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जिन देशों में सर्दी में कुल्फी जम जाती, वहां जनवरी में चल रही हीट वेव, क्या है वजह?

अमेरिका में पिछले दिनों बर्फीला तूफान कहर बरपा रहा था. इसके चलते बहुत-सी मौतें भी हुईं. दूसरी ओर अपने ठंडे मौसम के लिए पहचान रखने वाले कई यूरोपीय देश विंटर हीट वेव की चपेट में हैं. नीदरलैंड और डेनमार्क समेत चेक रिपब्लिक जैसे कुल 7 देशों में साल की शुरुआत बीते कई दशकों में सबसे गर्म रही. समझिए, क्यों हैं तापमान का ये गोलमाल!

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चेक रिपब्लिक में इन दिनों मौसम खुला हुआ है, जो कि वॉर्निंग साइन है. (Pixabay)
चेक रिपब्लिक में इन दिनों मौसम खुला हुआ है, जो कि वॉर्निंग साइन है. (Pixabay)

स्कैंडिनेवियाई और नॉर्डिक देश, जिनमें डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड और नीदरलैंड शामिल हैं, वहां आमतौर पर ठंड में तापमान -10 डिग्री के आसपास चला जाता है. ये टेंपरेचर ग्रामीण इलाकों में रहता है, जबकि शहरों में ये बढ़कर -5 तक जाता है. कई बार तापमान में इससे कहीं दोगुनी गिरावट भी दर्ज की गई. कुल मिलाकर आर्कटिक सर्कल के करीब स्थित इन देशों के ठंडे तापमान का अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि यहां गर्मियों में पारा 20 डिग्री के करीब बना रहता है, यानी जैसा मौसम हमारे यहां जाती सर्दियों में रहता है, वैसा वहां गर्मी के पीक पर होता है.

कहां, कितना है तापमान?
अब इन्हीं देशों में विंटर हीट वेव चल रही है. अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने इन देशों में सर्दी में पड़ रही गर्मी को एक्सट्रीम इवेंट बताया. चेक रिपब्लिक और पोलैंड की बात करें तो वहां का तापमान जनवरी के पहले हफ्ते में 19 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहा. वहीं नीदरलैंड में ये लगभग 17 डिग्री है. डेनमार्क, लातिविया और बेलारूस में भी ठंड में इतना ही तापमान देखा जा रहा है. यहां तक कि इस मौसम में बर्फ से कई तरह के खेल आयोजित करने वाले स्विटजरलैंड में बर्फ की कमी पड़ने लगी, जिसके कारण रिजॉर्ट बंद पड़े रहे.

मौसमी विज्ञानी इस हीट वेव की वजह हीट डोम को बता रहे हैं. यूरोपियन लोगों से कहा जा रहा है कि वे सेहत पर खास ध्यान दें और क्रॉनिक बीमारियों के मरीज घर से कम से कम निकलें, वरना हीट डोम के कारण वे मुसीबत में पड़ सकते हैं. 

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winter heat wave in europe caused by climate change
हीट डोम के तहत गर्म समुद्री हवा वायुमंडल में फंसकर रह जाती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

क्या है हीट डोम?
ये एक खास स्थिति है जो तब आती है, जब वायुमंडल गर्म समुद्री हवा को बोतल में किसी ढक्कन की तरह कैद कर लेता है और धीरे-धीरे रिलीज करता है. यूएस के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, ऐसा अक्सर तब होता है जब प्रशांत महासागर का एक छोर ठंडा हो जाए, जबकि दूसरा गर्म रहे. इसे ला-नीना स्थिति भी कहते हैं. हीट डोम लगभग हफ्ताभर रह सकता है, जिसके बाद ढक्कन जैसा स्ट्रक्चर कमजोर हो जाता है और फंसी हुई गर्म हवा पूरी तरह खत्म हो जाती है. 

कितना कॉमन है ये इवेंट?
अमेरिका में हीट डोम की स्थिति जून-जुलाई 2021 में बनी थी, जब वॉशिंगटन में पारा 49 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा. ठंडे मौसम के लिए जाने जाते कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में पारा लगभग 45 डिग्री था. इससे 500 से भी भी ज्यादा मौतें हुईं. यहां तक कि कनाडा समेत वॉशिंगटन में बहुत से दफ्तरों में घर से काम होने लगा था. सितंबर 2022 में भी दुनिया के आमतौर पर ठंडे माने जाने वाले कई देश हीट डोम की गिरफ्त में आए थे. जबकि पहले ऐसे हालात कम दिखते थे.

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साल 1995 की जुलाई में 4 ही दिनों के भीतर शिकागो में 739 लोगों की हीट डोम के चलते मौत हो गई. 12 से 15 जुलाई के बीच हुई इस मौतों के लिए भी क्लाइमेट चेंज को जिम्मेदार माना गया. इस बारे में नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में छपी स्टडी कहती है कि हीट डोम क्लाइमेट चेंज का नतीजा है, और अगर तापमान पर जल्द ही काबू नहीं हुआ तो जल्दी-जल्दी ये हालात बनने लगेंगे. 

 

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