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Bhishma Ashtami 2022: भीष्म पितामह को कैसे मिला इच्छा मृत्यु का वरदान ? यहां पढ़ें भीष्म अष्टमी की रोचक कथा

Bhishma Ashtami 2022: माघ मास की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाती है. इस बार ये पर्व 8 फरवरी दिन मंगलवार को है. इस दिन सूर्य देव उत्तरायण होते हैं. इसी दिन महाभारत के बाद 8 दिनों तक बाणों की शैया पर लेटे रहे भीष्म पितामह ने अपनी देह का त्याग किया था. भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. ये वरदान भीष्म के उनके पिता ने दिया था.

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Bhishma Ashtami 2022
Bhishma Ashtami 2022
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भीष्म पितामह को पिता से मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान
  • महाभारत के बाद भीष्म पितामह ने त्यागी थी अपनी देह

Bhishma Ashtami 2022: महाभारत के युद्ध के बारे में तो जानते ही होंगे. कौरव और पांडवों के बीच कुरुक्षे‍त्र में हुआ ये युद्ध 18 दिनों तक चला था. इस युद्ध में पहले 10 दिनों तक कौरवों की ओर से भीष्म पितामह सेनापति थे.10वें दिन अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर भीष्म पर तीरों की वर्षा कर दी. अर्जुन के तीरों से छलनी भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर आ गए. लेकिन भीष्म पितामह की मृत्यु नहीं हुई, क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. अपनी देह का त्याग करने के लिए भीष्म पितामह ने उत्तरायण का इंतजार किया था. माघ माह की अष्टमी के दिन उन्होंने अपनी देह का त्याग किया था. इस बार भीष्म अष्टमी 8 फरवरी दिन मंगलवार को है. आइये जानते हैं भीष्म पितामह को कैसे मिला था इच्छा मृत्यु का वरदान ?    

ये है कथा... 

भीष्म पितामह के बचपन का नाम था देव व्रत 
पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म पितामह राजा शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे. उनके जन्म के बाद देवी गंगा ने उन्हें देव व्रत नाम दिया गया था. देव व्रत ने महर्षि पशुराम से शास्त्र विद्या प्राप्त की, जिसके बाद देवी गंगा देव व्रत के उनके पिता राजा शांतनु के पास ले गईं थीं. राजा शांतनु ने देव व्रत को हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित कर दिया. कुछ दिन गुजरने के बाद राजा शांतनु को सत्यवती नाम की एक एक स्त्री से प्यार हो गया और उन्होंने उनसे विवाह करने का मन बना लिया, लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से विवाह करने के लिए एक शर्त रख दी. शर्त के मुताबिक राजा शांतनु और उनकी बेटी सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा तभी वह अपनी बेटी का हाथ राजा शांतनु के हाथ में देंगे. अपने पिता पर आए इस धर्म संकट को देखते हुए देव व्रत ने पिता के प्यार की खातिर अपना राज्य त्याग कर पूरे जीवन शादी ना करने का प्रण ले लिया था,और ऐसे भीष्म प्रण और प्रतिज्ञा के कारण ही देवव्रत का नाम भीष्म हो गया.

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पिता ने दिया ये वरदान 
यह सब देखने के बाद राजा शांतनु अपने बेटे से प्रसन्न हुए और उनको इच्छा मृत्यु का वरदान दिया. वक्त के साथ-साथ हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी बड़े हो गए. कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ. महाभारत के इस युद्ध में भीष्म पितामह ने अपना कर्तव्य निभाते हुए कौरवों का साथ दिया. भीष्म पितामह ने पूरी निष्ठा के साथ युद्ध में कौरवों की तरफ से युद्ध किया. इस युद्ध में पहले 10 दिनों तक कौरवों की ओर से भीष्म पितामह सेनापति थे. 10वें दिन अर्जुन ने शिखंडी को ढाल बनाकर भीष्म पर तीरों की वर्षा कर दी. अर्जुन के तीरों से छलनी भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर आ गए. हिन्दू मान्यता के मुताबिक जो भी जातक सूर्य उत्तरायण के दिन अपना शरीर छोड़ता है, उस जातक को मोक्ष मिलता है, इसी कारण से उत्तरायण के दिन भीष्म अष्टमी मनाई जाती है, ऐसी भी मान्यता है कि भीष्म अष्टमी के दिन पूजा-पाठ करने और कथा सुनने से व्यक्ति को संस्कारी संतान का सुख प्राप्त होता है. 

 

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