टीम इंडिया में पिछले कुछ महीनों से जिस तरह से सेलेक्शन और बैटिंग-ऑर्डर में एक्सपेरिमेंट दिखाई दे रहे हैं, उसने कई पूर्व खिलाड़ियों और विश्लेषकों को चिंतित किया है. सवाल यह नहीं है कि बदलाव क्यों किए जा रहे हैं, सवाल यह है कि क्या इन बदलावों के पीछे कोई क्लियर फॉर्मेशन, लॉन्ग टर्म प्लानिंग या स्टेबिलिटी का आधार है? क्या यह अनस्टैबिलिटी भारतीय टीम के प्रदर्शन पर वैसा ही प्रभाव डाल सकती है जैसा फॉर्मर कोच ग्रेग चैपल के दौर में देखने को मिला था?
यह विश्लेषण गौतम गंभीर और ग्रेग चैपल की तुलना को किसी भी तरह भावनात्मक रूप से नहीं जोड़ता. यहां फोकस सिर्फ उन तकनीकी संकेतों पर है जो बताते हैं कि अगर सेलेक्शन ऐसे ही चलता रहा तो जोखिम बढ़ सकता है.
1. सेलेक्शन में अचानक बदलाव: फॉर्म बनाम पसंद का सवाल
• भारत के हालिया ऑस्ट्रेलिया दौरे में कुछ फैसले एक्सपर्ट्स को चौंकाने वाले लगे.
• अर्शदीप सिंह की जगह हर्षित राणा को शामिल करना.
• ओपनिंग में अच्छा प्रदर्शन कर रहे संजू सैमसन को हटाकर शुभमन गिल को प्रमोट करना.
• एक ही फॉर्मेट खेलने वाले तिलक वर्मा को बिना वजह सीरीज खत्म होने से पहले ड्रॉप कर देना.
ये सभी फैसले टीम इंडिया को अस्थिर करने वाले माने जा रहे हैं, जिसके पीछे किसी भी ठोस तर्क का अभाव दिखता है. टी20 क्रिकेट में आत्मविश्वास का महत्व सबसे अधिक होता है. किसी खिलाड़ी को सीरीज के बीच में बिना ठोस कारण हटाना उसकी मेंटल स्ट्रेंथ को प्रभावित करता है और टीम के भीतर असुरक्षा पैदा करता है.
2. श्रेयस अय्यर और मोहम्मद शमी का केस
इस समय वनडे फॉर्मेट में भारत के सबसे भरोसेमंद खिलाड़ियों में से एक नाम है-श्रेयस अय्यर.
फिर भी वनडे टीम में उनकी गैरमौजूदगी पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई.
इसी तरह, मोहम्मद शमी, जिन्होंने रणजी ट्रॉफी के दो मैचों में 15 विकेट लेकर अपने फिटनेस और फॉर्म दोनों का सबूत दिया, लेकिन साउथ अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट स्क्वॉड में शामिल नहीं किए गए.
जब चयन से जुड़े फैसलों में पारदर्शिता कम हो जाए, तो टीम के भीतर संदेह बढ़ना स्वाभाविक है.
3. बैटिंग पोजीशन में लगातार प्रयोग: स्थिरता की कमी का संकेत
हैड कोच के तौर पर गंभीर की पहली टेस्ट सीरीज बांग्लादेश के खिलाफ पिछले साल सितंबर में रही थी.19 सितंबर 2024 से अब तक के आंकड़े देखें तो भारतीय टीम प्रबंधन ने-
• नंबर 3 पर 7 बल्लेबाज,
• नंबर 4 पर 7 बल्लेबाज,
• नंबर 5 पर 8 बल्लेबाज,
• नंबर 6 पर 9 बल्लेबाज उतारे हैं.
इससे साफ है कि टीम अभी भी अपनी कोर मिडिल-ऑर्डर फॉर्मेशन तय नहीं कर पाई है. मॉडर्न क्रिकेट में लगातार पोजीशन बदलने से खिलाड़ी का कॉन्फिडेंस गिरता है, क्योंकि किसी भी बल्लेबाज को अपने रोल की क्लियरिटी चाहिए, चाहे वह एंकर हो, फिनिशर हो या एग्रेसिव बैटर. बिना रोल-क्लियरिटी के टीम एक मैच जीत सकती है, लेकिन लॉन्ग टर्म में उसका बैलेंस बिगड़ सकता है.
4. पिछले अनुभवों से सबक: चैपल युग की गलतियां दोहराने का जोखिम
ग्रेग चैपल के कोचिंग दौर का सबसे बड़ा मुद्दा यही था. खिलाड़ियों की भूमिकाओं में लगातार बदलाव और चयन में अस्थिरता.
• इरफान पठान को ओपनिंग बैटिंग तक करा दी गई,
• खिलाड़ियों को बिना स्थिरता दिए लगातार अंदर-बाहर किया गया,
• टीम के भीतर एक ऐसा माहौल बना जहां किसी को नहीं पता था कि अगला मैच किसका आखिरी हो सकता है.
यह अस्थिरता अंत में भारत को 2007 वर्ल्ड कप के पहले राउंड से बाहर कर गई.
गंभीर पर आरोप नहीं, लेकिन पैटर्न जरूर देखने लायक हैं. टीम को स्थिरता चाहिए, लेकिन लगातार बदलते फैसलों की कीमत पर नहीं.
5. क्या मौजूदा पैटर्न लॉन्ग टर्म सक्सेस के लिए खतरनाक है?
कोच का काम सिर्फ खिलाड़ियों को बदलना नहीं है. दरअसल, उनके रोल को स्टेबल करना, उनका कॉन्फिडेंस बनाना और रिदम बनाए रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. अगर खिलाड़ी असुरक्षा में खेलेंगे और सेलेक्शन का तरीका क्लियर नहीं रहेगा साथ ही बैटिंग पोजीशन हर मैच में बदलती रहेगी, तो भारत जैसी बड़ी टीम भी अनसर्टेन रिजल्ट्स की ओर बढ़ सकती है.
भारत की मौजूदा स्थिति किसी संकट का संकेत नहीं देती, लेकिन चेतावनी जरूर देती है. कोच गौतम गंभीर के पास एक प्रतिभाशाली टीम है, जिसे स्टैबिलिटी और क्लियर फॉर्मेशन चाहिए.