पिछले छह महीने में उत्तराखंड के जंगलों में 1000 से ज्यादा बार आग लग चुकी है. पिछले 24 घंटे में ही 45 जगहों पर जंगली आग की खबर आई है. इसे बुझाने के लिए नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (NDRF) के सेंटर फॉर हेलिकॉप्टर्स एंड पर्सनल की टीम लगी. इस आग में पांच लोगों की मौत हो गई और सात जानवर भी मारे गए. मुद्दा ये है कि आखिर इतनी आग लगती क्यों है. भारतीय वैज्ञानिकों ने इसका संबंध मॉनसून से जोड़ा है. मॉनसून में बारिश होती है, फिर आग कैसे? (फोटो: गेटी)
साल 2021 की शुरुआत से ही हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, नगालैड-मणिपुर सीमा, ओडिशा, मध्यप्रदेश और गुजरात के जंगलों और वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी में आग लगने की खबरें आ रही हैं. अप्रैल और मई का महीना ऐसे होता है जब पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से जंगल में आग लगने की खबरें आती हैं. लेकिन उत्तराखंड के जंगलों में आग की घटनाएं सर्दियों में होती हैं. (फोटो: गेटी)
साइंटिस्ट्स की माने तो सूखी मिट्टी और कमजोर मॉनसून की वजह से ऐसा हो सकता है. आइए जानते हैं कैसे? जनवरी महीने में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू घाटी और नगालैंड-मणिपुर सीमा पर स्थित जुकोउ घाटी में लगातार आग की घटनाएं सामने आईं. ओडिशा के सिमलीपाल नेशनल पार्क में फरवरी के अंत से मार्च के शुरुआत तक बड़ी आग लगी थी. (फोटो: गेटी)
इसके अलावा मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिजर्व और गुजरात के गिर के जंगलों में भी आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं. इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 (ISFR) में देश की जमीन पर 712,249 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल को जंगल बताया गया है. यानी देश की जमीन का 21.67 फीसदी हिस्सा. इसमें से 2.89 फीसदी में पेड़ हैं. (फोटो: गेटी)
पिछली आग की घटनाओं और उनके आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद पता चला कि उत्तर-पूर्व और मध्य भारत के जंगलों में आग लगने की आशंका ज्यादा है. ये विश्लेषण किया है देहरादून स्थित फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) के वैज्ञानिकों ने. असम, मिजोरम, त्रिुपरा के जंगलों में सबसे ज्यादा आग लगने की आशंका रहती है क्योंकि इन्हें 'एक्सट्रीम प्रोन' की श्रेणी में रखा गया है. (फोटो: गेटी)
Uttarakhand Chief Minister Tirath Singh Rawat held an emergency meeting over fire incidents, via video conferencing
— ANI (@ANI) April 4, 2021
"We asked the Centre to give us 2 choppers to take control of fire situation. We've been given the same. We're hoping to douse fire using choppers today," says CM pic.twitter.com/0xe6mQ0Cmc
जिन राज्यों में जंगली इलाके ज्यादा हैं, जैसे आंध्र प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, ओडिशा, बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश. यहां के जंगलों को 'वेरी हाइली प्रोन' की कैटेगरी में रखा गया है. पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़, तेलंगाना के कुछ इलाके भी 'एक्सट्रीम प्रोन' की श्रेणी में आते हैं. पृथ्वी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार साल 2020-21 में इन सभी राज्यों के जंगलों में आग लगने की आशंका है. (फोटो: गेटी)
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश ऐसे दो राज्य हैं जहां पर पिछले कुछ सालों में सबसे ज्यादा जंगल की आग की रिपोर्ट आई है. उत्तराखंड में 24,303 वर्ग किलोमीटर यानी राज्य के क्षेत्रफल का 45 फीसदी हिस्सा जंगल है. ये जंगल देहरादून, हरिद्वार, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल, उधमसिंह नंगर, चंपावत जिलों में हैं. इन सभी जंगलों में आग लगने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है. (फोटो: गेटी)
जंगल की आग कई वजहों से लग सकती है. आमतौर पर ये प्राकृतिक कारणों से लगती हैं. लेकिन भारत में जंगल की आग ज्यादातर इंसानी गतिविधियों की वजह से लगती हैं. पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज की वजह से आग लगने की खबर आती है. जैसे पिछले दो सालों में ब्राजील के अमेजन के जंगलों में और ऑस्ट्रेलिया में लगी आग क्लाइमेट चेंज की वजह से लगी थी. (फोटो: गेटी)
भारत में जंगल की आग की घटनाएं सबसे ज्यादा मार्च और अप्रैल के महीने में सुनाई देती हैं. क्योंकि इस समय पहाड़ों पर सूखी लकड़ियां, सूखें पत्ते, सूखी घास, सूखी मिट्टी, वीड्स फैले रहते हैं. एक चिंगारी भी जंगल में भयावह आग को भड़का सकती है. प्राकृतिक तौर पर अत्यधिक गर्मी, सूखा और घर्षण की वजह से आग लगती है. लेकिन ज्यादातर मामलों में ये आग इंसानी गतिविधियों की वजह से लगती हैं. (फोटो: गेटी)
उत्तराखंड में मिट्टी में नमी कम है. साल 2019 और 2020 में उत्तराखंड में बारिश क्रमशः 18 फीसदी और 20 फीसदी कम हुई है. लेकिन वन विभाग की मानें तो जंगल की आग इंसानों द्वारा ही लगाई जाती है. कई बात तो जानबूझकर. कई बार लोग जलती हुई सिगरेट जंगल में छोड़ देते हैं. पिछले महीने ओडिशा के सिमलीपाल फॉरेस्ट में बड़ी आग लगी थी. ये आग महुआ के पत्तों को जमा कर रहे ग्रामीणों के द्वारा छोड़ी गई जलती हुई बीड़ी की वजह से लगी थी. (फोटो: गेटी)
One of the choppers deployed for combating #forestfires in #Uttarakhand filling the #BambiBucket from Tehri Lake before moving to the sensitive forest fire location. It can carry 3000-5000 L of water which can be sprinkled over the raging forest fire. @alok_bhatt @paragenetics pic.twitter.com/zmsbsqjY1e
— Dheeraj Pandey, IFS (@DrDheerajPandey) April 5, 2021
जंगल की आग को बुझाना एक बहुत बड़ा काम होता है. ये बेहद कठिन और समय लेने वाली प्रक्रिया होती है. पीक सीजन में वन विभाग, NDRF और अग्निशमन विभागों में स्टाफ की कमी की वजह से आग को बुझाना एक चुनौती बन जाती है. आग बुझाने की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर होता है कि समय पर वन विभाग का स्टाफ पहुंच जाए, ईंधन, उपकरण और पानी की कमी न हो. क्योंकि घने जंगलों में आग बुझाने का काम बेहद कठिन होता है. (फोटो: गेटी)
अब सवाल ये उठता है कि आग लगने से क्या नुकसान है? जंगलों के होने से क्लाइमेट चेंज को रोकने और कम करने में मदद करते हैं. ये कार्बन के स्रोत और रिजरवॉयर की तरह काम करते हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जंगलों के करीब 1.70 लाख गांव है. ये इन्हीं जंगलों से ईंधन के लकड़ियां, बांस, मवेशियों के लिए चारा और छोटे टिंबर लेते हैं. (फोटो: गेटी)
जंगलों की आग से कई तरह का नुकसान हो सकता है. इसका भयावह उदाहरण ऑस्ट्रेलिया में पिछले साल लगी आग थी. जिसकी वजह से करोड़ों जीवों की मौत हो गई. कई प्रजातियों के जीव और पेड़ पौधे खत्म हो गए. आग मिट्टी खराब होती है. पेड़ों का विकास रुक जाता है. जंगल का एक हिस्सा किसी काम का नहीं रहता. इसपर किसी भी प्रकार की उपज नहीं होती. (फोटो: गेटी)
जंगलों में आग लगने की वजह से गर्मी जेनरेट होती है उसकी वजह से जीव जंतुओं के निवास स्थान बर्बाद हो जाते हैं. मिट्टी की गुणवत्ता खत्म हो जाती है. या उनके जैविक मिश्रण में बदलाव आ जाता है. साल 2004 में FSI ने फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम नाम रियल टाइम लॉन्च किया था. इसका अत्याधुनिक वर्जन जनवरी 2019 में जारी किया गया. इसमें NASA और ISRO के सैटेलाइट्स के माध्यम से आकंड़े जुटाए जाते हैं. (फोटो: गेटी)
जंगल में आग की डिटेल जानकारी MODIS सेंसर्स के जरिए होती है. सैटेलाइट जंगलों को एक वर्ग किलोमीटर के ग्रिड में बांटता है. अगर किसी ग्रिड में आग की खबर सैटेलाइट को पता लगती है तो वह ईमेल, मैसेज या अन्य माध्यमों से राज्य, जिला, सर्किल, डिविजन और रेंज के स्तर पर भेज दिया जाता है. जनवरी 2019 में FSI के इस सिस्टम के देशभर में 66 हजार यूजर्स हैं. (फोटो: गेटी)
Uttarakhand: 4 persons & 7 animals died in fire that broke out in 62 hectares of forest area in last 24 hours
— ANI (@ANI) April 4, 2021
"12,000 guards & fire watchers of state forest dept deployed to douse fire. Fire destroyed property worth Rs 37 lakhs so far," says Principal Chief Conservator (fire) pic.twitter.com/nklHovXDKZ