दीपावली के मौके पर लोगों में जो उत्साह नजर आता है, उसके पीछे कई कारण हैं. फुलझड़ी-पटाखे तो केवल क्षणिक सुख ही दे सकते हैं. असली सुख तो है नीरोग काया, जिस पाने के बाद ही कुछ अन्य सुख का लाभ महसूस किया जा सकता है.
धनतेरस के मौके पर ज्यादातर लोग सोना-चांदी, धन-वैभव अपने घर लाने में ज्यादा तत्परता दिखाते हैं और सेहत को ही भूल जाते हैं. होना तो यह चाहिए कि धनतेरस पर आरोग्य के देवता धन्वंतरी की पूजा-अर्चना की जाए और दैनिक जीवन में संयम-नियम आदि का पालन किया जाए.
स्वास्थ्य से ही मिलेंगी लक्ष्मी
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं. देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं, परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए. यही कारण है दीपावली के पहले, यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं.
त्रयोदशी के दिन धन्वंतरी का जन्म
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस मनाया जाता है. धन्वंतरी जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था. भगवान धन्वंतरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है. कहीं-कहीं लोक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन खरीददारी करने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है. इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं. दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं.
धन्वंतरी के बारे में मान्यताएं
1. धन्वंतरी को हिन्दू धर्म में देवताओं के वैद्य माना जाता है. ये एक महान चिकित्सक थे, जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं. इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था. शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था. इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था.
2. इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं, जिनकी चार भुजायें हैं. ऊपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुए हैं, जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं. इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है. इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है.
3. इन्हें आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं. इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी. इनके वंश में दिवोदास हुए, जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे. उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी. सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन थे. दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वंतरी की पूजा करते हैं.
धनतेरस का महत्व:
1. ऐसा माना जाता है कि इस दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ रहता है. शुभ मुहूर्त समय में पूजन करने के साथ सात धान्यों की पूजा की जाती है. सात धान्य गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है. सात धान्यों के साथ ही पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है. इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्य के रुप में श्वेत मिष्ठान्न का प्रयोग किया जाता है. साथ ही इस दिन स्थिर लक्ष्मी का पूजन करने का विशेष महत्व है.
2. धन त्रयोदशी के दिन देव धनवंतरी देव का जन्म हुआ था. धनवंतरी देव, देवताओं के चिकित्सकों के देव है. यही कारण है कि इस दिन चिकित्सा जगत में बडी-बडी योजनाएं प्रारम्भ की जाती है. धनतेरस के दिन चांदी खरीदना शुभ रहता है.
धनतेरस के मौके पर क्या खरीदें:
1. लक्ष्मी जी व गणेश जी की चांदी की प्रतिमाओं को इस दिन घर लाना, घर- कार्यालय, व्यापारिक संस्थाओं में धन, सफलता व उन्नति को बढाता है.
2. धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है. इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है. संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है. जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है.
3. भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं, उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना की जाती है. लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं.
धनतेरस के दिन क्या करें:
1. इस दिन धन्वंतरि का पूजन करें.
2. नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें.
3. सायंकाल दीपक प्रज्वलित कर घर, दुकान आदि को श्रृंगारित करें.
4. मंदिर, गोशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं.
5. यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन और जेवर खरीदना चाहिए.
6. हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें.
7. कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआँ, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं.