हिंदू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन और तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. दुनिया में करीब एक अरब हिंदू हैं. तर्क यह भी है कि हिंदू केवल एक धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने की एक पद्धति है. हिंदू धर्म का ना ही कोई संस्थापक है और ना ही, एक पवित्र पुस्तक. कई लोगों के लिए हिंदू धर्म एक रहस्य की तरह है. खासकर विदेशों में हिंदू धर्म को लेकर कई गलत धारणाएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही मिथकों के बारे में...
मिथक: हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं.
हिंदू धर्म में एक सर्वोच्च ईश्वर है जिन्हें पूरी तरह से समझना और जानना संभव नहीं है. हिंदुओं को भगवान के उस रूप की उपासना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिसमें उन्हें आनंद मिलता हो. भगवान के कई प्रतिरूप माने गए हैं. जैसे त्रिमूर्ति में से भगवान ब्रह्मा को सृजनकर्ता, विष्णु को संरक्षक और शिव को विनाशक माना जाता है. अक्सर हिंदू धर्म को बहुदेववादी माना जाता है. जबकि ऐसा नहीं है. कुछ लोग इसे एकेश्वरवादी धर्म मानते हैं. ऊपरी तौर पर देखने पर हिंदू धर्म में अनेकेश्वरवाद ही नजर आता है लेकिन अनेक देवी-देवताओं की सत्ता एक ही ईश्वर माना जाता है. कुछ लोग हिंदू धर्म को हिनोथीस्टिक मानते हैं जिसमें बिना दूसरे देवता के अस्तित्व को नकारे हुए किसी अन्य देवता की पूजा की जाती है.
मिथक-2: हिंदुओं के लिए श्रीमद्भगवद्गीता बाइबल की तरह है.
हिंदुओं का कोई एक आधिकारिक धर्म ग्रन्थ नहीं है. हिंदू धर्म में अनेक ग्रन्थ मौजूद हैं. हिंदुओं का मानना है कि भगवान ने पृथ्वी के बुद्धिमान लोगों को ज्ञान दिया जो हजारों सालों से मौखिक परंपरा से पीढ़ी-दर पीढ़ी चला आ रहा है. वेद, उपनिषद, पुराण और श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म के कई अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं. महाकाव्य महाभारत का अंश श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन और कृ्ष्ण भगवान के बीच हुए संवाद का वर्णन है. इसमें हिंदू धर्म के कई विश्वास समाहित हैं लेकिन सभी हिंदू अनिवार्य रूप से श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ नहीं करते हैं.
मिथक: हिंदू मूर्ति पूजा करते हैं- कोई भी हिंदू यह नहीं कहेगा कि वह मूर्ति की पूजा कर रहा है. हिंदू मूर्ति के स्वरूप में भगवान के मूर्त रूप की पूजा करते हैं. इससे हिंदुओं को प्रार्थना में ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है. उदाहरण के लिए, किसी शख्स ने कोई नया बिजनेस खोला हो तो वह भगवान गणेश की पूजा कर सकता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश सफलता दिलाने के देव हैं.
मिथक: भाग्यवाद पर आधारित कर्म
हिंदू धर्म में मान्यता है कि अतीत में किए गए कर्मों का फल हर इंसान को भुगतना पड़ता है. हर शख्स अपने कार्यों से अपना भाग्य निर्धारित करता है. अंतिम सत्य कर्म ही है जिससे आत्मा को मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी.
मिथक: हिंदू गाय की पूजा करते हैं.
हिंदू धर्म में विश्वास है कि हर जीव-जन्तु में आत्मा है. हिंदू धर्म में प्रकृति के कई अवयवों की पूजा की जाती है. हालांकि यह सच है कि हिंदू समाज में गाय को खास दर्जा दिया गया है इसीलिए हिंदुओं के लिए बीफ का सेवन वर्जित माना गया है. गाय में मातृत्व का स्वरूप देखा जाता है क्योंकि यह दूध और अन्य उत्पाद उपलब्ध कराती है.
मिथक: हिंदू धर्म भेदभावपूर्ण जाति व्यवस्था का समर्थन करता है.
जाति व्यवस्था की जड़ें हिंदू धर्म में नहीं बल्कि सामाजिक व्यवस्था में जमी हुई हैं. जाति व्यावसायिक वर्ग के वर्गीकरण की एक प्राचीन व्यवस्था थी जो साल दर साल एक दृढ़ सामाजिक व्यवस्था में तब्दील हो गई. निचली जातियों को सामाजिक व्यवस्था में भेदभाव का शिकार होना पड़ा. कई आधुनिक हिंदू भी यह तर्क देते हैं कि जातिगत भेदभाव हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है और इसे धार्मिक स्वीकृति कभी नहीं मिली.
मिथक: बिंदी लगाने वाली हिंदू महिलाएं शादीशुदा होती हैं- विदेशों में कई लोगों की धारणा है कि बिंदी लगाने वाली महिलाएं विवाहित होती हैं. कभी हिंदू धर्म में बिंदी या लाल रंग का टीका शादीशुदा होने का प्रतीक माना जाता था लेकिन आजकल कई अविवाहित हिंदू लड़कियां फैशन या सजने के लिए बिंदी लगाती हैं. कई बार पूजा में धार्मिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु भी चंदन का टीका लगाया जाता है.
मिथक: सभी हिंदू शाकाहारी होते हैं
बहुत से हिंदू मांस खाते हैं. हालांकि 30 प्रतिशत हिंदू मांस का सेवन नहीं करते हैं. इसके पीछे अहिंसा का सिद्धांत है. हिंदू धर्म मानता है कि सभी जीवों में भगवान बसते हैं इसलिए उनके खिलाफ हिंसा ब्रहमाण्ड में प्राकृतिक असंतलुन भी पैदा कर सकता है.
मिथक: हिंदू धर्म में महिलाओं की स्थिति कमतर
हिंदू धर्म में देवियों की पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में शक्ति की उपासना भी की जाती है जो एक शक्तिशाली स्त्री की प्रतीक हैं. कई लोग पार्वती मां की पूजा भी करते हैं, इसके अलावा सरस्वती और लक्ष्मी की भी पूजा हिंदू धर्म में की जाती है.
भारत में महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा नहीं मिला है. लेकिन यह धर्म की वजह से नहीं बल्कि कुछ लोग धर्म और संस्कृति के नाम पर महिलाओं को बराबरी के अधिकार से वंचित करते रहते हैं. वेदों में ऐसा कोई भी निर्देश नहीं दिया गया है जिससे महिलाओं को कमतर आंका जा सके.