
साल 2003. क्रिकेट के मैदान पर हमें एक ऐसा ज़ख्म मिला था जो आज भी सालता है. उस मैच को याद करने से हर कोई बचता है. न जाने कितने भारतीय दिल एक साथ टूटे थे. ये मैच था जोहांसबर्ग में खेला गया वर्ल्ड कप फ़ाइनल, जिसमें इंडिया और ऑस्ट्रेलिया की टीमें आमने सामने थीं. ये वो समय था जब हर मौके पर भारत दूसरे नंबर की टीम बनकर रुक जा रहा था और ऑस्ट्रेलिया लगभग हर बार ख़िताब ले जाती थी. और यहीं से शुरू हुई 21वीं सदी की एक नयी राइवलरी - इंडिया बनाम ऑस्ट्रेलिया. दोनों ही टीमों में दिग्गज भरे हुए थे और दोनों ही टीमों में नये लड़के भी आ रहे थे. लिहाज़ा दोनों ही टीमों के बाद अनुभव और नये जोश का अच्छा बैलेंस था. और ऐसे में हमें गेंद-बल्ले और मुंह, दोनों के कड़े मुकाबले देखने को मिले.
इन्हीं मुक़ाबलों में से एक हुआ सिडनी में. साल 2008. ये टेस्ट मैच ग़लत वजहों से ख़बरों में रहा और क्रिकेट के कीड़े आज भी बड़े चाव से इसे याद करते हैं. इस टेस्ट में हुई घटनाओं के चलते न्यूज़ीलैंड से एक जज को बुलाकर मामले की सुनवाई करनी पड़ी और इसका एक खिलाड़ी पर ऐसा असर पड़ा कि वो शराब की शरण में जा पहुंचा. वो खिलाड़ी इस घटना को अपने करियर ख़तम होने की वजह बताता है. ये है वो टेस्ट मैच जिसे मंकीगेट के लिये जाना जाता है. ये टेस्ट मैच 6 जनवरी 2008 को ख़तम हुआ था और 7 जनवरी को, हमें इस मैच के बाद क्रिकेट के भद्रजनों द्वारा लिये गए फ़ैसलों के बारे में जानकारी मिली थी. उसके बाद जो हुआ, उसने बदलते वर्ल्ड क्रिकेट की तस्दीक की.
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लेकिन उस मैच की कहानी से पहले चलेंगे अप्रैल 2000 में. जगह बेंगलुरु. रणजी ट्रॉफी का सेमी फ़ाइनल खेला जा रहा था. मैच था हैदराबाद और मैसूर के बीच. हैदराबाद ने पहले बैटिंग करनी शुरू की और पहला विकेट गिरने के बाद खेलने के लिए आये वंगिपुरप्पु वेंकट साई लक्ष्मण. थोड़ी देर में हैदराबाद का दूसरा विकेट भी गिरा और मामला कुछ यूं बना कि इस देश की दो सबसे कीमती कलाइयां, एक साथ अपना जलवा दिखा रही थीं. क्यूंकि दूसरा विकेट गिरने के बाद लक्ष्मण का साथ देने के लिये आये, मोहम्मद अज़हरूद्दीन. इन दोनों ने कर्नाटक की टीम को ख़ूब दौड़ाया. दोनों ने 288 रनों की पार्टनरशिप बनाई. अज़हर ने सेंचुरी मारी और 123 रन पर आउट हो गये.
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ये थी पहले दिन की कहानी. दूसरा दिन, यानी, 12 अप्रैल 2000. दिन का खेल ख़तम हो गया लेकिन लक्ष्मण का पेट्रोल अभी भी ख़तम नहीं हुआ था. वो 346 रनों पर खेल रहे थे. और ऐसा करने के साथ ही वो पहले ऐसे बल्लेबाज़ बन गये थे, जिसने एक ही रणजी सीज़न में दो-दो ट्रिपल सेंचुरी मारी थीं. इस सीज़न में वो अपनी फ़ॉर्म के चरम पर थे. सीज़न में खेले 10 डोमेस्टिक फ़र्स्ट क्लास मैचों में उन्होंने 10 सेंचुरी मारी थीं. जैसा कि मैंने बताया कि ये मैच बेंगलुरु में हो रहा था. लेकिन लक्ष्मण के शहर हैदराबाद में एक डॉक्टर कुलबुला रहा था. वो डॉक्टर भी था, जैज़ म्यूज़िक का शौक़ीन और एक अच्छा ड्रमर भी. इसके साथ एक फ़न उसे और आता था – बल्लेबाज़ी. वो कुलबुला रहा था लक्ष्मण की बल्लेबाज़ी देखने के लिये. उसे मालूम पड़ चुका था कि वीवीएस लक्ष्मण, उसके ही शहर का खिलाड़ी, अगले दिन भारतीय फ़र्स्ट क्लास के सबसे बड़े पर्सनल स्कोर का रिकॉर्ड तोड़ सकता है. ये रिकॉर्ड था भाऊसाहब निम्बलकर के पार. उन्होंने एक पारी में 443 रन बनाये थे. लेकिन इन 443 रनों के पहले एक छोटा सा आंकड़ा और आता था. 366 रनों का. और ये 366 रन उसी डॉक्टर ने बनाये थे जो शाम से ही लक्ष्मण के स्कोर पर ध्यान लगाये हुआ था. इस डॉक्टर का नाम था एमवी श्रीधर. वो बेहद ख़ुश थे. इस बात को लेकर कि उनका रिकॉर्ड कोई हैदराबादी ही तोड़ने वाला था. वो बस इतना ही चाहते थे कि अगले दिन जब लक्ष्मण उनका रिकॉर्ड तोड़े तो वो मैदान में मौजूद हों. श्रीधर ने अपनी गाड़ी निकाली और बेंगलुरु के लिए निकल पड़े. लगभग 600 किलोमीटर का सफ़र तय किया और अगली सुबह कर्नाटका क्रिकेट असोसिएशन के स्टेडियम में जाकर खड़े हो गए. लक्ष्मण बैटिंग करने उतरे और लेकिन श्रीधर का रिकॉर्ड नहीं टूटा. वीवीएस लक्ष्मण उस दिन 353 रन बनाकर आउट हुए.
लक्ष्मण के मन में श्रीधर के लिये कितना प्यार था, ये बात ऐसे पता लगती है कि 2017 में एम्वी श्रीधर की मौत के बाद उन पर एक किताब लिखी गयी – रेनीज़ां मैन. इस किताब के इंट्रो में वीवीएस लक्ष्मण ने लिखा – “मैं उस रोज़ श्रीधर के रिकॉर्ड को तोड़ नहीं पाया. मुझे लगता है कि ये सही ही रहा कि वो रिकॉर्ड उनके नाम ही रहा.”
असल में, एमवी श्रीधर उस 2008 के ऑस्ट्रेलिया के टूर पर भारतीय टीम के असिस्टेंट मैनेजर थे. पहली दफ़ा भारतीय टीम के साथ किसी विदेशी दौरे पर गये थे और उस पूरे मामले में बहुत बड़ा रोल निभाया था.

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2008 में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया की ज़मीन पर खेल रही थी और पहला मैच हार चुकी थी. इससे पहले भारत पाकिस्तान से टेस्ट सीरीज़ जीतकर इस टूर पर आया था. लेकिन वो उपमहाद्वीप की पिचें थीं और ये ऑस्ट्रेलिया की तेज़ पिचें.
पहला टेस्ट बॉक्सिंग डे टेस्ट था और चार दिन में ही ख़तम हो गया. ऑस्ट्रेलिया की गेंदबाज़ी के आगे भारतीय बल्लेबाज़ कहीं दिख ही नहीं रहे थे. तेंडुलकर एकमात्र बल्लेबाज़ थे जो दोनों पारियों में एक बार भी 50 रनों तक पहुंचे थे. पहली इनिंग्स में बल्लेबाज़ी करते हुए उन्होंने 62 रन बनाए. इंडिया ये मैच 337 रनों से हार गया.
दूसरा मैच न्यू इयर्स मैच था. 2 जनवरी से शुरू हुआ और साल की पहली शाम को भारतीय टीम को एक बुरी ख़बर मिली. सिडनी में खेले जाने वाले उस दूसरे टेस्ट से ठीक पहले ज़हीर खान को वापस इंडिया भेजा जा रहा था. उनकी एड़ी में चोट लग गयी थी और वो पूरी सीरीज़ से बाहर हो रहे थे. लेकिन ये एक बुरी ख़बर अच्छे नज़ारों का सबब भी बनी. क्यूंकि ज़हीर खान के बाहर होने से टीम में जगह मिली नये नवेले लड़के को जिसका नाम था - ईशांत शर्मा. ईशांत का कॉन्ट्रिब्यूशन आता है तीसरे टेस्ट में और हम हैं दूसरे मैच में जहां आरपी सिंह की बदौलत हमने ऑस्ट्रेलिया के 6 बल्लेबाज़ 134 रनों पर आउट कर दिये थे.
लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि खेल पलट गया. एंड्रू साइमंड्स के बल्ले से गेंद लगी और धोनी ने कैच लिया. लेकिन अम्पायर स्टीव बकनर ने नॉट आउट का फ़ैसला दिया. ये वो समय था जब डीआरएस नहीं आया था. लिहाज़ा ऑन-फ़ील्ड अम्पायर का फैसला अंतिम था.
सचिन तेंडुलकर ने अपनी आत्मकथा में इस टेस्ट मैच के बारे में तसल्ली से बात की है. वो बताते हैं, "बल्ले से गेंद लगने की आवाज़ न केवल मैदान पर खिलाड़ियों ने सुनी थी, बल्कि स्टैंड्स में बैठे उनके बेटे ने भी सुनी थी. सचिन लिखते हैं कि हम जब भी सिडनी टेस्ट की बात करते हैं, मेरा बेटा हर बार मुझे उस बल्ले के किनारे की आवाज़ याद दिलाता है जो उसने सुनी थी." सचिन लिखते हैं कि इस एक ग़लत फ़ैसले ने मैच का रुख मोड़ के रख दिया. एंड्रू साइमंड्स को जब नॉट आउट क़रार दिया गया था, वो बहुत छोटे स्कोर पर थे और जब पारी ख़तम हुई तो वो 162 रन बना चुके थे.
और, ऐसा नहीं है कि ये ग़लत फैसला दिए जाने का पहला मौका था. इससे पहले दूसरे अम्पायर, मार्क बेंसन ने रिकी पोंटिंग को नॉट आउट दिया था. गांगुली की गेंद पर पोंटिंग ने लेग साइड में गेंद खेली थी जो धोनी ने कैच की थी. लेकिन अम्पायर को किनारा छूने की ये आवाज़ भी नहीं सुनाई दी. पोंटिंग ने 55 रन बनाये.

ऑस्ट्रेलिया ने कुल 463 बनाये थे. भारतीय टीम के पास जवाब देने का एक ही विकल्प था- सॉलिड बैटिंग. और इंडिया ने ऐसा किया भी. टॉप 5 बल्लेबाज़ों में वसीम जाफ़र को छोड़कर सभी ने अच्छे रन बनाए. सचिन ने 154 तो वीवीएस लक्ष्मण ने 109 रन बनाये. राहुल द्रविड़ ने 53 और सौरव गांगुली ने 67 रन बनाये. इसके बाद एक सॉलिड पार्टनरशिप और हुई जो भारत को ऑस्ट्रेलिया के रनों से आगे ले जाती दिख रही थी. ये निचले ऑर्डर की पार्टनरशिप हुई थी सचिन और हरभजन के बीच. और इसी दौरान वो हुआ जिसे इस दुनिया ने मंकीगेट के नाम से जाना.
सचिन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब वो और भज्जी बैटिंग कर रहे थे, तभी मामला गर्माना शुरू हुआ. हरभजन ने 50 रन पूरे किये और साइमंड्स खीज चुके थे. उन्होंने हरभजन सिंह को उकसाना शुरू किया. भज्जी ने कई बार आकर सचिन को बताया कि साइमंड्स उन्हें उकसाने की फ़िराक में लगा हुआ था. तेंडुलकर लगातार उन्हें शांत रहने को कह रहे थे. उनका ध्यान स्कोरबोर्ड पर था और ये क्रूशियल टाइम चल रहा था क्यूंकि भारत ऑस्ट्रेलिया के स्कोर से आगे निकल रहा था और खेल के हिसाब से ये बेहद इम्पॉर्टेन्ट पीरियड था. यहां आने वाला एक-एक रन कीमती था. सचिन को मालूम था कि अगर हरभजन सिंह कंट्रोल गंवा देते हैं तो ऑस्ट्रेलिया अपनी टैक्टिक में कामयाब हो जायेगा क्यूंकि वो कैसे भी ये पार्टनरशिप तोडना चाहते थे.
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सचिन लिखते हैं कि ये कहना बहुत आसान होता है कि मैदान पर शांत रहना है लेकिन ऐसा करना बहुत ही मुश्किल होता है क्यूंकि वहां कई लड़ाइयां एक साथ चल रही होती हैं. एक मौके के बारे में बात करते हुए सचिन ने बताया कि हरभजन बहुत शांत रहने की कोशिश कर रहे थे और सभी से बहुत अदब से पेश आ रहे थे. और इसी क्रम में ओवर ख़तम होने के बाद भज्जी ने एक रन लेने के बाद मज़ाक में ब्रेट ली के पीछे थपकी मार दी. साइमंड्स मिड ऑफ़ पर खड़े थे और चलकर हरभजन के पास आये और उनकी इस हरकत के बारे में जिरह करने लगे. दोनों के बीच एक छोटी सी बहस हुई और साइमंड्स ने हरभजन को गाली दे दी. और यहां हरभजन का फ़्यूज़ उड़ गया. सचिन कहते हैं कि ऐसा किसी भी वक़्त होने ही वाला था. वो बस मामला कैसे भी संभाल रहे थे. लेकिन साइमंड्स की गाली ने सभी बांध तोड़ दिये.

हरभजन फ़ॉर्म में आये और साइमंड्स को शुद्ध भारतीय ज़बान में जो कहा, उसके पहले तीन शब्द थे - 'तेरी मां की'. सचिन कहते हैं कि ये खेल का हिस्सा है जो मैदान पर होता ही होता है. इस सब के दौरान कुछ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी हरभजन के पास आये और उससे कहा कि वो नतीजों के लिये तैयार हो जाये और उसने जो किया है, उसका अंजाम ठीक नहीं होगा. अम्पायर मार्क बेंसन भी आकर हरभजन से बात कर रहे थे. इस सब का नतीजा ये हुआ कि हरभजन सिंह 63 रनों पर आउट हो गए.
सचिन ने अपनी किताब में लिखा है कि उन्हें लगा कि हरभजन के आउट होने के बाद ऐसा लगा कि मामला ख़तम हो गया है. लेकिन दिन के अंत में भारतीय टीम को मालूम चला कि हरभजन सिंह पर ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने नस्लीय टिप्पणी का आरोप लगा दिया. साइमंड्स ने कहा कि भज्जी ने उन्हें मंकी कहा था.
इस बारे में सचिन का कहना ये था कि अगर ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग ने भारतीय कप्तान अनिल कुंबले, हरभजन सिंह और भारतीय टीम मैनेजमेंट से बात की होती तो तिल का ताड़ बनता ही नहीं.
लेकिन यहां तो मामला हाथ से निकल चुका था. रेफ़री माइक प्रॉक्टर के पास शिकायत पहुंच चुकी थी. माइक प्रॉक्टर ने बताया कि अगले दिन, यानी चौथे दिन का खेल ख़तम होने के बाद सुनवाई होगी. चौथे दिन दोपहर तक उन्हें बता दिया कि पांचवें दिन, जब मैच ख़तम हो जायेगा, उसके बाद सुनवाई होगी.
इधर भारतीय टीम चौथे दिन मैदान पर खेलने उतरी. भारतीय खेमे में टेंशन थी. उनपर एक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी पर नस्लीय टिप्पणी करने का आरोप लग चुका था. हरभजन सिंह खासे परेशान थे. पहले तो उन्हें उकसाया गया, बाद में जब उन्होंने प्रतिक्रिया दी तो उसे नस्लीय टिप्पणी कह दिया गया और अब उनकी सुनवाई होने वाली थी. इस सब के बीच मैच का रुख यूं हुआ कि भारतीय टीम मैच के आख़िरी दिन दूसरी पारी में बढ़त लेने के बावजूद मैच बचाने के लिये जूझ रही थी. लेकिन आज भी हर कोई यही कहता है कि अगर उस रोज़ अम्पायरिंग ढंग की की गयी होती, और खेल भावना में रहकर खेल हो रहा होता, तो भारत वो मैच ड्रॉ करवा लेता.

साइमंड्स की गेंद पर अम्पायर स्टीव बकनर ने राहुल द्रविड़ को आउट दे दिया. जबकि गेंद उनके बल्ले से लगी भी नहीं थी. सचिन तेंडुलकर ने अपनी किताब में बेहद कड़े शब्दों में कैच लेने वाले ऐडम गिलक्रिस्ट की आलोचना की. उन्होंने लिखा कि गिलक्रिस्ट बेस्ट पोज़ीशन में थे और वो साफ़ देख सकते थे कि गेंद द्रविड़ के बल्ले से लगी थी या नहीं. लेकिन वो गिलक्रिस्ट जो बल्ले से गेंद लगने के बाद कैच होने पर रुकता नहीं था, उसने ग़लत अपील की और अम्पायर स्टीव बकनर ने उंगली उठा दी और हम देखते रह गए. सचिन ने कहा कि गेंद बल्ले से इतनी दूर थी कि हम में से की लोगों को लग रहा था कि कहीं राहुल को एलबीडब्लू आउट तो नहीं दिया गया था.
मामला यहीं नहीं रुका. इसके कुछ ही देर बाद सौरव गांगुली को मार्क बेंसन ने आउट दे दिया. स्टुअर्ट क्लार्क ने स्लिप्स में गांगुली का कैच पकड़ा. गांगुली ने क्रीज़ नहीं छोड़ी क्यूंकि उन्हें दिख रहा था कि क्लार्क ने गेंद ज़मीन में छुआ दी थी और ये क्लीन कैच नहीं था. लेकिन अम्पायर ने रिकी पोंटिंग से पूछा कि कैच क्लीन है या नहीं. रिकी पोंटिंग ने अम्पायर से कहा कि कैच क्लीन है और इस तरह जाने किस आधार पर अम्पायर ने सौरव गांगुली को आउट दे दिया.
और फिर छठा ख़राब फैसला आया धोनी से जुड़ा जब स्टीव बकनर ने धोनी को एलबीडब्लू दे दिया. जबकि साफ़ दिख रहा था कि गेंद स्टंप्स को मिस करने वाली थी. और इन सभी फैसलों की बदौलत, भारतीय टीम पांचवें दिन मैच हार गयी.
अब सुनवाई की बारी थी. टीम को बोला गया कि मैच ख़तम होने के बाद वो होटल नहीं जा सकते. उन्हें स्टेडियम में ही रुकना होगा.
दोनों टीमों की सुनवाई भी बेहद अजीब स्थितियों में हुई. दोनों पक्षों के लोगों को अलग-अलग बयान देने के लिये बुलाया गया. यानी, एक पक्ष के बयान देने के वक़्त, दूसरा पक्ष वहां मौजूद नहीं रह सकता था. अमूमन ऐसा नहीं किया जाता था. और इस वजह से दोनों टीमें एक दूसरे पर कतई विश्वास नहीं कर रही थीं. सचिन का बयान सबसे ज़्यादा अहम् था क्यूंकि जिस वक़्त का ये वाकया था, वो वहां हरभजन के साथ ही मौजूद थे. इसके अलावा टीम के मैनेजर चेतन चौहान और कप्तान अनिल कुंबले के बयान भी लिये गए. हरभजन सिंह का बयान भी लिया गया.
टेस्ट मैच ख़तम हो चुका था. इंडिया 2-0 से सीरीज़ में पिछड़ चुकी थी. लेकिन भारतीय टीम अभी भी होटल नहीं पहुंची थी और रात के 12 बज चुके थे. माइक प्रॉक्टर लगातार कभी इससे तो कभी उससे बात कर रहे थे. रात 2 बजे टीम को होटल जाने की अनुमति मिली. लेकिन इस वक़्त तक दोनों टीमों के बीच खटास काफ़ी बढ़ चुकी थी.

अगली सुबह भारतीय टीम को केनबेरा के लिये निकलना था कि उन्हें ख़बर मिली कि हरभजन सिंह को दोषी पाया गया है और उन्हें तीन टेस्ट मैचों के लिये बैन कर दिया गया था. भारतीय टीम पहले निराश थी लेकिन अब उस निराशा पर गुस्से का छींटा पड़ चुका था. बतौर असिस्टेंट मैनेजर टूर पर गए एमवी श्रीधर इधर से उधर भाग रहे थे. खिलाड़ी इस फैसले से सहमत नहीं थे और उन्हें बीते दिन की सुनवाई पक्षपात से भरी हुई मालूम पड़ी. वहां भारतीय टीम की टीम मीटिंग चल रही थी. और इधर एमवी श्रीधर सारी बातें बीसीसीआई तक पहुंचा रहे थे. इसी बीच, अम्पायरिंग के बारे में बात कर रही मीडिया को हरभजन की सज़ा की बात मालूम पड़ी और श्रीधर उसे भी समेटने में जुट गए. श्रीधर मीडिया मैनेजर भी बन चुके थे. आगे चलकर हरभजन की जितनी भी सुनवाइयां हुईं, हरभजन की तैयारी श्रीधर ने ही करवाई. वो उन्हें एक-एक बात, बेहद बारीकी से समझाते और हर सवाल के लिए तैयार करते.
उधर टीम मीटिंग में कप्तान अनिल कुंबले और सचिन तेंडुलकर ने ये डिसाइड किया कि अगर हरभजन सिंह पर लगा बैन नहीं हटता है तो वो टूर बीच में ही छोड़ देंगे. टीम का सारा सामान बस में लद चुका था लेकिन विरोधस्वरूप टीम उस दिन केनबेरा नहीं गयी. भारतीय टीम हरभजन की सज़ा के ख़िलाफ़ अपील करने जा रही थी. बीसीसीआई ने भारतीय टीम को आश्वासन दिया कि वो उनके साथ है और उन्हें न्याय दिलाने को हर संभव कदम उठाया जायेगा.
इस केस को अब वीआर मनोहर देख रहे थे जो बहुत बड़े वकील थे और शरद पवार के बेहद करीबी थे और महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल रह चुके थे. और ऐसा नहीं है कि वो वकील थे और क्रिकेट से उनका कोई ख़ास रिश्ता नहीं थे. वीआर मनोहर विदर्भ क्रिकेट असोसिएशन के प्रेसिडेंट भी रह चुके थे और उनके बेटे का नाम शशांक मनोहर है जो ख़ुद आगे चलकर विदर्भ क्रिकेट असोसिएशन के प्रेसिडेंट हुए, फिर बीसीसीआई के प्रेसिडेंट हुए और फिर आईसीसी के चेयरमैन तक बने.
भारतीय टीम टूर के बॉयकॉट के बारे में पूरी तरह से सीरियस थी. क्यूंकि सज़ा को बरकरार रखने का मतलब ये था कि पूरी दुनिया में यही सन्देश जाएगा कि हरभजन ने साइमंड्स पर नस्लभेदी टिप्पणी की थी जो असल में हुआ ही नहीं था. इस मौके तक भारतीय टीम को सभी का साथ मिल रहा था. भारत में मीडिया और जनता, पूरी तरह से टीम को सपोर्ट कर रही थी. ऑस्ट्रेलिया में मौजूद भारतीय मीडिया, कमेंट्री के लिये गए हुए सभी चेहरे, भारतीय खेमे को ही बैक कर रहे थे.

टूर पूरा होगा या नहीं, कुछ कहा नहीं जा सकता था. और इस सब के बीच 8 जनवरी को, यानी मैच के अगले रोज़ आईसीसी के CEO मैल्कम स्पीड ने बताया कि अगले टेस्ट मैच में अम्पायर स्टीव बकनर की जगह बिली बाउडेन को लाया जायेगा. ये भारतीय बोर्ड की पहली जीत थी. उन्होंने भी अपने कदम आगे बढ़ाए और कहा कि टूर आगे बढ़ेगा और बैन की सज़ा पर अपील करने के बाद टीम मैच खेलेगी.
अपील हुई और उस बैन को सस्पेंड कर दिया गया. हंगामा काफ़ी हुआ. ये भी मालूम चला कि माइक प्रॉक्टर ने सिर्फ़ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के बयान ही संज्ञान में लिये थे और उसी के दम पर भज्जी को दोषी साबित कर दिया था. चेतन चौहान ने सिडनी टेस्ट के बाद ब्रैड हॉग पर आरोप लगाये थे की उन्होंने धोनी और कुंबले को गाली दी थी. और बाद में कूटनीति के तहत, अपर हैंड हासिल करने के लिये भारतीय टीम ने वो आरोप वापस ले लिये. और महीने का अंत होते-होते आईसीसी ने फ़ैसला सुनाया कि हरभजन पर आरोप सिद्ध नहीं होते हैं. उन्हें अभद्र भाषा के इस्तेमाल के लिये मैच की 50% फ़ीस का जुर्माना सुनाया गया. न्यूज़ीलैंड के जज जस्टिस जॉन हेंसन ने ये फ़ैसला सुनाया.
लेकिन ये फैसला आने से पहले, भारतीय टीम ने पर्थ में खेला गया तीसरा टेस्ट मैच जीता. उस मैच से ठीक पहले आईसीसी ने मैच रेफ़री रंजन मदुगले को ऑस्ट्रेलिया बुलाया था. चूंकि मैदान पर मौजूद अम्पायर और मैच रेफ़री आईसीसी के थे, और बवाल की जड़ में उनके ही फ़ैसले थे, लिहाज़ा आईसीसी डैमेज कंट्रोल में भी लगी थी. वो चाहती थी कि इतने दिनों में दोनों टीमों के बीच जो खाई बन चुकी थी, उसे पाटा जाए. लिहाज़ा रंजन मदुगले आये और उनकी मौजूदगी में दोनों टीमों के कप्तान मिले. कैमरों के चमकते फ़्लैश के सामने रिकी पोंटिंग और अनिल कुंबले ने हाथ मिलाये.

ये वही पर्थ टेस्ट था जिसमें इशांत शर्मा ने अपने स्पेल से रिकी पोंटिंग को बुरी तरह छकाया था. और ये वही पर्थ टेस्ट था जिसमें अनिल कुंबले ने अपना 600वां विकेट लिया था. खास बात ये थी कि ये विकेट एंड्रू साइमंड्स का था. साइमंड्स को दूसरी पारी में भी कुम्बले ने ही आउट किया और अमूमन बेहद शांत और अपने में रहने वाले अनिल कुंबले ने जिस तरह से जश्न मनाया था, वो सारी कहानी बयान कर रहा था. और हां, ये वही पर्थ का टेस्ट मैच था जिसकी ऐतिहासिक तस्वीर अखबारों के पहले पन्ने पर छपी थी जिसमें सचिन तेंडुलकर अपने शरीर को पीछे की ओर आधा मोड़कर ब्रेट ली की बाउंसर को कीपर के सर के ऊपर से बाउंड्री तक भेज रहे थे.
ये मैच जीतने के बाद भारतीय ड्रेसिंग रूम में शैम्पेन की कई बोतलें खुलीं. टीम ने ऑस्ट्रेलिया में मौजूद भारतीय मीडिया को भी कुछ बोतलें भेजीं. ये टीम का अपनी मीडिया को शुक्रिया कहने का अपना तरीका था. इस मैच के बाद ब्रेट ली और ऐडम गिलक्रिस्ट भारतीय ड्रेसिंग रूम में आये और उन्हें जीत की बधाई देते हुए भारतीय खिलाड़ियों के साथ बातें कीं. यहां से टीमों में बना टेंशन कुछ कम होना शुरू हुआ और आगे की कहानियां बनती रहीं.
सिडनी के उस मैच ने अगर किसी की ज़िंदगी सबसे ज़्यादा बदल के रख दी तो वो थे एंड्रू साइमंड्स. साइमंड्स ख़ुद बताते हैं कि उन्होंने उस वाकये के बाद काफ़ी शराब पीनी शुरू कर दी. वो कहते हैं कि उन्हें कोई अंदाज़ा ही नहीं था कि एक खेल के पीछे कितनी राजनीति चल सकती है और कितना पैसा लगा होता है और किसी घटना के नतीजे किस हद तक बड़े हो सकते हैं. और उस घटना के केंद्र में चूंकि वो ही थे, लिहाज़ा उन्हें उस पूरी राजनीति और पैसे का दबाव महसूस हो रहा था. साइमंड्स को दुख था कि अंत में उनकी कही बात सही साबित नहीं हो सकी. वो बताते हैं कि उस वाकये के बाद वो गिरने लगे थे. उन्हें लगता था कि उन्होंने अपने चार साथियों को इस सब में घसीट लिया था और उन चारों को जो परेशानियां झेलनी पड़ रही थीं, उसके ज़िम्मेदार वो ही थे.