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Sharad Purnima Vrat Katha: शरद पूर्णिमा व्रत कथा से भक्तों की सारी मनोकामनाएं होंगी पूरी, धन-संपत्ति की भी होगी प्राप्ति

माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. ऐसे में धन की प्राप्ति के लिए ये दिन सबसे उत्तम है. शरद पूर्णिमा व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है भी है. कहते हैं इस कथा का पाठ करने से बड़ी से बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं. आइए जानते हैं कि वह कथा क्या है.

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Sharad Purnima Vrat Katha
Sharad Purnima Vrat Katha

हिन्दू काल गणना के अनुसार साल का सातवां महीना आश्व‍िन मास होता है. इस महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के तौर पर मनाया जाता है. इस शरद पूर्णिमा के अलावा कोजोगार पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करके हवन करना चाहिए. ऐसा करने से  माता लक्ष्मी खुश होती हैं और भक्तों को धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा प्रदान करती हैं.

शरद पूर्णिमा को शुभ दिन माना जाता है. मान्यता तो ये भी है कि इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था. ऐसे में धन की प्राप्ति के लिए ये दिन सबसे उत्तम है. शरद पूर्णिमा व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा है भी है. कहते हैं इस कथा का पाठ करने से बड़ी से बड़ी विपत्तियां टल जाती हैं.

क्या है शरद पूर्णिमा व्रत कथा

किसी नगर में एक  साहूकार रहता था. उसकी दो बेटियां थी. दोनों बेटियां हर महीने में आने वाली पूर्णिमा के दिन व्रत रखा करती थीं. इनमें बड़ी बड़ी बेटी अपना व्रत पूरे विधि-विधान से पूरा करती थी. वहीं, छोटी बेटी व्रत के नियमों का सही ढंग से पालन नहीं करती थी. कई सालों तक ऐसा ही चलता रहा. दोनों बेटियां जब बड़ी हुईं तो साहुकार पिता ने उनकी शादियां करा दी. बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान ने जन्म लिया.वहीं, छोटी बेटी को संतान तो हुई लेकिन, उसकी संतान ने जन्म लेने के तुरंत बाद दम तोड़ दिया.इस तरह छोटी बेटी के साथ ये लगातार दो से तीन बार हो गया.

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अपने साथ हो रही चीजों से परेशान होकर साहुकार की छोटी बेटी ने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी पीड़ा बताई और उनसे समाधान मांगा. इसपर ब्राह्मण ने उससे कुछ सवाल पूछे. उन सवालों के जवाब मिलने के बाद ब्राह्मण ने कहा कि  तुमने पूर्णिमा का व्रत तो किया है लेकिन हमेशा अधूरा व्रत करती हो.इसलिए तुम्हें व्रत का पूरा फल नहीं मिल पा रहा है.दरअसल, तुम्हें अधूरे व्रत का दोष लग रहा है.ब्राह्मण की बात सुनकर लड़की थोड़ी दुखी हुई.फिर उसने पूरे विधि-विधान से पूर्णिमा व्रत को करने का निर्णय लिया.

हालांकि, पूर्णिमा आने से पहले साहुकार की छोटी बेटी ने एक बेटे को जन्म दिया. जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु हो गई. इससे वह काफी दुखी हुई. उसने अपने बेटे के शव को एक पीढ़े पर रखा। इसे एक कपड़े से इस तरह ढका कि किसी को पता न चले.इसके बाद उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया.उन्हें बैठने के लिए उसने वही पीढ़ा दे दिया.जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगती है तो उसके लहंगे का हिस्सा बच्चे में स्पर्श हुआ और वह जीवित होकर रोने लगा.अचानक ऐसा कुछ होने से बड़ी बहन घबरा गई और उसने छोटी बहन को डांट लगाई कि उसपर अभी बच्चे की हत्या का कलंक लग जाता. 

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बड़ी बहन को गुस्सा होते देख छोटी बहन ने उसे शांत करते हुए कहा कि दीदी बच्चा मरा हुआ ही था. तुम्हारे स्पर्श से पुनर्जीवित हो गया. हर पूर्णिमा पर जो तुम व्रत और तप किया करती थी, उसके कारण तुम्हें वरदान प्राप्त है और तुम पवित्र हो गई हो दीदी, अब मैं भी तुम्हारी तरह शरद पूर्णिमा व्रत पर विधि- विधान से पूजन करूंगी. इसके बाद से ही इस व्रत के महत्व और फल का प्रचार पूरे नगर में प्रसिद्ध हो गया और इस वाकये को शरद पूर्णिमा व्रत कथा के तौर पर कहा जाने लगा. माना जाता है कि शरद पूर्णिमा व्रत कथा कहने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती है.

कैसे करें लक्ष्मीनारायण की पूजा

कहा जाता है कि इस दिन लक्ष्मीनारायण की पूजा पूरे विधि विधान से करनी चाहिए. फिर रात में खीर बनाकर उसे रात में आसमान के नीचे रख दें ताकि चंद्रमा की चांदनी का प्रकाश खीर पर पड़े. दूसरे दिन सुबह स्नान करके खीर का भोग अपने घर के मंदिर में लगाएं कम से कम 3 ब्राह्मणों को खीर प्रसाद के रूप में दें. इसके बाद ही अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटें. मान्यता है कि इस प्रसाद को ग्रहण करने से कई प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है.

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