असम के चाय बागानों में धूप की तपिश में काम करने वाली मजदूर कामिनी कुरमी सिर पर छाता बांध लेती हैं. इससे हाथ खाली रहते हैं. नाजुक पत्तियां तोड़ना आसान हो जाता है. लेकिन गर्मी इतनी तेज है कि सिर चकराने लगता है और दिल की धड़कन तेज हो जाती है. Photo: Reuters
कामिनी जैसी सैकड़ों महिलाएं अपनी कुशल उंगलियों से चाय की फसल काटती हैं. मशीनें आम फसलों को जल्दी काट लेती हैं, लेकिन चाय के लिए हाथों की जरूरत पड़ती है. क्लाइमेट चेंज से मौसम की मार बढ़ रही है. इससे चाय की फसल सूख रही है. Photo: Reuters
असम और दार्जिलिंग जैसी मशहूर चाय का भविष्य खतरे में है. दुनिया का चाय व्यापार सालाना 10 अरब डॉलर से ज्यादा का है. टी रिसर्च एसोसिएशन की वैज्ञानिक रूपंजली देब बरुआ कहती हैं कि तापमान और बारिश के पैटर्न में बदलाव अब कभी-कभी की बात नहीं, बल्कि नई सामान्य स्थिति है. गर्मी और अनियमित बारिश से फसलें कम हो रही हैं. Photo: Reuters
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है. लेकिन घरेलू खपत बढ़ने से निर्यात घट रहा है. पिछले साल उत्पादन 7.8% गिरकर 1.3 अरब किलोग्राम रह गया. खासकर असम में भारी नुकसान हुआ. इससे कीमतें 20% बढ़ गईं. औसतन 201.28 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई. Photo: Reuters
30 साल में चाय की कीमतें सालाना सिर्फ 4.8% बढ़ीं, जबकि गेहूं-चावल की 10%. 40 साल से चाय बागान में काम करने वाली मंजू कुरमी कहती हैं कि पहले 110 किलोग्राम पत्तियां तोड़ लेती थीं. लेकिन अब गर्मी बढ़ने से सिर्फ 60 किलोग्राम ही संभव है. गर्मी से मजदूर थक जाते हैं. Photo: Reuters
फैक्ट्रियों में पत्तियां सुखाने के दौरान हर 30 मिनट में ब्रेक लेना पड़ता है. पुतली लोहार, जो 12 साल से फैक्ट्री में काम कर रही हैं, कहती हैं कि हम दीवार पर लगे पंखों के नीचे ठंडक लेते हैं. फैक्ट्री में सूखी पत्तियों को बड़े ड्रम में कुचला जाता है. फिर महिलाएं कैप, मास्क और एप्रन पहनकर चेक करती हैं. Photo: Reuters
असम की चाय का सबसे अच्छा हिस्सा दूसरी फ्लश है, जो खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर है. लेकिन गर्म लहरें इसे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. गर्मी और नमी जरूरी है, लेकिन लंबे सूखे और अचानक भारी बारिश बर्बाद कर देती हैं. Photo: Reuters
टिनसुकिया जिले के 82 साल पुराने बागान के मालिक मृतुनजय जालान कहते हैं कि ऐसे मौसम से कीट बढ़ते हैं. हमें सिंचाई करनी पड़ती है, जो पहले कम इस्तेमाल होती थी. टी रिसर्च के मुताबिक 1921 से 2024 तक बारिश 250 मिमी कम हुई. न्यूनतम तापमान 1.2 डिग्री बढ़ा. Photo: Reuters
इस मॉनसून में बारिश औसत से 38% कम रही. कीटों से पत्तियां भूरी हो जाती हैं, छेद हो जाते हैं. इससे फसल का समय छोटा हो गया. वरिष्ठ चाय उत्पादक प्रभात बेजबोरुआ कहते हैं कि चाय की कीमतें अब अस्थिर हैं. इस साल सुधार हो रहा, लेकिन अगले साल कम उत्पादन से कीमतें बढ़ेंगी. Photo: Reuters
चाय उद्योग पहले से कर्ज में डूबा है. लागत सालाना 8-9% बढ़ रही – मजदूरी और खाद महंगी. इंडियन टी एसोसिएशन के चेयरमैन हेमंत बंगुर कहते हैं कि पिछले साल सूखे से फसल घटी, तो पेड़ काटे, खाद गड्ढे बनाए और कीटनाशक इस्तेमाल बढ़ाया. इससे खर्च और बढ़ा. Photo: Reuters
असम में औपनिवेशिक काल के कई पेड़ 40-50 साल पुराने हो चुके. वे कम फलते हैं. मौसम सहन नहीं कर पाते. नए पौधे लगाने के लिए सरकारी मदद कम है. पिछले दशक में घरेलू खपत 23% बढ़कर 1.2 अरब किलोग्राम हो गई. उत्पादन सिर्फ 6.3% बढ़ा. 2024 में भारत का वैश्विक व्यापार हिस्सा 12% था. Photo: Reuters