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PHOTOS: दादा-दादी की उम्र में दूल्हा-दुल्हन बने 347 जोड़े, पढ़िए इनकी कहानी

जब आप परिवार की जिम्मेदारियां निभाते-निभाते थक जाएं, तभी कुछ ऐसे पलों को जीने का मौका मिल जाए, जिन्हें आप पहले पूरा नहीं कर सके थे, तो ये नई ऊर्जा देता है. कुछ इसी तरह का आयोजन टोंक जिले की धर्मनगरी कहे जाने वाले डिग्गी कस्बे में देखने को मिला. यहां 347 जोड़े जो अपने वैवाहिक जीवन के पचास से ज्यादा बसंत देख चुके थे, उन्होंने एक बार फिर से शादी की रस्में निभाईं.

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टोंक में 347 जोड़ों ने बच्चों के सामने फिर से की शादी.
टोंक में 347 जोड़ों ने बच्चों के सामने फिर से की शादी.

राजस्थान के टोंक से एक अनोखा मामला सामने आया है. यहां 50 साल पहले एक-दूसरे को देखे बिना शादी करने वाले 347 जोड़ों ने अपने बच्चों और रिश्तेदारों के सामने 7 फेरे छोड़कर शादी की अन्य सभी रस्में निभाईं. यह आयोजन डिग्गी कस्बे में अग्रवाल चौरासी ने रखा था. इसमें 72 साल पहले शादी करने वाले दंपति ने एक-दूसरे को कांपते हाथों से गुलाब दिया तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. इस दौरान परिजनों और रिश्तेदारों ने जमकर ठुमके लगाए.

359 दंपतियों ने कराया था रजिस्ट्रेशन

इस विवाह समारोह में टोंक के अलावा भीलवाड़ा, जयपुर, बूंदी, कोटा, सवाई माधोपुर और अजमेर जिले के 347 दंपति शामिल हुए. इस आयोजन के लिए 359 दंपतियों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. हालांकि, कुछ दंपति नहीं आ सके. यहां कुछ लोग व्हील चेयर पर तो कुछ परिजनों के सहारे खड़े होकर और बैठे-बैठे ही वैवाहिक रस्में निभाते नजर आए.

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दोनों ने भावुक होते हुए एक-दूसरे को गुलाब

यहां सबसे वृद्ध दंपति भंवरलाल व उनकी पत्नि मूली देवी थीं, जिन्हें सम्मान देने के लिए हाइड्रोलिक सोफे पर बैठाकर रस्में पूरी करवाई गईं. दोनों ने भावुक होते हुए एक-दूसरे को गुलाब दिया. अग्रवाल समाज द्वारा इस आयोजन के मुख्य भामा शाह हुकुमचंद जैन को समाज के युवाओं द्वारा 84 फीट लंबा साफा पहनाया गया.

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दंपति बोले- फिर जाग उठी जीने की तमन्ना

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इस आयोजन से अभिभूत व अपने परिजनों के बीच विवाह की रस्में निभाने वाले कई दंपति इतने खुश नजर आए कि उनकी आंखों भर आईं. कुछ दंपति यह कहते नजर आए कि जो रस्में वे सालों पहले पूरी नहीं कर पाए थे, वो आज परिवार के सामने पूरी करने पर नई ऊर्जा का संचार हो गया है. आगे पढ़िए- विवाह की रस्में पूरी करने वाले जोड़ों की जुबानी...

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'एजी, ओजी कहकर एक-दूसरे को पुकारते थे'

पचेवर निवासी टीकम चंद जैन कहते हैं, "जब 50 साल पहले हमारा विवाह हुआ था, तब लड़के-लड़की को एक-दूसरे को देखने की परंपरा थी ही नहीं थी. परिवार के बड़े लोग ही रिश्ता तय कर देते थे. विवाह के समय भी चेहरा नहीं देख पाते थे. जब बच्चे हुए तो उन्हें गोद में लेना भी हमारे लिए काफी मुश्किल हुआ करता था. एजी, ओजी कहकर एक-दूसरे को पुकारते थे.

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पचेवर निवासी सुशीला देवी कहती हैं, "आज परिवार के सामने सारी रस्में निभाना काफी सुखद रहा. हमने वैवाहिक जीवन के 52 साल पूरे कर लिए हैं. हम समाज के आभारी हैं कि उन्होंने यह सब करने का अवसर दिया."

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केकड़ी निवासी संतोष देवी ने बताया, " जब उनकी शादी हुई थी तब उन्होंने दुल्हे को देखा भी नहीं था. हमारे पास तो उस समय की कोई फोटो तक नहीं है. आज ये सब देखकर बहुत खुशी हो रही है. 

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अग्रवाल समाज चौरासी मालपुरा के अध्यक्ष अनिल सूराशाही ने कहा कि ये आयोजन अग्रवाल समाज चौरासी की नई पहले है. हमारे समाज में शायद ही ऐसा कार्याक्रम कहीं हुआ होगा. इसका उद्देश्य वृद्ध दंपतियों में उत्साह का नव संचार करना है. साथ ही युवा पीढ़ी भी कुछ सीखे, ये भी हमारी कोशिश है. 

 

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