरूरत होती है और ये कारें 200 से 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से रेस करती हैं. फॉर्मूला वन कारों में ट्विन ब्रेक हाइड्रॉलिक ब्रेकिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है. इसका दूसरा फायदा ये है कि एक सर्किट पूरी तरह फेल होने पर भी दूसरी सर्किट का ब्रेकिंग सिस्टम कायम रहता है. इन कारों का इंजन कॉम्पैक्ट होने से साथ ही हल्का और बेहद पॉवरफुल होता है.
एफ वन कारों के तमाम गैजेट स्टीयरिंग व्हील पर ही होते हैं. ड्राइवर की उगंलियों के सबसे नजदीक न्यूट्रल का बटन होता है, जो इमरजेंसी के वक्त कार को गियर से बाहर निकालने में मददगार होता है. इसके अलावा रेडियो सिस्टम से जुडा पुश टू टॉक बटन भी मौजूद होता है. स्टियरिंग व्हील के साथ ही एलसीडी डिस्प्ले स्क्रीन भी जुड़ा होता है, जिसमें अल्ट्रा लाइट सिंग्नल्स ड्राइवर को गियर चेंज करते वक्त बेहद मददगार होते हैं.
एक एफ-1 कार की कीमत 40 करोड़ रुपए
जीपीएस मार्शल सिस्टम के जरिए ड्राइवर अपनी टीम से जुड़ा रहता है जो उसे ट्रैक से जुड़ी तमाम जानकारी देती रहती है. अब आप ही बताइए इतनी टाईटैक कार की कीमत कम तो नहीं होगी, इसलिए चौंकने की बिल्कुल जरूरत नहीं कि. एक एफ-1 कार को बनाने में ख़र्च होते हैं करीब 40 करोड़ रुपए और फ़रारी, मर्सिडीज़ और रेड बुल जैसी टीमें तो हर साल करीब दो-दो सौ मिलियन डॉलर कारों पर खर्च करती हैं.
खतरों का खेल है फॉर्मूला वन
पिरेली, ये वो कंपनी है जिसके टायरों पर बुद्ध सर्किट पर ड्राइवर्स अपनी रफताऱ आज़माएंगे. टायरों ने साथ दिया तो हवा से बातें करके विरोधी को पीछे छोड़ना सितारों के लिए आसान हो जाएगा लेकिन एक बार गड़बड़ हुई तो ट्रैक से छुट्टी पक्की. हेलमेट, ग्लव्ज़, खास जूते और ऐसे कपड़े कि शरीर महफूज़ रहे. इसमें कोई शक नहीं फॉर्मूला वन खतरों का खेल है. एक चूक आखिरी गलती हो सकती है. ऐसे में ड्राइवर के शरीर पर सेफ्टी सूट ही मौत और ज़िंदगी का फैसला कर सकता है.
1.30 से 2 घंटे चलती है एफ-1 रेस
एक फॉर्मूला वन रेस करीब 1.30 से 2 घंटे चलती है और इस दौरान कॉकपिट में बैठा ड्राइवर शरीर से लगातार पसीना बहाता रहता है. 300 किमी की रफ्तार और कंट्रोल के लिए F1 ड्राइवर्स को शारीरिक और मानसिक तौर पर आम एथलीट से कहीं ज्यादा मजबूत होना पड़ता है.
आप भी जानना चाहते होंगे कि आखिर ऐसा क्या खास है इन ड्राइवर्स में जो इन्हें हवा से बातें करने लायक बनाता है. दरअसल रेसिंग जितनी आसान दिखती है, उतनी होती नहीं है. रेस के दौरान कार के कॉकपिट का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और ड्राइवर अपने शरीर का करीब 4 फ़ीसदी पानी पसीने में बहा देते हैं. यही वजह है कि एक रेस के बाद एक ड्राइवर का वज़न 3-4 किलो तक कम हो जाता है. जैसे जैसे रफ्तार बढ़ती है, ब्लड प्रेशर भी बढ़ता जाता है.
रेस के दौरान एक ड्राइवर का बीपी करीब 50 फ़ीसदी तक बढ़ जाता है. इसके साथ ही दिल की धड़कनें, एक मिनट में 60 बार से बढ़कर 150 से ज्यादा हो जाती हैं. गर्मी और शरीर में कम पानी से बचने के लिए ड्राइवर पूरी तैयारी करते हैं. रेस शुरू होने से पहले ड्राइवर करीब 6 लीटर पानी पीते हैं. प्यास ना लगी हो तब भी. इसके अलावा इनकी कार में लगी होती है एक टंकी जिसमें एनर्जी ड्रिंक भर दिया जाता है.
ड्राइवर की होती है स्पेशल ट्रेनिंग
हाईस्पीड पर रेसिंग के दौरान गर्दन और सीने पर पड़ने वाले दबाव से उबरने के लिए ड्राइवर की होती है स्पेशल फिजिकल और मेंटल ट्रेनिंग. साथ में रुटीन एक्सरसाइज और डाइट चार्ट को करना होता है फॉलो. क्योंकि जो फिट है, वही हिट है.
क्या आपको मालूम है कि एक टीम प्रैक्टिस से लेकर रेस तक एक साल में करीब 2 लाख लीटर फ्यूल इस्तेमाल करती है. पलक झपकते ही हवा हवाई होती इन रेसिंग कारों को देखकर आपको लगता होगा कि कहीं इनमें रॉकेट फ्यूल का इस्तेमाल तो नहीं होता. जी नहीं, बिल्कुल नहीं. ये कारें हवा से बातें तो जरूर करती हैं लेकिन इसमें इस्तेमाल होने वाला पेट्रोल आम गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले फ्यूल से काफी मिलता जुलता है.
सज चुका है बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट
रेसिंग कारों में इस्तेमाल वाला पेट्रोल कमर्शियल गैसोलिन के मिक्स की तरह होता है लेकिन इसमें खास तरीके के पावर बूस्टिंग केमिकल के इस्तेमाल की मनाही होती है. ये रेसिंग कार चंद सेंकड्स में हवा से बातें करती हैं ज़ाहिर है इनमें फ्यूल की खपत भी कम नहीं होगी. औसतन एक टीम प्रैक्टिस से लेकर रेस तक एक साल में करीब 2 लाख लीटर फ्यूल इस्तेमाल करती है. हालांकि अलग-अलग कंडिशन्स के लिए फ्यूल में खास तौर पर मिक्स डाला जाता है ताकि पेट्रोल की अधिकतम क्षमता का फायदा उठाया जा सके. खास गाड़ी, खास ईँधन तो इसके टैंक भी तो खास होने चाहिए. फ्यूल टैंक सिंगल रबर ब्लैडर का बना होता है. लेकिन इस्तेमाल से पहले इसपर एफआईए की मुहर जरूर लगनी चाहिए.