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साइंस न्यूज़

अंतरिक्ष भेजे जाएंगे 'मैकेनिक सैटेलाइट', पुराने उपग्रहों की करेंगे मरम्मत

ESA Mechanic Satellite Project
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अंतरिक्ष में भेजे गए सैटेलाइट्स अगर खराब हो जाते हैं तो उन्हें निष्क्रिय मान लिया जाता है. उन्हें उसी हालत में छोड़ दिया जाता है. क्या हो अगर एक सैटेलाइट अंतरिक्ष में जाकर दूसरे खराब उपग्रह को ठीक करे दे. यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) अब ऐसे ही सैटेलाइट्स पर काम करने की योजना बना रही है जो अंतरिक्ष में जाकर दूसरे सैटेलाइट्स की रिपेयरिंग कर सकें. इन्हें 'मैकेनिक सैटेलाइट्स' का नाम दिया जा रहा है. (फोटोः गेटी)

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यूरोपियन स्पेस एजेंसी (European Space Agency- ESA) ने अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट्स में ईंधन भरने (Refuelling), नवीकरण (Refurbishment), रीसाइक्लिंग (Recycling) और संरक्षण (Maintenance) के लिए यूरोप की एक्सपर्ट कंपनियों और शैक्षणिक संस्थानों से आइडिया मांगा है. इस तरह की सेवाओं को इन-ऑर्बिट सर्विसिंग (In-Orbit Servicing) का नाम दिया जा रहा है. (फोटोः गेटी)

ESA Mechanic Satellite Project
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ESA के ओपन स्पेस इनोवेशन प्रोग्राम (Open Space Innovation Programme) पर आइडिया मांगे गए हैं. ESA के डायरेक्टर जोसेफ आशबैचर ने कहा कि जब लोग अपने आइडिया के साथ आएंगे तब हम उनसे मैकेनिक सैटेलाइट और किस सैटेलाइट की मरम्मत वो करना चाहते हैं, उसके बारे में सारी डिटेल्स लेंगे. ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि वो किस तकनीक से ये सारा काम करेंगे. (फोटोः गेटी)

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जोसेफ ने बताया कि अगले साल यानी 2022 में स्पेस एजेंसी के अगले मिनिस्ट्रियल काउंसिल बैठक में इस योजना पर चर्चा की जाएगी और आगे की प्लानिंग पर काम किया जाएगा. उन्होंने आगे कहा कि हमें अंतरिक्ष में मौजूद हमारी संपत्तियों के रखरखाव पर ध्यान देना होगा. इससे पर्यावरण और पैसे दोनों की बचत होगी. (फोटोः गेटी)

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किसी भी स्पेस मिशन को अत्याधुनिक तरीके से सुरक्षित और मजबूत बनाया जाता है. क्योंकि एक बार वो ऑर्बिट में पहुंच गए यानी अंतरिक्ष में पहुंच गए तो उन्हें ठीक करना बेहद मुश्किल काम होता है. वो खराब या निष्क्रिय होने के बाद धरती पर गिरते हैं. हालांकि कई बार वायुमंडल में आने के बाद सैटेलाइट जलकर खत्म हो जाते हैं. (फोटोः गेटी)

ESA Mechanic Satellite Project
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अगर यह टेक्नोलॉजी विकसित हो गई तो बार-बार एक सीरीज के अलग-अलग सैटेलाइट भेजने की दिक्कत खत्म हो जाएगी. एक मैकेनिक सैटेलाइट जाएगा और पुराने वाले सैटेलाइट को ठीक करके, उसमें ईंधन भरकर उसकी जिंदगी बढ़ा देगा. उसके बेकार पार्ट को बदल देगा. इससे सैकड़ों करोड़ रुपयों की बचत होगी. (फोटोः गेटी)

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जोसेफ ने कहा कि मैकेनिक सैटेलाइट्स (Mechanic Satellites) की जरूरत हर देश को पड़ने वाली है. ये एक अलग इंडस्ट्री बन सकती है. इससे स्पेस इंडस्ट्री में नई शुरुआत होगी. शुरुआत में जरूर थोड़े पैसे ज्यादा लगेंगे लेकिन बाद में यही निवेश काम आएगा. इससे भविष्य में कई स्पेस एजेंसियों के लॉन्च के पैसे, वैज्ञानिकों की मेहनत और समय की बचत होगी. उन्हें एक ही सीरीज का नया सैटेलाइट भेजने की जरूरत तब तक नहीं पड़ेगी, जब तक बेहद जरूरी न हो. (फोटोः गेटी)

ESA Mechanic Satellite Project
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पिछले कुछ सालों में ESA ने ऐसी तकनीक, इंडस्ट्री और सिस्टम आर्किटेक्चर के विश्लेषण में 50 मिलियन यूरो यानी 431 करोड़ रुपयों से ज्यादा का निवेश किया है. इसके अलावा ESA ने स्पेस में जाने के लिए नए ट्रांसपोर्टेशन सर्विसेज में भी निवेश किया है. (फोटोः गेटी)

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ESA ने कहा है कि वह ऑर्बिट में मौजूद उसके सैटेलाइट्स को ठीक करने के लिए भविष्य में 100 मिलियन यूरो यानी 862 करोड़ रुपयों से ज्यादा का निवेश करने की तैयारी में है. इसमें गाइडेंस, नेविगेशन और कंट्रोल को लेकर भी काम किया जाएगा. इस मिशन को साल 2025 में लॉन्च किया जाएगा. ताकि धरती के चारों तरफ मौजूद स्पेस के कचरे को साफ किया जा सके. (फोटोः गेटी)

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पिछले साल ESA ने निजी कंपनी नॉर्थरोप ग्रुमेन की मदद से इन-ऑर्बिट सर्विसिंग (In-Orbit Servicing) के लिए इंटेसैट901 (IntelSat901) को जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में लॉन्च किया था. इसका काम था यूरोपियन सैटेलाइट्स में ईंधन के क्षमताओं की जांच करना. उनके ईंधन की जानकारी धरती पर मौजूद बेस स्टेशन को देना ताकि समय रहते उनके सोलर पैनल्स और ईंधन की मात्रा को सही किया जा सके. (फोटोः गेटी)

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