राजनैतिक तौर पर जो-जो मंत्र चलने चाहिए चाहिए थे वो सब फेल हो गए हैं. लेकिन इस दौर में एक बात और जिक्र हुई कि क्या वाकई सपने टूटे हैं या लोकतंत्र की जीत हुई है.