सनातन परंपरा में भगवान शालिग्राम की पूजा का खास महत्व है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शालिग्राम ही जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु का विग्रह स्वरूप हैं. ये काले रंग के गोल चिकने पत्थर के स्वरूप में होते हैं. इन्हीं के साथ तुलसी जी का विवाह हुआ है. सनातन परंपरा को मानने वाले ज्यादातर लोगों के पूजा स्थान पर शालिग्राम जी स्थापित होते हैं.
मान्यता है कि जिन घरों में नियम पूर्वक शालिग्राम जी की पूजा की जाती है, वहां पर हमेशा भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. इन्हें घर में रखकर नियमित रूप से पूजा करने से आपको कई तरह की परेशानियों से निजात मिलती है. साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है.
कहां पाए जाते हैं भगवान शालिग्राम?
भगवान विष्णु का शालिग्राम स्वरूप सिर्फ नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी के तल में ही पाए जाते हैं. यहां पर सालग्राम नामक स्थान पर भगवान विष्णु का मंदिर है, जहां उनके इस रूप का पूजन होता है, कहा जाता है कि इस ग्राम के नाम पर ही उनका नाम शालिग्राम पड़ा. गंडकी नदी,को बड़ी गंडक या केवल गंडक भी कहा जाता है. इस नदी को नेपाल में सालिग्रामि या सालग्रामी और मैदानों मे नारायणी और सप्तगण्डकी कहते हैं. महाकाव्यों में उल्लिखित सदानीरा भी यही है. स्कंदपुराण में भी इस नदी का उल्लेख सदानीरा और पवित्र जल से भरी रहने वाली नदी के तौर पर हुआ है.

गंडकी नदी के कई नाम
यह नदी भारत में गंगा की बाईं सहायक नदी है.इसे कृष्णा गंडकी भी कहा जाता है. गंडकी नदी की पांच मुख्य सहायक नदियां हैं, दरौंदी, सेती, मादी, मार्स्यांडी और बूढ़ी गंडकी. गंडकी नदी का काली और त्रिशूली नदियों के संगम से मिलकर बनी है. ये दोनों नदियां नेपाल की महान हिमालय श्रृंखला से निकलती हैं. इस संगम से लेकर भारत की सीमा तक इस नदी को नारायणी नदी कहा जाता है. यह नदी दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारत में प्रवेश करती है और फिर बिहार-उत्तर प्रदेश की सीमा के साथ दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई 765 किलोमीटर की यात्रा तय कर गंगा नदी में पटना के सामने आकर मिल जाती है.
पुराणों में है गंडकी नदी का महत्व
इस गंडकी नदी को पुराणों में गंगा की तरह ही स्त्री और देवी रूप में स्वीकार किया गया है और विष्णु भगवान का जो पतित पावन नाम है, वह इसी नदी के कारण मिलता है. पुराणों में वर्णन है कि गंडकी असल में एक गणिका था. प्राचीन काल में गणिका वैश्या का ही एक प्रकार हुआ करता था और यह गीत-संगीत, कला आदि में निपुण हुआ करती थीं.
यह एक समय में एक ही प्रेमी स्वीकार करती थीं और उससे अनुबंधित रहती थीं. इसी गणिका के घर एक बार भगवान आए थे और उसकी परीक्षा ली थी. जिसके बाद गणिका का उद्धार हुआ. गणिका के उद्धार की कई कथाएं पुराणों में अलग-अलग संदर्भ में दर्ज हैं, लेकिन सभी का क्लाइमैक्स एक जैसा ही है, जिसमें उसे मोक्ष मिलता है और वह एक पवित्र नदी के रूप में बदल जाती है, जिसमें भगवान भी निवास करते हैं.
भक्त कवि रसखान के एक पद से गणिका के इस महत्व का परिचय मिलता है...
द्रौपदी अंगनिका गज गीध अजामिल सो कियो सो न निहारो,
गौतम-गेहिनी कैसी तरी, प्रहलाद को कैसे हरयौ दुख भारो।।
काहे कौ सोच करै रसखानि कहा करि है रबिनन्द विचारो,
ता खन जा खन राखियै माखन-चाखनहारो सो राखनहारो।।
रसखान यहां ईश्वर से खुद का उद्धार किए जाने की गुहार लगा रहे हैं. वह कहते हैं कि द्रौपदी, गणिका, गज, गिद्ध (जटायु) और अजामिल (एक पापी व्यभिचारी) ये सब कौन हैं, क्या हैं और क्या थे, आपने इसका विचार नहीं किया था. गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या, प्रह्लाद के कुल को भी नही देखा और उनको तार दिया, तो फिर हे माखन चुराकर खाने वाले, तुम मुझे स्वीकार करने में कोई विचार नहीं ही करोगे और मेरे रखवाले बन जाओगे. ऐसा मुझे विश्वास है.
संत तुलसी भी गणिका का जिक्र अपनी कवितावली में करते हैं.
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना॥
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते॥
अरे मूर्ख मन! सुन, पतितों को भी पावन करने वाले श्री राम को भजकर किसने परमगति नहीं पाई? गणिका, अजामिल, व्याध, गीध, गज आदि बहुत से दुष्टों को उन्होंने तार दिया. आभीर, यवन, किरात, खस, आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूं.
भक्त कवि सूरदास भी अपने पदों में गणिका का जिक्र करते हैं और कहते हैं कि जब श्याम ने उसे तार दिया और कोई विचार नहीं किया तो मुझे क्यों छोड़ रहे हैं.
प्रभु हौं सब पतितनि कौ टीकौ।
और पतित सब दिवस चारिके, हौं तौं जनमत ही कौं ।।
बधिक, अजामिल गनिका तारी और पूतना ही कौं।
मोहिं छाँड़ि तुम और उधारे मिटै सूल क्यों जी कौं ।।
कोउ न समरथ अब करिबे कौं, खैचि कहत हौं लीकौं ।
मरियत लाज 'सूर' पतितनि मैं, मोहूँ तैं को नीकौं ।
सूरदास कहते हैं कि प्रभु ने सभी पतित पापी लोगों को तार दिया. बधिक (हत्या करने वाला), अजामिल (पापी व्याभिचारी) गणिका (वैश्या) और यहां तक की पूतना को भी तार दिया. मुझे छोड़ कर तुम सबका उद्धार करते जा रहे हो. ऐसा क्यों है? तुम्हारे बिना किसी में इतना सामर्थ्य नहीं है कि वह मेरा उद्धार कर सके. इसलिए पतितों में सबसे बड़ा मैं ही हूं ऐसा समझकर कम से कम मरते हुए मेरी लाज रख लेना और उद्धार कर देना.

एक स्त्री जो नदी बन गई
पुराण कथाओं और भक्ति काव्यों के पदों में जिस गणिका का बार-बार जिक्र हुआ है, यही गणिका गंडकी नदी में बदलती है. गंडकी नदी की कथा एक गहन आध्यात्मिक प्रतीक है. पापियों को आस्था के बल पर मुक्ति दिलाने और उनकी आत्मा को बदल डालने की और शुद्ध परिवर्तन की यह कथा है. सांसारिक बंधनों में रहते हुए भी परम सत्य की खोज की चाह ही गंडकी नदी की कथा है.
शिवपुराण में गंडकी का जिक्र
शिवपुराण में गंडकी का जिक्र एक वैश्या के तौर पर आता है. जहां वह एक गणिका यानी वैश्या थी. वह वैश्या तो थी, लेकिन इसके साथ ही सरल हृदय की और ईश्वर में आस्था रखने वाली भी थी. उसकी मां भी एक वैश्या थी, इसलिए उसे यही पेशा अपनाना पड़ा, लेकिन उसके भीतर एक पवित्र भावना थी. वह ईश्वर में लीन रहती थी और जब उसके पास पुरुष आते तो वह सिर्फ एक के ही साथ रहना स्वीकार करती थी, फिर चाहे उसे कोई कितने भी धन का लालच क्यों न दे.ये गणिका का नियम था और इस नियम से वह कभी नहीं टलती थी.
देवताओं ने ली परीक्षा
एक बार गणिका की चर्चा नारद मुनि ने त्रिदेवों से की. इस पर भगवान शिव उसकी परीक्षा लेने आए. वह हाथ में रत्नजड़ा हुआ शिवलिंग लेकर और सौदागर का वेश बनाकर उसके पास पहुंचे. उन्होंने गणिका से कहा- मैं एक सौदागर हूं, मुझे व्यापार के कारण दूर देश जाना है. इस शिवलिंग की मैं रोज पूजा करता हूं, लेकिन व्यापार के कारण मैं इसकी पूजा शायद रोज नहीं कर पाऊं. इस शिवलिंग की कृपा से ही मुझे धन-संपदा प्राप्त हुई है और यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है.
गणिका ने कहा- आप मुझसे क्या चाहते हैं.
शिवजी ने गणिका को सौंपा शिवलिंग
सौदागर बने शिव बोले- देवी! मैंने सुना है कि तुम धर्मनिष्ठ हो और एक बार में एक ही स्वामी स्वीकार करती हो. इसलिए अब आप मुझे अपना स्वामी मानो और मेरी धरोहर के रूप में इस शिवलिंग की रक्षा और पूजा करो. मैं जब छह माह के बाद लौट कर आऊंगा तब तुम मुक्त हो जाओगी और मैं अपना शिवलिंग ले लूंगा.
गणिका ने सोचा- ठीक है, यह भी उपाय सही है कि इसके जरिए एक तो मुझे शिवलिंग की पूजा का मौका मिलेगा और दूसरा यह कि कम से कम छह माह तो भक्ति भाव में बीतेंगे, किसी पुरुष के संपर्क में नहीं रहना होगा और बड़ी बात कि इस कार्य के लिए सौदागर धन भी दे रहा है. हर तरफ से लाभ ही लाभ है. ऐसा सोचकर गणिका ने सौदागर बने शिवजी को हां बोल दिया.
अब शिवजी ने आखिरी और कठिन शर्त रखी. उन्होंने कहा- ध्यान रहे देवी, यह स्फटिक शिवलिंग है. अगर यह खंडित हुआ या इसे किसी तरह का नुकसान पहुंचा तो मैं भी आत्मदाह कर लूंगा.
ऐसा कहकर सौदागर शिवजी व्यापारिक यात्रा पर निकल गए. गणिका शिवलिंग का ध्यान रखने लगी और रोज पूजा करने लगी.
गणिका ने की शिवलिंग की सेवा
इस तरह दिन महीने बीतने लगे. इस बीच गणिका को कई तरह के प्रलोभन मिले, हीरे-जवाहरात के लोभ-लालच मिले और बड़े-बड़े सेठों-राजाओं ने धन के ढेर लगाकर उससे अपनी पत्नी बनने को कहा, लेकिन गणिका का एक ही उत्तर होता कि वह छह महीने बाद ही किसी अन्य का प्रस्ताव स्वीकार करेगी और वह पहले से अनुबंध में है. उसने सभी धनवानों को उनके धन के साथ द्वार पर से लौटा दिया.
गणिका के महल में लगी आग
एक दिन गणिका के महल में किसी तरह आग लग गई और इस आग में वह शिवलिंग भी जल गया. गणिका बहुत दुखी हुई. वह सोचने लगी कि व्यापारी को क्या जवाब देगी. उधर सही समय पर व्यापारी बने शिवजी वापस आए और उन्हें महल में अग्निकांड का पता चला. तब उन्होंने कहा- दुखी मत हो देवी, ईश्वर की जो इच्छा, लेकिन अब मुझे आत्मदाह करना ही होगा. व्यापारी ने चिता सजाई और उसमें आग लगाकर बैठ गया. गणिका ने सोचा कि छह माह की अवधि पूरी होने में अभी 15 दिन बाकी हैं, इसलिए मैं 15 दिन इसी व्यापारी की सेविका हूं और यह मेरा स्वामी है. मुझे इसके अनुसार ही कार्य करना चाहिए. ऐसा सोचकर गणिका भी दृढ़ निश्चय करके उस चिता में कूद पड़ी.

गंडकी नदी में बदल गई गणिका
चिता में दोनों के शरीर जलते हुए आकाश में धुआं भर उठा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अगले ही पल दृश्य बदल गया. त्रिदेव प्रकट हुए और वह चिता फूलों की सेज बन गई. त्रिदेवों ने गणिका की श्रद्धा-भक्ति और समर्पण की सराहना की और उसकी जय-जयकार की. शिवजी ने गणिका को अमरता का वरदान दिया. ब्रह्माजी ने उसे पवित्रता का वरदान देकर गंगाजल बना दिया और विष्णु जी ने कहा- देवी तुम्हारा जल ही अब मेरा निवास बनेगा. जैसे में क्षीरसागर में शयन करता हूं, मेरा सालिग्राम (शालिग्राम) स्वरूप तुम्हारे तल में ही विश्राम करता पाया जाएगा. अब तुम गंडकी नाम से प्रसिद्ध होगी.
इस तरह एक गणिका पवित्र गंडकी नदी में बदल गई और विष्णु रूप शालिग्राम का निवास स्थान बन गई.
भागवत में भी मिलती है कथा
गणिका की एक अन्य कथा भागवत में भी मिलती है. किसी काल में एक गणिका थी जो मन से पवित्र थी और हर पुरुष में अपने पति-परमेश्वर का स्वरूप देखती थी और जिस पल जिसके भी साथ रहती तो निष्ठापूर्वक उसके साथ ही धर्म आचरण करती थी.
एक दिन एक सुंदर युवक उसके पास आया, उसे अच्छा पारिश्रमिक दिया, लेकिन बिना कुछ कहे चला गया. गंडकी ने धैर्यपूर्वक उसकी प्रतीक्षा की और इस दौरान उसे जितने भी प्रस्ताव मिले उसने सबको ठुकरा दिया. एक दिन आधी रात को वह युवक फिर लौटा. गंडकी ने उसका स्वागत किया और प्रेमपूर्वक उसकी सेवा की. जब वह उसे स्नान करा रही थी, तब उसने देखा कि युवक का शरीर कुष्ठ रोग से ग्रसित है. फिर भी उसने बिना किसी घृणा या भय के, पूरी निष्ठा से उसकी सेवा की.
नारायण बनकर आए थे कोढ़ी
लोगों ने उससे ऐसा करने से मना किया तो गणिका ने कहा कि वह अभी मेरा पति है और मैं सिर्फ प्रेम का धर्म निभा रही हूं, लेकिन अगले ही दिन सूरज उगते ही वह युवक मर गया. तब गणिका ने यह निश्चय किया कि वह अपने पति के साथ सती हो जाएगी. जैसे ही वह चिता पर बैठी, युवक का शरीर स्वर्णमय हो गया और उसके चार हाथ प्रकट हो गए. वह स्वयं भगवान विष्णु थे. उन्होंने कहा—
“मैं नारायण हूं, और तुम्हारी परीक्षा लेने आया था. तुम परीक्षा में सफल हुई हो, अब तुम तीन वर मांग सकती हो.”
गंडकी ने उत्तर दिया—
“मुझे कोई वर नहीं चाहिए, बस आप मुझे कभी न छोड़ें.” तब भगवान विष्णु ने कहा— “मुझे एक श्राप के कारण पत्थर बनना पड़ेगा, और तुम एक नदी बन जाओगी. मैं सदा तुम्हारी गोद में शालिग्राम शिला के रूप में विराजमान रहूंगा.” इस प्रकार वह युवती नदी में परिवर्तित हो गई और उसे गंडकी नदी कहा जाने लगा.

शालिग्राम शिला का रहस्य
गंडकी नदी के तट पर स्थित स्थान को शालग्राम कहा जाता है. गौतमीय तंत्र के अनुसार, यहीं से निकलने वाले पत्थरों को शालिग्राम शिला कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार, शालिग्राम शिला के भीतर एक छोटे से कीट का निवास होता है जिसे वज्र-कीट कहते हैं. इस कीट के दांत वज्र जैसे कठोर होते हैं, जो पत्थर को काटकर उसके भीतर छेद बनाते हैं और वहीं निवास करते हैं.
कई तरह के शालिग्राम
प्रत्येक शालिग्राम शिला पर बने चिन्ह या आकार उसे विशेष धार्मिक महत्व देते हैं. ये शालिग्राम विभिन्न रंगों में मिलते हैं, काले, गहरे काले, लाल, नीले, पीले और हरे. लाल रंग को छोड़कर सभी रंगों के शालिग्राम अत्यंत पवित्र माने जाते हैं, परंतु पीले और स्वर्णिम शालिग्राम सबसे शुभ माने गए हैं.
लाल शालिग्राम शरीर से गंभीर और घातक रोगों को दूर करने वाला माना जाता है. साथ ही यह तंत्र और विपरीत तंत्र साधनाओं, नकारात्मक ऊर्जा और काले जादू के निवारण में भी उपयोग किया जाता है. शालिग्राम शिलाओं के विभिन्न आकार भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों से जुड़े हैं, जैसे, मत्स्य शालिग्राम, नरसिंह शालिग्राम, कूर्म शालिग्राम, सुदर्शन शालिग्राम आदि.
गंडकी नदी इस प्रकार केवल एक जलधारा नहीं है, बल्कि यह भक्ति, निष्ठा और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक है. इसके जल में प्रवाहित हर शालिग्राम शिला इस कथा की जीवित स्मृति है, जहां प्रेम, परीक्षा और ईश्वर की उपस्थिति एक साथ प्रवाहित होते हैं.