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Utpanna Ekadashi 2023 Date: उत्पन्ना एकादशी कल...जानें पूजन विधि और सावधानियां और नियम

Utpanna Ekadashi 2023 Date: 8 दिसंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा. उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्य, संतान प्राप्ति और मोक्ष के लिए किया जाता है. यह व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. आइए इस एकादशी का महत्व और पूजन विधि जानते हैं.

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Utpanna Ekadashi 2023 Date: कब है उत्पन्ना एकादशी, जानें पूजन विधि और सावधानियां और नियम
Utpanna Ekadashi 2023 Date: कब है उत्पन्ना एकादशी, जानें पूजन विधि और सावधानियां और नियम

Utpanna Ekadashi 2023 Date: व्रतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्रत एकादशी का होता है. एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन कि चंचलता समाप्त होती है. धन और आरोग्य की प्राप्ति होती है. 8 दिसंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा. उत्पन्ना एकादशी का व्रत आरोग्य, संतान प्राप्ति और मोक्ष के लिए किया जाता है. यह व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. आइए इस एकादशी का महत्व और पूजन विधि जानते हैं.

उत्पन्ना एकादशी व्रत के नियम
यह व्रत दो तरह से रखा जाता है- निर्जला और फलाहारी या जलीय व्रत. निर्जल व्रत को स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए. अन्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखना चाहिए. इस व्रत में दशमी को रात में भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी को सुबह श्री कृष्ण की पूजा की जाती है. इस व्रत में सिर्फ फलों का ही भोग लगाया जाता है. इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाता है.

उत्पन्ना एकादशी के विशेष प्रयोग
प्रातः काल पति-पत्नी संयुक्त रूप से श्री कृष्ण की उपासना करें. उन्हें पीले फल, पीले फूल, तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करें. इसके बाद संतान गोपाल मन्त्र का जाप करें. मंत्र होगा - "ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते, देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणम गता". पति पत्नी एक साथ फल और पंचामृत ग्रहण करें.

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उत्पन्ना एकादशी से जुड़ी सावधानियां
उत्पन्ना एकादशी के दिन तामसिक आहार पूरे दिन नहीं करना है. किसी से भी बुरा व्यवहार नहीं करना है. प्रभु विष्णु को अर्घ्य दिए बिना दिन की शुरुआत न करें. केवल हल्दी मिले हुए जल से ही अर्घ्य दें. अर्घ्य के लिए रोली या दूध का इस्तेमाल न करें. सेहत ठीक न हो तो उपवास न रखें. सेहत ठीक न होने पर केवल बाकी नियमों का पालन करें.

उत्पन्ना एकादशी की पूजन विधि
उत्पन्ना कादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प लें. नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद भगवान की पूजा करें, कथा सुनें. पूरे दिन व्रती को बुरे कर्म करने वाले, पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचें. जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए श्रीहरि से क्षमा मांगें. द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं. दान-दक्षिणा देकर अपने व्रत का समापन और पारण करें.

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