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शुक्र ग्रह से आ रहा है Asteroids का समूह... धरती पर मंडरा रहा है बड़ा खतरा, भारत पर गिरा तो क्या होगा?

शुक्र के पास छिपे उल्कापिंड पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं. ये 140 मीटर से बड़े उल्कापिंड शहर नष्ट करने की क्षमता रखते हैं. सिमुलेशन के मुताबिक, ये भविष्य में पृथ्वी से टकरा सकते हैं. अभी कोई तत्काल खतरा नहीं, लेकिन वेरा रुबिन वेधशाला और शुक्र टेलीस्कोप से निगरानी जरूरी है.

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शुक्र ग्रह के पीछे एस्टेरॉयड्स का समूह छिपा है, जो सूरज की रोशनी में छिप जाते हैं. उनसे भविष्य में पृथ्वी पर खतरा हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)
शुक्र ग्रह के पीछे एस्टेरॉयड्स का समूह छिपा है, जो सूरज की रोशनी में छिप जाते हैं. उनसे भविष्य में पृथ्वी पर खतरा हैं. (प्रतीकात्मक फोटोः गेटी)

शुक्र ग्रह के आसपास छिपे हुए कई उल्कापिंड (Asteroids) भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते हैं. एक नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने बताया कि ये शुक्र के सह-कक्षीय उल्कापिंड (Venus Co-Orbital Asteroids) सूरज की चमक में छिपे हैं. इन्हें देखना मुश्किल है. ये उल्कापिंड इतने बड़े हैं कि किसी शहर को नष्ट कर सकते हैं. 

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शुक्र के उल्कापिंड क्या हैं?

शुक्र के उल्कापिंड वे अंतरिक्ष चट्टानें हैं जो शुक्र ग्रह के साथ सूरज की परिक्रमा करती हैं, लेकिन शुक्र की कक्षा में नहीं घूमतीं. अभी 20 ऐसे उल्कापिंड ज्ञात हैं, जिनमें ट्रोजन उल्कापिंड (शुक्र के आगे या पीछे रहने वाले) और एक क्वासीमून (Zoozve) शामिल हैं. ये उल्कापिंड 460 फीट (140 मीटर) से बड़े हैं. यानी अगर ये पृथ्वी से टकराएं, तो एक बड़ा शहर तबाह हो सकता है. ये उल्कापिंड मंगल और बृहस्पति के बीच की मुख्य उल्कापिंड पट्टी से आए माने जाते हैं. पृथ्वी के पास भी ऐसे कई सह-कक्षीय उल्कापिंड हैं. वैज्ञानिक लगातार नए उल्कापिंड खोज रहे हैं.

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Asteroids From Venus danger for Earth

पृथ्वी के लिए खतरा क्यों?

शुक्र, पृथ्वी का सबसे करीबी पड़ोसी ग्रह है, जो अपने नजदीकी बिंदु पर पृथ्वी से 2.5 करोड़ मील (4 करोड़ किमी) की दूरी पर आता है. इसके सह-कक्षीय उल्कापिंड शुक्र के साथ रहते हैं, लेकिन अगर ये पृथ्वी के करीब आएं, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण उनकी कक्षा बदल सकती है. इससे ये पृथ्वी से टकराने की राह पर आ सकते हैं.

नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए 36,000 साल (तीन सह-कक्षीय चक्र) तक इन उल्कापिंडों की गति का अध्ययन किया. उन्होंने कम विलक्षणता (eccentricity

विलक्षणता क्या है? यह बताती है कि उल्कापिंड की कक्षा कितनी गोल या लंबी है. 0 का मतलब पूरी तरह गोल, और ज्यादा संख्या का मतलब लंबी कक्षा. कम विलक्षणता वाले उल्कापिंड सूरज की चमक में छिपे रहते हैं, इसलिए इन्हें देखना मुश्किल है.

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Asteroids From Venus danger for Earth

क्यों नहीं दिखते ये उल्कापिंड?

शुक्र के ज्यादातर उल्कापिंडों की विलक्षणता 0.38 से ज्यादा है, यानी उनकी कक्षा लंबी है. ये पृथ्वी के करीब आते हैं, इसलिए इन्हें देखना आसान है. लेकिन कम विलक्षणता वाले उल्कापिंड सूरज की चमक में छिपे हैं, जिससे धरती से इन्हें देखना लगभग असंभव है. 2024 की स्टडी में वैज्ञानिक वलेरियो कारुबा (साओ पाउलो स्टेट यूनिवर्सिटी, ब्राजील) ने बताया कि ऐसे कई उल्कापिंड हो सकते हैं, जिन्हें हम अभी नहीं देख पाए.

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क्या तुरंत खतरा है?

नहीं, अभी कोई तत्काल खतरा नहीं है. कुछ मीडिया ने दावा किया कि ये उल्कापिंड “कुछ हफ्तों में” पृथ्वी से टकरा सकते हैं, लेकिन स्टडी में ऐसा कुछ नहीं है. कारुबा ने कहा कि कोई भी मौजूदा उल्कापिंड जल्दी पृथ्वी से नहीं टकराएगा.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इन उल्कापिंडों पर नजर रखना जरूरी है. 2024 YR4 नामक उल्कापिंड, जिसके 2032 में पृथ्वी से टकराने की 2.3% संभावना थी, बाद में शून्य हो गई. यह दिखाता है कि समय पर निगरानी कितनी जरूरी है.

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Asteroids From Venus danger for Earth

कैसे बचेगी पृथ्वी?

वैज्ञानिकों का कहना है कि हमें इन उल्कापिंडों को खोजने और ट्रैक करने की बेहतर तकनीक चाहिए. कुछ समाधान...

  • नई वेधशालाएं: चिली की वेरा सी. रुबिन वेधशाला, जो जुलाई 2025 में शुरू होगी, इन उल्कापिंडों को खोजने में मदद कर सकती है. लेकिन यह धरती से सूरज की चमक में छिपे उल्कापिंडों को पूरी तरह नहीं देख पाएगी.
  • शुक्र के पास टेलीस्कोप: वैज्ञानिक सुझाव दे रहे हैं कि शुक्र की कक्षा में एक टेलीस्कोप भेजा जाए. यह सूरज की चमक से दूर रहकर इन उल्कापिंडों को बेहतर देख सकता है.
  • उल्कापिंड डिफ्लेक्शन: NASA का DART मिशन (2022) दिखा चुका है कि उल्कापिंड की दिशा बदली जा सकती है. इसमें एक रॉकेट ने डिमॉर्फोस उल्कापिंड से टकराकर उसकी कक्षा में समय को 32 मिनट कम किया.
  • स्वदेशी तकनीक: भारत का गगनयान मिशन जैसी तकनीकें भविष्य में अंतरिक्ष निगरानी और आपदा प्रबंधन में मदद कर सकती हैं.

भारत पर गिरा तो क्या होगा?

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अगर कोई उल्कापिंड भारत में गिरता है, तो घनी आबादी वाले शहरों को बड़ा नुकसान हो सकता है. सिमुलेशन के मुताबिक, 140 मीटर का उल्कापिंड 2.2-3.4 किमी चौड़ा गड्ढा बना सकता है. 410 मेगाटन TNT की ऊर्जा छोड़ सकता है, जो हिरोशिमा बम से लाखों गुना ज्यादा है.

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