कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से ही छठ मैय्या की पूजा अर्चना शुरू हो जाती है और सप्तमी तिथि की सुबह तक चलती है. सप्तमि तिथि के साथ ही छठ का समापन हो जाता है. रविवार को सप्तमि तिथि पर यानी छठ के आखिर दिनी उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा.
सप्तमी तिथि का कार्यक्रम-
सप्तमी तिथि के दिन भी सुबह के समय उगते सूर्य को भी नदी या तालाब में खड़े होकर जल देते हैं और अपनी मनोकामनाओं के लिए प्रार्थना करते हैं. अब 3 नवंबर यानी रविवार को प्रात:काल में उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा. इस दिन सूर्योदय 6:29 बजे है और उगते सूर्य की पहली किरण के साथ ही अर्घ्य दिया जा सकता है.
इससे पहले शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय के साथ छठ की शुरुआत हुई थी. इसमें व्रती का मन और तन दोनों ही शुद्ध और सात्विक होते हैं. इस दिन व्रती शुद्ध सात्विक भोजन करते हैं. वहीं, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का विधान किया गया था.
खरना पर व्रती सारा दिन निराहार रहते हैं और शाम के समय गुड़ वाली खीर का विशेष प्रसाद बनाकर छठ माता और सूर्य देव की पूजा करके खाते हैं. इसके बाद षष्ठी तिथि के पूरे दिन निर्जल रहकर शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं और अपने मन की कामना सूर्यदेव को कहते हैं.