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Basant Panchami 2022: बसंत पंचमी के दिन क्यों होती है कामदेव और रति की पूजा? जानें वजह

Basant Panchami 2022: कामदेव भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पुत्र हैं. उनकी पत्नी का नाम रति है. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के साथ ही प्रेम के देवता कामदेव और रति की पूजा करने की भी परंपरा है. यहां पढ़ें पौराणिक कथा...

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कामदेव
कामदेव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पुत्र हैं कामदेव
  • कामदेव और रति का पृथ्वी पर होता है आगमन

Basant Panchami 2022: माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को 5 फरवरी दिन शनिवार को बसंत पंचमी मनाई जाएगी. आज के दिन विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा होती है. इसके अलावा इस दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की भी पूजा करने की भी परंपरा है. मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी पर प्रेम के देवता कामदेव और रति का आगमन होता है, जिसकी वजह से बसंत में सभी जीवों में प्रेम भाव का संचार होता है. आइये बताते हैं कौन थे कामदेव और रति और पंचमी को क्यों होती है उनकी पूजा...

 क्यों होती है कामदेव और रति की पूजा
बसंत पंचमी से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है.  न अधिक सर्दी, न अधिक गर्मी होने के कारण वसंत ऋतु का समय बड़ा सुहावना होता है. साथ ही इस ऋतु में प्रकृति का वैभव दर्शनीय होता है. इसलिए बसंत पंचमी पर सृष्टि की इस अनुपम छटा का लुत्फ उठाने के लिए कामदेव और रति का पृथ्वी पर आगमन होता है. उनके आने से इस ऋतु में सभी जीवों में प्रेम भाव का संचार होता है. इसी वजह से बसंत पंचमी पर कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा करने की परंपरा है.

कौन हैं कामदेव
प्रेम के देवता कामदेव भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पुत्र हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, कामदेव ने समाधि में लीन शिव जी का ध्यान भंग कर दिया था. जिससे क्रोधित होकर शिव जी ने कामदेव को अपने त्रिनेत्र से जला कर भस्म कर दिया था. कामदेव को भस्म स्वरूप में देख उनकी पत्नि रति विलाप करने लगीं, तब भगवान शिव ने उनको आशीर्वाद दिया कि कामदेव भाव रूप में मौजूद रहेंगे. वे मरे नहीं हैं, वे अनंग हैं, क्योंकि उनका शरीर नष्ट हो गया है, वे अब बिना अंग वाले हो गए हैं. शिव जी ने द्वापर युग में कामदेव को दोबारा शरीर प्राप्त होने का वरदान दिया, जिसके बाद द्वापर युग में कामदेव को भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में फिर से शरीर प्राप्त हुआ.

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इस मंत्र से करें रति और कामदेव का ध्यान
ॐ वारणे मदनं बाण - पाशांकुशशरासनान्।
धारयन्तं जपारक्तं ध्यायेद्रक्त - विभूषणम्।।
सव्येन पतिमाश्लिष्य वामेनोत्पल - धारिणीम्।
पाणिना रमणांकस्थां रतिं सम्यग् विचिन्तयेत्।।

 

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