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गायों की डकार से निकलती है बेहद जहरीली गैस, पर्यावरण के लिए कैसे है बड़ा खतरा?

सालभर में एक गाय की डकार से जितनी मीथेन गैस निकलती है, उसकी मात्रा सालभर में किसी कार से निकली कार्बन डाइऑक्साइड जितनी होती है. याद रखें कि मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड से 25 गुना ज्यादा खतरनाक मानी जाती है. गायों की डकार से ग्लोेबल वार्मिंग के खतरे पर वर्षों से बात हो रही है, लेकिन अब कई देश इसका पक्का इलाज खोज रहे हैं.

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गायों समेत मवेशियों की डकार को पर्यावरण पर खतरा बताया जाता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
गायों समेत मवेशियों की डकार को पर्यावरण पर खतरा बताया जाता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

क्लाइमेट चेंज की गति कम करने में जुटे साइंटिस्ट अब गायों पर भी नजर रख रहे हैं. लेकिन गायों का प्रदूषण में क्या हाथ! असल में गायों की डकार से जहरीली मीथेन गैस निकल रही है. ये ग्रीनहाउस गैस है, यानी वही गैस जिसके कारण धरती लगातार गर्म हो रही है. अब कई देश गायों की डकार को पर्यावरण के लिए फ्रेंडली बनाने पर भी काम कर रहे हैं. 

गायों की डकार तक पहुंचने से पहले समझें कि डकार क्यों आती है
ये प्रोसेस हमारे समेत सभी पशु-पक्षियों के लिए एक जैसी है. जब हम खाना खाते हैं तो हमारी आंतों में खाना पचाने वाले बैक्टीरिया अपना काम करने लगते हैं. मुश्किल से पच सकने वाले हिस्से को तोड़कर ये बैक्टीरिया विटामिन्स के अलग-अलग रूपों में बदलते हैं. इस दौरान गैस निकलती है. यही मीथेन गैस है, जो डकार के रूप में शरीर से बाहर आती है. 

मीथेन गैस के बारे में बात इसलिए जरूरी है कि ये कार्बन डाइऑक्साइड से भी ज्यादा हानिकारक है. यूनाइटेड स्टेट्स इनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी की मानें तो मीथेन में कार्बन डाइऑक्साइड से लगभग 25 गुना ज्यादा गर्मी होती है. ये सीधे-सीधे ग्लोबल वार्मिंग का काम करती है. 

तो क्या गाय अकेली मीथेन गैस छोड़ती है?
नहीं, छोटे दीमक से लेकर बड़े पशु तक खाना पचाने की प्रक्रिया में मीथेन गैस निकालते हैं, लेकिन गायें इनमें सबसे ऊपर हैं. नासा की रिपोर्ट के मुताबिक एक गाय के डकारने पर पूरे सालभर में 80 से 120 किलो तक मीथेन उत्सर्जित होती है. ये गैस उतनी ही है, जितना एक फैमिली कार के पूरे साल चलने पर निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड. प्रदूषण कार से भी हो रहा है, लेकिन मीथेन प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज्यादा जिम्मेदार है.

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गाय के डकारने पर पूरे सालभर में 80 से 120 किलो तक मीथेन उत्सर्जित होती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

बैक्टीरिया करते हैं ज्यादा काम
गायों के साथ एक बात ये भी है कि वे चारे को तुरंत नहीं पचा पातीं, बल्कि उसे अपने पेट के बाईं तरफ आंत में रख लेती हैं. इसी दौरान बैक्टीरिया चारे का फर्मेंटेशन करते हैं. इससे दो काम होते हैं, एक गाय का खाना पच जाता है, और दूसरा, बैक्टीरिया को पलने के लिए खुराक मिल जाती है. लेकिन इसी समय खतरनाक मीथेन गैस भी निकलती है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है. तो इसपर काबू के लिए कई देश अपनी-अपनी तरह से सॉल्यूशन सोचने लगे. 

टैक्स लगाने की बात कर दी 
न्यूजीलैंड अपने पर्यावरण-प्रेम के लिए हमेशा जाना जाता रहा. बेहद कम जनसंख्या वाले इस देश ने खुद को पॉल्यूशन से भरसक बचाए रखा, लेकिन यहां बात क्लाइमेट चेंज की हो रही है, जिसका असर पूरी दुनिया पर होगा. तो न्यूजीलैंड ने साल 2022 के मध्य में एक अजीबोगरीब बात कर डाली. उसने तय किया कि गाय समेत देश के करोड़ों मवेशियों की डकार पर टैक्स लगाया जाए. बता दें कि इस देश में फार्मिंग सेक्टर काफी बड़ा है. ऐसे में जाहिर है कि मीथेन उत्सर्जन भी ज्यादा रहेगा. इसी पर लगाम कसने के लिए सरकार ने बर्प टैक्स की बात की. 

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कहा गया कि इससे आने वाले पैसे को खेती के लिए रिसर्च में लगाया जाएगा, या जरूरतमंद किसानों को मदद दी जाएगी. हालांकि इसपर काफी बवाल उठ खड़ा हुआ. मवेशी पालन करने वालों का तर्क था कि ये प्रक्रिया नेचुरल है, और इसपर टैक्स लगाना सही नहीं. लेकिन न्यूजीलैंड की सरकार अपनी बात पर अड़ी रही कि उसका मकसद साल 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में कमी करना है. 

दूसरे उपाय भी सोचे जा रहे
टैक्स लगना-लगाना अलग बात है, लेकिन गायों की डकार को कम हानिकारक बनाने के लिए कई प्रयोग हो रहे हैं. इनमें से कई तो साल 2018 से ही चल रहे हैं. जैसे न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने गायों को एक खास तरह की वैक्सीन देकर समझना चाहा कि क्या इससे मीथेन बनना कम होता है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. साथ ही वैक्सीन से पशु के दूध की क्वालिटी में फर्क जैसी बातें भी होने लगी थीं, लिहाजा वैक्सीन वाली बात ठंडे बस्ते में चली गई.

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मीथेन में कार्बन डाईऑक्साइड से 25 गुना ज्यादा वैश्विक ताप बढ़ाने की क्षमता है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

अब कई देश ये देख रहे हैं कि क्या खिलाने पर गायों की डकार ज्यादा पर्यावरण-फ्रेंडली हो सके. माना जा रहा है कि रेशेदार चारे का कम इस्तेमाल खाने को आसानी से पचने देगा और मीथेन भी कम निकलेगी. प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की स्टडी के मुताबिक गायों में मीथेन गैस कम बने, इसके लिए कई तरह के इंजेक्शन भी दिए जा सकते हैं, जैसे 3-नाइट्रोऑक्सीप्रोपेनल और आयोनोफोर्स. हालांकि यूरोपियन यूनियन इनके उपयोग से साफ मना कर चुका. 

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चारे में बदलाव की बात 
कुछ का दावा है कि प्रोबायोटिक खिलाने पर भी गायों से मीथेन गैस कम निकलेगी. फिलहाल ये सारे दावे शुरुआती स्टेज में हैं और हर देश समेत हर मवेशी इंडस्ट्री अपना अलग तरीका खोज रही है. पशु-प्रेमियों समेत कई वैज्ञानिक ये भी कह रहे हैं कि सबकी आंतों में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जिनका काम ही खाना पचाना है. ऐसे में अगर कुदरती तौर पर पाए जाते बैक्टीरिया को कम करने के लिए वैक्सीन, दवा या अलग तरह का खाना दिया जाएगा तो बड़े नुकसान भी हो सकते हैं. 

क्या इंसानों की कोई गलती नहीं!
गायों की डकार पर इतना शोरगुल करने वाले इंसानों का मीथेन गैस उत्सर्जन सबसे ज्यादा है. यूनाइटेड नेशन्स इकनॉमिक कमीशन फॉर यूरोप का डेटा कहता है कि दुनिया की 60% मीथेन गैस में हमारा हाथ है. हर साल लगभग 380 मिलियन मेट्रिक टन मीथेन हमारे कारण उत्सर्जित हो रही है. इसमें एनर्जी सेक्टर, लैंडफिल, फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल जैसी वजहें सबसे ऊपर हैं. हालांकि एग्रीकल्चर, जिसमें पशुपालन भी शामिल है, को भी मीथेन की बड़ी वजह माना जा रहा है. 

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