एक अरब 25 करोड़ हिंदुस्तानियों की आंखें एक बार फिर नम हैं. हिंदुस्तानियों का सीना एक बार फिर से धधक रहा है. लोग एक बार फिर दोस्ती की आड़ में छिपे इस दुश्मन से हिसाब चाहते हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या हिंदुस्तान की आवाज हमारे चुने हुए नुमाइंदों के कानों तक पहुंच भी रही है या फिर इस बार भी सियासत के नक्कारखाने में सबकुछ पहले की तरह गुम हो जाना है?