
भारत को पहला वर्ल्डकप जिताने वाले कप्तान और महान क्रिकेटर कपिल देव जब 1975 में मुंबई के एक मैदान पर अंडर-19 कैंप में हिस्सा लेने आए थे, तब उन्होंने खिलाड़ियों को मिलने वाली कम डाइट की शिकायत की थी. 16 साल के कपिल देव ने BCCI के सेक्रेटरी केकी तारापोर से शिकायत की थी कि वह एक तेज़ गेंदबाज़ हैं, ऐसे में उन्हें ज्यादा खाना चाहिए. तब उन्हें जवाब मिला था कि इस देश में एक भी तेज़ गेंदबाज नहीं है.
यही सही भी था क्योंकि एक वक्त था जब भारतीय क्रिकेट टीम की गेंदबाजी की पहचान सिर्फ स्पिनर्स के साथ होती थी. 1960 से 1970 के दशक में टीम इंडिया के पास एक ऐसी चौकड़ी थी, जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. ईरापली प्रसन्ना (189 विकेट), श्रीनिवास वेंकटराघवन (156), भगवत चंद्रशेखर (242) और बिशन सिंह बेदी (266). इन चारों स्पिनर्स की चौकड़ी भारतीय पिचों पर तबाही मचा देती थी.
भारतीय पिचों के अलावा बाहर की पिचों पर भी चारों ने कई ऐसे स्पेल फेंके थे, जिन्होंने इतिहास रचा है. यही कारण है कि चार स्पिनर्स ने आपस में कुल 853 विकेट्स लिए थे. आजादी के बाद अपने पैरों पर खड़ा हो रहे भारतीय क्रिकेट का वो स्वर्णिम काल था. इस पुराने इतिहास के बाद भी अगर आप देखें तो आजतक भारत से स्पिनर्स ही निकले हैं. अनिल कुंबले, हरभजन सिंह, रविचंद्रन अश्विन सबसे अधिक विकेट लेने गेंदबाजों में से भी एक हैं.
भारत के पहले तेज गेंदबाज अमर सिंह और मोहम्मद निसार
दरअसल, इसके पीछे का एक कारण भी बताया जाता है. साल 1932 में जब भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच खेला था तब टीम इंडिया के पास दो तेज़ गेंदबाज थे. अमर सिंह और मोहम्मद निसार, दोनों 6 फीट लंबे-तगड़े चौड़े गेंदबाज, जो पूरी ताकत के साथ बॉल फेंकते थे. दोनों ने भारत के लिए क्रमश: 7 और 6 टेस्ट मैच खेले, निसार ने 25 विकेट लिए और अमर सिंह ने 28. लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में दोनों के नाम सैकड़ों विकेट हैं.

हालांकि, तब भारत ने क्रिकेट खेलना शुरू ही किया था और इंग्लैंड के भरोसे ही कुछ मैच खेलने को मिलते थे. लेकिन जब भारत का बंटवारा हुआ तब मोहम्मद निसार पाकिस्तान चले गए. बंटवारे का असर ये भी हुआ कि पंजाब से आने वाले भारी शरीर वाले पठान गेंदबाज पूरी तरह से पाकिस्तान में चले गए, इसीलिए पाकिस्तान के पास तेज गेंदबाजों की फेहरिस्त आपको मिल जाएंगे.
कपिल देव ने बदली भारतीय तेज गेंदबाजी की तस्वीर
वहीं आजादी के बाद टीम में भी काफी बदलाव हुए, लेकिन पहली टेस्ट जीत हो या फिर पहली विदेशी जीत भारत हमेशा स्पिनर्स पर ही निर्भर रहा था. जबतक भारत को कपिल देव (434 विकेट) जैसा ऑलराउंडर नहीं मिला था, जो हरियाणा के गांव से आया और भारी शरीर के साथ तेज़ गेंद फेंकता था.
कपिल देव के दौर के साथ मदनलाल जैसे बॉलर्स भी देश को मिलते गए. उसके आगे के दौर को देखें तो जवागल श्रीनाथ, वेंकटेश प्रसाद, अजित अगरकर, जहीर खान जैसे नाम आपको मिलते हैं, जिन्होंने बतौर तेज गेंदबाज ऐसी छाप छोड़ी जो लंबे वक्त तक याद रखी जाती है. जहीर खान तो अपने करियर के अंतिम पड़ाव में काफी खतरनाक गेंदबाज साबित हुए थे.
हालांकि, इस लंबे दौर में ऐसा वक्त कभी नहीं आया जब विरोधी टीमें भारतीय तेज गेंदबाजी से खौफ खाएं. सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी जैसी कप्तान भी तेज गेंदबाजों की तलाश में रहते थे जो आपको विदेशी पिचों पर मदद दिलाए और बल्लेबाजों को परेशान कर पाए, लेकिन तब भी अनिल कुंबले, हरभजन सिंह, प्रज्ञान ओझा जैसे स्पिनर्स से उम्मीद ज्यादा होती थी.

2010 के बाद टीम इंडिया की बादशाहत
लेकिन पिछले एक दशक और खासकर पिछले पांच साल के दौर को देखें तो भारतीय तेज गेंदबाजी की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है. अब टीम इंडिया के पास बेहद तेज बॉल डालने वाले बॉलर्स हैं तो स्विंग के जादूगर भी हैं. नई बॉल, पुरानी बॉल के स्पेशलिस्ट गेंदबाज भी हैं जो नई बॉल के साथ खेलते हैं तो पुरानी के साथ रिवर्स स्विंग कराते हैं.
ईशांत शर्मा, प्रवीण कुमार, भुवनेश्वर कुमार से शुरू हुआ ये सिलसिला अब मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज, जसप्रीत बुमराह, उमेश यादव, शार्दुल ठाकुर तक पहुंच गया है. भारत के अलावा साउथ अफ्रीका, फिर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में पिछले 4-5 साल में ऐसे कई मौके आए हैं, जब भारतीय टीम ने सिर्फ तेज गेंदबाजों के दम पर जीत दर्ज की है.
कप्तान विराट कोहली ने भर दिया नया जोश
2013 में मोहम्मद शमी की वेस्टइंडीज़ के खिलाफ रिवर्स गेंदबाजी हो, 2014 का लॉर्ड्स में ईशांत शर्मा का 7 विकेट का मैच विनिंग स्पेल, ऑस्ट्रेलिया में जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज का तूफान हो या फिर अब इंग्लैंड में तेज गेंदबाजों की चौकड़ी की ताकत हो. ऐसा मुश्किल ही हुआ है कि भारतीय टीम चार तेज गेंदबाजों के साथ खेल रही हो और एक 400 से अधिक विकेट ले चुके स्पिनर को बाहर बैठाना पड़ रहा हो.

2014 से भारतीय टेस्ट टीम की कप्तानी कर रहे कप्तान विराट कोहली को भी इसका श्रेय जाता है. जिन्होंने टीम इंडिया में फिटनेस का जोश फूंका, इसके साथ ही कभी हार ना मानने वाली अप्रोच, विरोधी टीम को उसी की भाषा में जवाब देना और आक्रामक रवैया अपनाने की आदत को सिखाया. ये सभी वो प्वाइंट्स हैं जो किसी भी तेज गेंदबाज को पसंद आते हैं. तभी टेस्ट मैच में चौका पड़ने की अगली ही गेंद पर कोई भी फास्ट बॉलर बल्लेबाज को सीधा बाउंसर ही मारता है.
लंदन के ओवल में इंग्लैंड की करारी हार के बाद इंग्लैंड के पूर्व तेज गेंदबाज स्टीव हार्मिसन ने बिल्कुल सटीक बात कही. ‘विराट कोहली की ये टीम 2000 के दौर वाली ऑस्ट्रेलिया की याद दिलाती है’.