
साल 1990. ये वो वक्त था जब देश में एक अलग तरह का उबाल चल रहा था. उत्तर भारत में राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर आंदोलन चलाया जा रहा था. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, जो उस वक्त गुजरात के सोमनाथ से लेकर उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाल रहे थे. माहौल हर दिन के साथ गरमा रहा था, क्योंकि रथ यात्रा के साथ-साथ सड़कों पर हज़ारों की भीड़ ‘कारसेवा’ करने के इरादे से आगे बढ़ रही थी और दिल्ली में बैठी सरकार की चिंताएं बढ़ रही थी.
जब पश्चिम और उत्तर भारत इस आंदोलन से डगमग हो रहा था. उसी दौरान राजनीति की इस दुनिया से अलग दक्षिण भारत में एक नया अध्याय लिखा जा रहा था. ये दुनिया क्रिकेट की थी, जहां कुछ ऐसा होने जा रहा था जो सिर्फ खेल नहीं बल्कि हिन्दुस्तानी समाज के नज़रिए को भी बदलने का माद्दा रखता था.
हैदराबाद के सिकंदराबाद में रहने वाले दोराई राज, जो भारतीय वायुसेना में काम करते थे. वायुसेना के लिए नौकरी करते हुए वो राजस्थान के जोधपुर से हैदराबाद में शिफ्ट हुए थे. दोराई राज, वायुसेना के अफसर थे यानी अनुशासन कूट-कूट कर भरा था. ऊपर से वह साउथ इंडियन भी थे, जो नियमों को दिल से मानते हैं. लेकिन अनुशासन से भरे दोराई राज के घर में एक ऐसी लड़की भी थी, जो इन बंधनों से परे थे.
ये वक्त 1990 का था, दोराई राज की बेटी मिताली राज उस वक्त सिर्फ 8 साल की थी. एक छोटी बच्ची, जिसे आपके और हमारी तरह नींद काफी प्यारी थी. और बस यही चाहती थी कि कोई उसे सुबह जल्दी ना उठाए. दोराई राज और उनकी पत्नी लीला राज भी बस यही सोचते थे कि बेटी के आलस को दूर कैसे करें, तब दोराई राज ने 8 साल की मिताली को क्रिकेट ग्राउंड ले जाना शुरू कर दिया. मिताली के भाई उस वक्त सिकंदराबाद के सेंट जॉन्स अकादमी में क्रिकेट की कोचिंग लिया करते थे.
पिता ने मिताली को भी साथ ले लिया, वह भी क्रिकेट खिलाने के लिए नहीं बल्कि आलस को दूर भगाने के लिए. तब मिताली का बस यही काम होता था कि वह ग्राउंड के बाहर बाउंड्री पर बैठकर अपने स्कूल के होमवर्क को पूरा करती थी. वहां अपने भाई और दूसरे लोगों को क्रिकेट खेलते हुए देखते रहती थी. जब होमवर्क खत्म हो जाता, भाई की कोचिंग भी पूरी हो जाती, तब 8 साल की मिताली भी ग्राउंड में घुसकर बैट उठा लेती और 8-10 बॉल खेलने लगती. ये सिर्फ एक छोटी लड़की का बचपना था, लेकिन सेंट जॉन्स अकादमी के कोच ज्योति प्रसाद को कुछ अलग ही नज़र आया.
ज्योति प्रसाद, जो खुद फर्स्ट क्लास क्रिकेटर रह चुके थे और अपने नाम के आगे 100 से ज्यादा विकेट दर्ज कराए हुए थे. उन्होंने मिताली राज के पिता दोराई से बात की और बेटी के खेलने के तरीके पर गंभीरता से सोचने को कह दिया. आलस दूर करने के बहाने क्रिकेट के मैदान पर ले जाई गईं मिताली राज ने उस वक्त जो कैजुअली 8-10 बॉल खेलीं, उसने हिन्दुस्तान में महिला क्रिकेट का इतिहास और आने वाली कई पीढ़ियों को बदलकर रख दिया.
सीधा शॉट ना खेलने पर जब पड़ती थी छड़ी
ज्योति प्रसाद की सलाह को मिताली राज के पिता दोराई राज ने काफी गंभीरता से ले लिया. 9 साल की मिताली राज की तब असली क्रिकेट ट्रेनिंग शुरू हुई. दोराई राज अपनी बेटी को संपत कुमार के पास ले गए, जो उस वक्त हैदराबाद में क्रिकेट ट्रेनिंग दिया करते थे. संपत ने मिताली को बैटिंग करते देखा और बस फिर क्या दोराई राज और उनकी पत्नी से कसम खिलवा ली. 9 साल की मिताली की बैटिंग देखकर संपत कुमार इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दोराई राज से कहा कि वह पूरी तरह से बेटी को क्रिकेट के लिए सौंप दें, पढ़ाई वगैरह सब चलता रहेगा. ऐसा हुआ तो सिर्फ 14-15 साल की उम्र में मिताली इंडिया के लिए खेल सकती है.
संपत की बातें सुनकर तब दोराई राज, लीला को हंसी ज़रूर आई होगी. लेकिन उन्होंने मिताली को क्रिकेट पर फोकस करने के लिए तैयार कर दिया. बस फिर क्या था, संपत कुमार की अगुवाई में मिताली राज की ट्रेनिंग शुरू हो गई. एक इंटरव्यू में मिताली राज उन दिनों की ट्रेनिंग पर बात भी कर चुकी हैं, जहां उन्होंने कहा, ‘तब क्रिकेट ट्रेनिंग के चक्कर में मुझे भरतनाट्यम छोड़ना पड़ा था, मुझे डांस काफी प्यारा था. लेकिन क्रिकेट के चक्कर में वह चला गया, तब मेरी ट्रेनिंग एक रेस के घोड़े की तरह हुई. क्योंकि मुझे इधर-उधर नहीं बल्कि सीधा ही देखना था. स्कूल के कॉरिडोर में संपत सर ट्रेनिंग करवाते थे, ताकि बल्ले से सीधे शॉट निकलें. अगर बॉल दीवार पर लग जाती थी, तो छड़ी भी पड़ती थी. बॉल हमेशा मिडिल पर टच हो, इसके लिए हम स्टंप से बैटिंग करते थे.’
मिताली राज की ये तपस्या सफल हुई और वह 13 साल की उम्र में आंध्र प्रदेश की सीनियर टीम में शामिल हो गई थीं. 1997 में होने वाले वर्ल्डकप के कैंप में जब मिताली राज का सिलेक्शन हुआ, तभी कोच संपत कुमार की एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. मिताली राज के लिए ये बड़ा झटका था, क्योंकि पिछले चार-पांच साल से जिससे इतना क्रिकेट सीखा सबसे बड़े मौके पर वही दुनिया छोड़कर चला गया. मिताली बिल्कुल शांत हो गईं, इसके तुरंत बाद भी झटका लगा जब वर्ल्डकप की टीम में मिताली का नाम ही नहीं आया. ये सबकुछ 14-15 साल की एक लड़की के साथ हो रहा था.

...जब मिस हुआ 15 की उम्र में वर्ल्डकप खेलने का मौका
मिताली राज की ज़िंदगी में क्रिकेट से जुड़ा ये पहला चैप्टर था, जो अभी सिर्फ शुरू ही हुआ था. इसका एक बड़ा पड़ाव कुछ ही साल बाद यानी 1997 में आया. तबतक मिताली राज प्रोफेशनल क्रिकेट में आगे बढ़ चुकी थीं और महिला क्रिकेट में डोमेस्टिक लेवल पर उनकी बल्लेबाजी की चर्चा होने लगी थी. यही वो वक्त था जब भारत को 1997 में महिला वर्ल्डकप का आयोजन करना था.
साल 1997 का महिला वर्ल्डकप भी ऐतिहासिक था, पहली बार करीब 11 देशों की टीमें इस बड़े टूर्नामेंट में हिस्सा ले रही थीं. देश के कुल 25 ग्राउंड पर मैच खेले गए थे, जिसका फाइनल कोलकाता में खेला गया. जब ये वर्ल्डकप हुआ तब मिताली राज की उम्र सिर्फ 15 साल ही थी, लेकिन इतनी कम उम्र में भी उम्मीद लगाई जा रही थी कि उनका भारत की वर्ल्डकप टीम में चयन हो सकता है. लेकिन उम्मीद के हिसाब से ही सबकुछ नहीं होता है, इसलिए मिताली का चयन भी नहीं हुआ. टीम इंडिया इस वर्ल्डकप के सेमीफाइनल तक पहुंची, सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने टीम इंडिया को हरा दिया था और सफर खत्म हुआ.
मिताली का वो यादगार डेब्यू...
खैर, 15 साल की मिताली राज भले ही उस वक्त टीम में ना आ सकी हो लेकिन दो साल बाद यानी 1999 में मिताली राज को भारतीय टीम का बुलावा आ ही गया. भारत की महिला क्रिकेट टीम ने 1997 के वर्ल्डकप सेमीफाइनल में हार के बाद से कोई मैच नहीं खेला था, 1999 में आयरलैंड के खिलाफ महिला टीम का मैच हुआ. 17 साल की मिताली राज इस मैच में डेब्यू कर रही थीं. सिर्फ मिताली राज ही नहीं बल्कि उस मैच में टीम इंडिया की ओर से कुल चार खिलाड़ियों ने डेब्यू किया, कमाल की बात ये है कि डेब्यू करने वाली दो खिलाड़ियों ने शतक ठोक दिया था.
आयरलैंड के खिलाफ खेले गए उस मैच में टीम इंडिया की पहले बैटिंग थी और ओपनिंग करने 17 साल की मिताली राज आई थीं. मिताली के साथ रेशमा गांधी आईं, दोनों के बीच गज़ब की साझेदारी हुई. टीम इंडिया के लिए पहला मुकाबला खेल रहीं दोनों बल्लेबाजों ने रनों की बौछार लगा दी, मानो ये लंबे वक्त से सिर्फ रन बनाने का काम ही कर रही हो. टीम इंडिया ने उस मैच में एक भी विकेट नहीं गंवाया, 50 ओवर में 258 का स्कोर बन गया था. 17 साल की मिताली ने 114, रेशमा गांधी ने 104 रन बनाए. भारत मैच जीत गया था, लेकिन महिला क्रिकेट में एक नए अध्याय की शुरुआत हो गई थी. खैर, दिलचस्प बात ये भी है कि डेब्यू पर शतक जमाने वाली मिताली तब से अबतक क्रिकेट खेल रही हैं, लेकिन उनके जैसा ही कमाल करने वाली रेशमा गांधी अपने करियर में सिर्फ दो ही मैच खेल पाईं, वो भी उसी दौरे पर खेले गए थे.
वनडे क्रिकेट में डेब्यू से अलग मिताली राज के लिए टेस्ट मैच का डेब्यू याद करने वाला नहीं है. वनडे टीम में आने के तीन साल बाद ही मिताली राज को 2002 में टेस्ट टीम में बुला लिया गया, लखनऊ में तब टीम इंडिया इंग्लैंड के खिलाफ मैच खेल रही थी. लेकिन मिताली अपने टेस्ट करियर की पहली ही पारी में ज़ीरो पर आउट हो गईं, लेकिन पिछले दो-तीन साल में मिताली इतना बड़ा नाम हो गई थीं कि तुरंत तो उनकी जगह पर कोई संकट नहीं आने वाला था. मिताली ने करियर के दूसरे टेस्ट में फिफ्टी जड़ दी और तीसरे टेस्ट में तो कमाल ही हो गया.
अगस्त का महीना, साल 2002. टीम इंडिया इंग्लैंड के समरसेट में टेस्ट मैच खेल रही थी. इंग्लैंड की टीम ने पहले बैटिंग की और 367 का बड़ा स्कोर बना दिया. इंग्लैंड की कंडीशन में पहली पारी में इतना स्कोर बाहरी टीम पर दबाव बनाने के लिए काफी था. टीम इंडिया की बैटिंग आई, तो 2 रन पर ही विकेट गिर गया, इंग्लिश कंडीशन में शुरुआती ओवर को झेलना तब से लेकर अबतक सबसे बड़ी चुनौती रहता ही है. तब की कप्तान अंजुम चोपड़ा ने उस पारी में अर्धशतक जड़ा, लेकिन चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने के लिए आईं मिताली राज.
उम्र 20 साल और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आए हुए सिर्फ 3 साल. इंग्लैंड की कंडीशन में तब मिताली राज ने शानदार बैटिंग की, मानो क्रिकेट की किताब में लिखी हर तकनीक उस वक्त बल्लेबाजी में झलक रही हो. मिताली राज खेलती रहीं, खेलती रहीं और सिर्फ खेलती ही रहीं. 598 मिनट तक खेली गई उस पारी में मिताली ने 407 बॉल खेलीं (यानी 67 ओवर से ज्यादा) और 214 का स्कोर बना दिया. उस वक्त महिला टेस्ट क्रिकेट में ये किसी भी बल्लेबाज द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा स्कोर था. इतनी बड़ी पारी में मिताली ने सिर्फ 19 चौके मारे. ये वो पारी थी जिसने दुनिया को बता दिया कि मिताली कोई साधारण क्रिकेटर (महिला या पुरुष क्रिकेट में) नहीं हैं, 20 साल की युवा ने ऐसा टेंप्रामेंट दिखाया जिसने हर किसी को हैरान कर दिया.

2005 का वर्ल्डकप और मिताली राज
साल 1999 में डेब्यू करने वालीं मिताली राज शुरुआती चार-पांच साल में ही बड़ा नाम बन गई थीं. साल 2003 वो वक्त था जब मिताली राज के बिना प्लेइंग-11 की कल्पना होना मुश्किल हो गया था, उसी दौर में ऐसा लगा कि मिताली राज़ कप्तान बन सकती हैं. ऐसा हुआ भी मिताली राज को कुछ वक्त बाद कप्तानी का ऑफर आया, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया. ये सोचकर भी मुश्किल लगता है कि भारतीय टीम की कप्तानी करने का ऑफर कोई कैसे ठुकरा सकता है, लेकिन मिताली राज ने यही किया और उनके लिए ये काफी फायदेमंद रहा. मिताली राज ने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र किया था कि अगर उन्होंने तब उसके लिए ना नहीं कहा होता, तो 2005 में वो जैसी कप्तान थीं वैसा बिल्कुल नहीं हो पाता. मिताली राज की कप्तानी में टीम इंडिया ने 2005 के वर्ल्डकप में कदम रखा और यहां ही इतिहास रचा गया.
टीम इंडिया का पहला मुकाबला तो बारिश की वजह से धुल गया था, लेकिन उसके बाद के तीन मैच में भारत की जीत हुई. मिताली राज की अगुवाई में भारत ने आयरलैंड, साउथ अफ्रीका और फिर इंग्लैंड को मात दी. लेकिन अगले मैच में ही न्यूजीलैंड की टीम ने भारत को हरा दिया. हालांकि, भारत के सेमीफाइनल में पहुंचने की उम्मीद अभी भी ज़िंदा थी और ऐसे में भारत ने अगले मैच में वेस्टइंडीज़ को हराया, फिर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाला मैच रद्द हो गया. किस्मत का खेल पलटा और टीम इंडिया सेमीफाइनल में पहुंच गई.
ग्रुप स्टेज में भारत ने सिर्फ एक ही मैच हारा, वो भी न्यूजीलैंड के खिलाफ. अब सेमीफाइनल में टीम इंडिया का मुकाबला उसी न्यूज़ीलैंड के साथ था. सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड ने टॉस जीता, पहले बॉलिंग चुनी. दिन के मैच में टीम इंडिया की बैटिंग आई और आते ही झटके लगने शुरू हो गए. स्कोर 38 पर दो हो चुका था, जब मिताली राज की क्रीज़ पर एंट्री हुई. कप्तान मिताली राज़ और पूर्व कप्तान अंजुम चोपड़ा ने साझेदारी की शुरुआत की, टीम इंडिया का स्कोर 100 के पार पहुंचाया.
मिताली राज ने कंडीशन के हिसाब से काफी तेज़ पारी खेली और 91 रनों पर नाबाद रहीं. अंजुम चोपड़ा के आउट होने के बाद कोई बड़ी साझेदारी नहीं कर पाया, ऐसे में मिताली की पारी ही टीम इंडिया के लिए एक संजीवनी थी. मिताली राज के दो दशक के करियर में ना जाने ऐसी कितनी पारियां आईं, जहां वो टीम को अकेले ही संकट से उबार रही थीं या जहां हर कोई फेल हो रहा था सिर्फ वहीं रन बना रही थीं. न्यूजीलैंड के खिलाफ खेली गई 91 रनों की पारी को मिताली राज अब भी अपनी सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक मानती हैं. टीम इंडिया अंत में न्यूजीलैंड के खिलाफ जीत गई और फाइनल में उसका मुकाबला ऑस्ट्रेलिया से हुआ था.
साल 2003 में जैसा पुरुषों को क्रिकेट में हुआ कि नए कप्तान की अगुवाई में भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन किया, फिर वर्ल्डकप के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से मुकाबला हुआ और भारतीय टीम की बल्लेबाजी बिखर गई और सपना टूट गया. मानो उसी का रिप्ले वुमेंस क्रिकेट में साल 2005 में देखने को मिला, जहां टीम इंडिया फाइनल में पहुंची और ऑस्ट्रेलिया के सामने पूरी तरङ फेल हो गई. दोनों ही वर्ल्डकप साउथ अफ्रीका में खेले गए थे, दोनों ही जगह फाइनल में टीम इंडिया की बल्लेबाजी नाकाम थीं. 2005 के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने 216 का टारगेट दिया था, टीम इंडिया 117 पर ऑलआउट हो गई. मिताली राज भी सिर्फ 6 रन ही बना पाईं. वर्ल्डकप जीतना रह गया, लेकिन टीम इंडिया के प्रदर्शन की हर जगह वाहवाही हुई.
क्रिकेट से लेकर किताब-कथक से प्यार
साल 2017. एक और महिला क्रिकेट वर्ल्डकप, टीम इंडिया का पहला मुकाबला खेला जा रहा था. भारत और इंग्लैंड की टीमें आमने-सामने थीं, टीम इंडिया के ओपनर्स बल्लेबाजी कर रहे थे. अगला नंबर मिताली राज का था, लेकिन जैसे ही कैमरे की नज़र पवेलियन के आसपास गई तब मिताली राज पैड-अप, बल्ला कुर्सी के बगल में रखकर एक किताब पढ़ रही थीं. यानी वर्ल्ड कप चल रहा हो, आप एक टीम की कप्तान हो और बैटिंग करने का अगला नंबर आपका ही हो, तो सोचा जा सकता है कि कितना प्रेशर होगा लेकिन मिताली राज आराम से किताब (Essential Rumi, उस किताब का नाम) पढ़ रही थीं.
उस मैच में स्मृति मंधाना, पूनम राउत की पार्टनरशिप भी लंबी चली थी, दोनों ने एक साथ 144 रन जोड़े थे. ऐसे में मिताली राज का किताब निकालना भी सफल हो गया, कुछ वक्त बाद जब मिताली बैटिंग करने गईं तब उन्होंने शानदार 71 रनों की पारी खेली. तब मिताली की ये लगातार सातवीं फिफ्टी थी. इसके बाद टीम इंडिया का अगला मैच वेस्टइंडीज़ के साथ था और तब भी मिताली का यही अंदाज़ सबके सामने आया था.
मिताली राज खुद बताती हैं कि बैटिंग करने का नंबर जब आने वाला होता है, तब काफी प्रेशर होता है. ऐसे में किताब पढ़ने से गेम का सारा प्रेशर हट जाता है, वह खुद इस दौरान साथी खिलाड़ियों के साथ किताब की अच्छी बातें शेयर भी करती रहती हैं. क से किताब के अलावा मिताली को क से कथक से भी प्रेम है.
मिताली राज ने करीब आठ साल कथक सीखा, जब 9 साल की उम्र में क्रिकेट की असली कोचिंग शुरू हुई तब भी मिताली राज कथक ही सीख रही थीं. तब उन्हें डांस छोड़ना पड़ा और क्रिकेट में अपनी लगन लगानी पड़ी. मिताली खुद को अभी भी एक डांसर सुनना पसंद करती हैं, क्योंकि वही उनका पहला पैशन भी था, लेकिन क्रिकेट को लेकर चीज़ें इतना सीरियस हो चुकी थीं कि उससे अलग कुछ सोचा ही नहीं गया.

मिताली राज- द फाइटर...
21वीं सदी का 21वां साल चल रहा है, आधुनिक देश बनने की ओर कदम भी बढ़ चुके हैं. चीज़ें बदलना शुरू हुई हैं, लेकिन अभी भी कई फील्ड में महिलाओं का आगे बढ़ना मुश्किल है. क्रिकेट के फील्ड में भी ये आसान नहीं है, लेकिन नई पीढ़ी के लिए मिताली राज एक उम्मीद है. पिछले दो दशक से मिताली राज फील्ड पर हैं, अभी भी खेल रही हैं. मेंस क्रिकेट में जो रुतबा सचिन तेंदुलकर का है, वही वुमेंस क्रिकेट में मिताली राज का है. आंकड़ों को देखेंगे तो कई मायनों में मिताली मेंस क्रिकेटर्स को भी पीछे छोड़ देंगी, लेकिन वो अलग चर्चा का विषय है. तमाम दुश्वारियों के बीच आज जब वुमेंस क्रिकेट ऊंचाइयों की ओर जा रहा है, उसमें अहम योगदान मिताली राज का भी है.
मिताली राज ने लड़कियों की एक पूरी पीढ़ी को तैयार किया है, जो क्रिकेट खेल रही हैं और खेलना चाहती हैं. कई ऐसी भी हैं, जो अभी टीम इंडिया का हिस्सा हैं और मिताली राज को ही अपना हीरो मानती हैं. दो दशक का क्रिकेट करियर किसी भी खिलाड़ी के लिए मुश्किल होता है, लेकिन मिताली राज ने अभी तक इस मुश्किल को पार किया है.
एक बार एक पत्रकार ने मिताली राज से सवाल किया कि उनका पसंदीदा मेंस क्रिकेटर कौन-सा है. तब मिताली का जवाब कुछ ऐसा था कि वर्किंग कल्चर, सोसाइटी की सोच और भी कई दुश्वारियों को तोड़ता है. मिताली राज ने पत्रकार से साफ कहा कि क्या यही सवाल आप किसी पुरुष क्रिकेटर से पूछते हैं कि उनकी फेवरेट वुमेन क्रिकेटर कौन है?
ऐसा ही एक किस्सा और भी है, जहां मिताली राज का एक सवाल उनके फाइटर होने पर मुहर लगाता है. साल 2017 की बात है, जब मिताली राज ने एक तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की थी. तस्वीर में वेदा कृष्णमूर्ति, ममता मेबन, नूशीन अल खदीर भी मौजूद थीं. इसी फोटो पर एक यूज़र ने कमेंट किया कि मिताली की बगल से पसीना निकल रहा है, बस फिर क्या था. फाइटर मिताली ने ऐसा जवाब दिया कि बोलती ही बंद कर दी.
मिताली राज का जवाब था, ‘मैं जहां हूं. क्योंकि इसके लिए मैंने मैदान पर बहुत पसीना बहाया है. इसमें शर्मिंदा होने का मुझे कोई कारण नहीं दिखाई देता.' इस जवाब पर तालियां भी बजीं और तब की कैप्टन मिताली को लोगों ने सैल्यूट भी किया. इस जवाब में वो आत्मविश्वास था, जिसने दो दशक में क्रिकेट के मैदान पर अपने हुनर से समाज में चली आ रही कई दुश्वारियों को तोड़ा है.
3 दिसंबर को मिताली राज का जन्मदिन होता है.