आचार्य चाणक्य ने अपनी किताब चाणक्य नीति में कई ऐसी नीतियों का उल्लेख किया है जिससे जीवन में आने वाली बाधाओं से पार पाया जा सकता है. चाणक्य की नीतियां आज भी कारगर मानी जाती हैं. चाणक्य ने कई ऐसी नीतियों और उपायों का जिक्र अपने नीति शास्त्र में किया है, जिसे अपनाकर जीवन के दुखों को दूर किया जा सकता है. चाणक्य ने एक श्लोक के माध्यम से बताया है कि हर इंसान के पास पांच प्रकार के पिता होते हैं. चाणक्य कहते हैं-
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैता पितरः स्मृताः॥
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि संस्कार के हिसाब से हर इंसान के पांच तरह के पिता होते हैं, जो इस प्रकार से हैं- विद्या देनेवाला, भय से रक्षा करने वाला, जन्म देने वाला, उपनयन संस्कार करनेवाला और अन्नदाता. चाणक्य कहते हैं कि हालांकि व्यवहार में पिता का मतलब जन्म देनेवाला होता है.
श्लोक-
संसारातपदग्धानां त्रयो विश्रान्तिहेतवः।
अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च॥
इस श्लोक के जरिए चाणक्य कहते हैं कि इंसान को सांसारिक ताप से जलते हुए तीन चीजें आराम दे सकती हैं, जो हैं- पत्नी, पुत्र और अच्छे लोगों का साथ.
चाणक्य एक अन्य श्लोक में कहते हैं-
एकाकिना तपो द्वाभ्यां पठनं गायनं त्रिभिः।
चतुर्भिगमन क्षेत्रं पञ्चभिर्बहुभि रणम्॥
इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य कहते हैं कि तप एक ऐसा काम है जिसे अकेले करना चाहिए. चाणक्य आगे कहते हैं कि पढ़ने के लिए दो लोग, गाने के लिए तीन लोग, एक साथ जाने के लिए चार लोग, खेत में पांच लोग, जबकि युद्ध में अनेक लोग होने चाहिए.
चाणक्य कहते हैं-
अपुत्रस्य गृहं शून्यं दिशः शून्यास्त्वबान्धवाः।
मूर्खस्य हृदयं शून्यं सर्वशून्यं दरिद्रता॥
इस श्लोक के जरिए चाणक्य ने कहा है कि जिसका कोई पुत्र न हो उसका घर सन्नाटा हो जाता है. आगे चाणक्य कहते हैं कि जिसके भाई ना हों उनके लिए दिशाएं सुनी हो जाती हैं, वहीं मूर्ख इंसान का दिल सुना हो जाता है और गरीब इंसान के लिए संसार सुनसान हो जाता है.
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