अपनी नीतियों के बल पर नंद वंश को उखाड़ फेंकने वाले आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति शास्त्र में कई ऐसी नीतियों का वर्णन किया है जिसकी मदद से मनुष्य अपने जीवन के कष्टों को दूर कर सकता है. 'चाणक्य नीति' के चौथे अध्याय में वो तीन ऐसे लोगों के बारे में बताते हैं जिनका कथित तौर पर दो बार जन्म होता है. साथ ही वो अगले श्लोक में बताते हैं कि सबके लिए पूजनीय माने जाने वाले ब्राह्मण के लिए पूजनीय कौन है. आइए जानते हैं इनके बारे में...
अग्निर्देवो द्विजातीनां, मुनीनां हृदि दैवतम्।
प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनां, सर्वत्र समदर्शिनः।।
चाणक्य नीति के चौथे अध्याय में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का जन्म दो बार होता है, एक बार माता के गर्भ से और दूसरी बार गुरु द्वारा ज्ञान दिए जाने पर. इसलिए इन्हें द्विजाति कहा जाता है. इनके आराध्य देव अग्नि हैं.
इसके विपरीत, मुनियों के देवता उनके हृदय में निवास करते हैं. अल्प-बुद्धि वाले मनुष्य के लिए प्रतिमाओं में देवता वास करते हैं. लेकिन जो मनुष्य संपूर्ण जगत को एक समान भाव से देखता है, उनके देवता जगत के कण-कण में विद्यमान होते हैं.
गुरुरग्निर्द्विजातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः।
पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याभ्यगतो गुरुः।।
चाणक्य नीति के पांचवें अध्याय के पहले श्लोक में चाणक्य ने गुरु का जिक्र किया है. वो कहते हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए अग्नि ही गुरु के समान है. चूंकि ब्राह्मण चारों वर्णों द्वारा पूजनीय है, इसलिए वह सबका गुरु है. इसी प्रकार स्त्रियों के लिए पति ही सबकुछ है.
लेकिन चाणक्य ने अतिथि को सभी के लिए सम्माननीय और पूजनीय कहा है. इस संदर्भ में वे तर्क देते हुए कहते हैं कि अतिथि केवल आतिथेय का कल्याण ही चाहता है. उसमें उसका कोई स्वार्थ निहित नहीं होता, इसलिए वह श्रेष्ठ है.