15वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों ने राजनीति के बड़े-बड़े पंडितों को ऐसे पटखनी दी कि उनकी बोलती बंद है. जिस जनता के समर्थन के दम पर नेता लोग मोर्चाबंदी कर रहे थे, उसे ये बात पसंद नहीं आई कि उसके वोट से सियासी सौदेबाज़ी हो.