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धर्म

मरने के बाद हमारे साथ क्या होता है?

मरने के बाद हमारे साथ क्या होता है?
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जब हम मरने लगते हैं तो हमारे शरीर के साथ क्या होता है? हमारी आत्मा कहां जाती है? अगर आप थोड़े धार्मिक व्यक्ति हैं तो आप यही कहेंगे कि हम मरने के बाद या तो स्वर्ग या नर्क जाएंगे. अगर जीवन भर अच्छे कर्म करते हैं तो आप स्वर्ग जाएंगे और अगर आपने पाप किए हैं तो आप नर्क जाएंगे. लेकिन इनके इतर मौत के मुंह से लौटकर आने वाले लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं. इन लोगों ने बताया कि जब वे मृत्यु के बिल्कुल करीब पहुंच गए थे तब उनके साथ क्या हुआ और उनका 'मौत' का अनुभव कैसा था.
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अधिकतर धार्मिक व्यक्तियों का मानना है कि आत्मा कभी नष्ट नहीं होती है. आत्मा केवल एक शरीर को छोड़ती है और शरीर मृत हो जाता है. मानव अस्तित्व का क्या होता है? क्या यह पृथ्वी पर भूत-प्रेत के रूप में भटकती रहती है या फिर मानव अस्तित्व से परे कोई और दुनिया है जो अस्तित्व में है. कोमा में पहुंच गए कई मरीजों ने मौत के मुंह से लौट आने के बाद अपने अनुभव बताए हैं. इनमें से कुछ लोगों का दावा है कि उन्होंने एक सुरंग देखी जिसके आखिरी छोर से भरपूर प्रकाश नजर आ रहा था. क्या ये दूसरी दुनिया की झलक होती है? खैर हम निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकते हैं.
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मरने से कुछ क्षण पहले ऐप्पल फाउंडर स्टीव जॉब्स को  'ओह वाउ, ओह वाउ, ओह वाउ' कहते हुए सुना गया था. यह कहने के कुछ ही सेकंड बाद उनकी मौत हो गई. उनके आखिरी शब्दों का क्या मतलब था? क्या वह मरते समय बहुत ही खुशी का अनुभव कर रहे थे. क्या वह कैंसर के दर्द से मुक्ति का अनुभव कर रहे थे या फिर वह कुछ ऐसा देख रहे थे जो हमारी कल्पना से परे हो. क्या वह कोई ऐसी 'जगह' थी जहां वह जाने वाले थे?

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मौत के बाद की जिंदगी-

मानव का स्वभाव होता है कि वह मौत से डरता है, यहां तक कि वह मौत पर बात करने से भी डरता है औऱ मौत के बाद होने वाले घटनाक्रमों से भी. जबकि हम सब को पता है कि मानव इतिहास में अमरता किसी को हासिल नहीं हुई है तो फिर यह डर कैसा? यह भय कैसा? क्या मौत से भागने की हमारी आदत, मौत से सामना ना कर पाने की हमारी अक्षमता हमारे बुढ़ापे में हमारी स्थिति को और दयनीय नहीं बनाती है? ऐसे में क्या पुनर्जन्म की अवधारणा एक और उम्मीद नहीं बंधाती है?
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शरीर से बाहर आने का अनुभव-
एक थ्योरी यह भी कहती है कि मौत के बाद मृत शरीर से आत्मा निकलती है. कोमा स्टेज में पहुंचे कई लोग ऐसे अनुभव के बारे में बताते हैं. एक्सीडेंट के बाद मौत के मुंह से लौटकर आए कुछ लोगों का अनुभव है कि उन्होंने उस समय में अपने शरीर को देखा. इससे भी यही लगता है कि आत्मा और शरीर दो अलग-अलग चीजें है. एक जो क्षय हो जाती है और दूसरी कभी ना खत्म और नष्ट होने वाली आत्मा.
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मौत का करीब से साक्षात्कार करने वाले कई अनुभव दिन पर दिन सामने आ रहे हैं. एक स्टडी के मुताबिक, 10 में से एक कार्डियक अरेस्ट सर्वावइवर हार्ट फेल होने के दौरान कुछ अजीबोगरीब अनुभव किए.

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मौत को करीब से देखकर लौट आने वाले एक शख्स ने इसे कुछ इस तरह से बताया, 'अचानक से वह मेरे ऊपर आ गया औऱ मैं उसमें समा गया. मैं उस प्रकाश में था और मैं एक बहुत ही सुंदर जगह पर था. यह मानवीय नहीं था इसलिए इसे मानवीय ढंग में समझा पाना मुश्किल है लेकिन वह जो कुछ भी था, बहुत खूबसूरत था. यह सपने से अलग था जिसमें सब कुछ धुंधला होता है,  सब कुछ बिल्कुल साफ था.'



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यहां पर आईसीयू में भर्ती एक और महिला की कहानी है. उस महिला ने बताया, अचानक से मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरा पूरा शरीर किसी प्रकाश की तरफ खिंचा चला जा रहा है. मैंने खुद को एक सुरंग में पाया और मुझे पता था कि मैं मर चुकी हूं. मशीनों की आवाज और दवाइयों की महक से दूर वहां बिल्कुल शांति थी. भयंकर दर्द के बजाए मैं बहुत ही हल्का और राहत महसूस कर रही थी. मुझे पूरा एहसास था कि क्या हो रहा है फिर भी मुझे बिल्कुल डर नहीं लग रहा था. उस सुरंग के अंत में एक गेट नजर आ रहा था. इसके बाद मैं आईसीयू में जाग चुकी थी और मुझे नहीं याद कि उसके बाद क्या हुआ.
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वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

वैज्ञानिक इसकी व्याख्या अपनी भाषा में करते हैं. उनका कहना है कि ऐसे अनुभव तब होते हैं जब क्वांटम पदार्थ नर्वस सिस्टम को छोड़ चुके होते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के डॉक्टर स्टुअर्ट हैमरऑफ का दावा है कि हमारी आत्मा का सार मष्तिष्क की कोशिकाओं में माइक्रोट्यूबुलस में होता है. जब हार्ट काम करना बंद कर देता है तो ये यूनिवर्स में वितरित होना शुरू हो जाती है और अगर व्यक्ति जीवित बच जाए तो फिर से लौटने लगता है. कुछ लोगों का कहना है कि मौत के ये अनुभव एक मनोवैज्ञानिक प्रत्यय हैं. दिमाग में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों की वजह से ऐसे अनुभव होते हैं.
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आईसीयू में मौत को करीब से देखने का दावा करने वाली महिला बताती हैं, मेरी 'मौत' (मौत के करीब पहुंचकर जिंदा बचना) मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पाइंट साबित हुआ. अभी तक मैं यही सोच सोच कर परेशान रहती थी कि लोग क्या कहेंगे. लेकिन जब मैं मरते मरते बच गई तो मैंने प्रतिज्ञा ली कि अब केवल अच्छे दिनों के साथी मेरी जिंदगी का हिस्सा नहीं होंगे. अब मुझे मौत से बिल्कुल भी डर नहीं लगता और अब मैंने जिंदगी से भी डरना छोड़ दिया है. उस दिन से लेकर आज तक मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मरने के बाद हमारे साथ क्या होता है?
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कुछ भी हो, आफ्टरलाइफ के इन अनुभवों को सुनकर एक उम्मीद तो बंधती है औऱ हम मौत को स्वीकराने में ज्यादा सहज हो पाते हैं. मौत को स्वीकारने पर जिंदगी के एक-एक दिन की कीमत और अच्छे से समझ पाते हैं.


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