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राहुल गांधी ने बिहार में माहौल तो बना दिया, क्या कांग्रेस अब भी RJD की पिछलग्गू ही रहेगी?

बिहार में वोट अधिकार यात्रा में राहुल गांधी के साथ यूं तो तेजस्वी भी हैं, पर चर्चा उनकी कहीं नहीं है. राहुल गांधी का बाइक अवतार हो या मखाना किसानों से उनकी बातचीत ,यात्रा में खबर सिर्फ राहुल ही बन रहे हैं. पर क्या इस आधार पर कांग्रेस 2020 के मुकाबले महागठबंधन में अपनी सीट शेयरिंग बढ़ा सकेगी?

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वोट अधिकार यात्रा के दौरान मीडिया के फोकस में राहुल गांधी ही हैं. तेजस्वी कहीं खो से गए हैं. (फोटो- पीटीआई)
वोट अधिकार यात्रा के दौरान मीडिया के फोकस में राहुल गांधी ही हैं. तेजस्वी कहीं खो से गए हैं. (फोटो- पीटीआई)

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की वोट अधिकार यात्रा बिहार में अपने चरमोत्कर्ष पर है. कांग्रेस की मानें तो बिहार में राहुल गांधी से मिलने और उन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि राहुल और तेजस्वी यादव की वोट अधिकार यात्रा ने बिहार में हलचल पैदा की है. कम से कम राहुल गांधी की चमक तो अवश्य बढ़ गई है. यहां तक कि तेजस्वी यादव जैसे बिहार के कद्दावर लीडर भी उनके आगे पिछलग्गू से ज्यादा कुछ नहीं लग रहे हैं.

सवाल उठता है कि करीब 3 दशक से लालू यादव के कंधे के सहारे बिहार में घिसट रही कांग्रेस के लिए स्वर्ण काल आ गया है. क्या अब बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस की हिस्सेदारी पिछले चुनावों के मुकाबले बढ़ने की उम्मीद है. क्या ऐसा लगता है कि कांग्रेस बिहार में अब आरजेडी के बराबर की हैसियत में सीट शेयरिंग कर सकती है? या बिहार में कांग्रेस की लोकप्रियता सिर्फ गांधी फैमिली के चिराग को देखने भर की है? आइये देखते हैं कि बिहार में महागठबंधन में कांग्रेस को लेकर क्या चल रहा है?

वोट जनअधिकार यात्रा में राहुल ही मेन लीड हैं

राहुल गांधी ने वोटर अधिकार यात्रा हालांकि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ शुरू की है, पर इसे उनके नाम से ही जाना जा रहा है. इसे राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाने में राहुल गांधी की ही मुख्य भूमिका रही. 16 दिन और 1,300 किलोमीटर तक चलने वाली यात्रा सीमांचल, मिथिलांचल, और मगध जैसे क्षेत्रों से गुजर रही है. राहुल जब मोटरसाइकिल पर चलते हैं तो उनका बाइक अवतार रूप चर्चित होता है. जब वो मखाने के खेतों में जाते हैं तो किसानों की चर्चा शुरू हो जाती है. इन सबके बीच में बहुत दूर दूर तक कहीं भी तेजस्वी की चर्चा नहीं हो रही है.

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इतना ही नहीं अगर बीबीसी की एक रिपोर्ट को सही माने तो वोट जनअधिकार यात्रा में यदा कदा ही आरजेडी के झंडे देखे जा रहे हैं. कांग्रेस के झंडों और पोस्टरों से जिस तरह वोट अधिकार यात्रा भरी पड़ी है उससे तो यही लगता है कि यह पूरा अभियान कांग्रेस ने हाईजैक कर लिया है. जाहिर है कि इसके चलते अंदर ही अंदर दोनों ही पार्टियों के बीच टसल भी है.  कम से कार्यकर्ताओं में तो यही संदेश जा रहा है. इसलिए ही आरजेडी कार्यकर्ता बीच बीज में तेजस्वी यादव के सीएम होने वाले नारे लगाना नहीं भूलते हैं.

वोट जनअधिकार यात्रा की सफलता को आधार मानें तो कांग्रेस और आरजेडी को बराबर सीट मिलनी चाहिए

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने कांग्रेस को 70 सीटें दी थीं, जिनमें से वह केवल 19 सीटें ही कांग्रेस जीत पाई. इस बार, कांग्रेस 70 या उससे अधिक सीटों की मांग कांग्रेस बहुत पहले से ही कर रही है. अब तो कांग्रेस वोट अधिकार यात्रा की सफलता में राहुल गांधी की भूमिका का भी उदाहरण रखेगी. जाहिर है कि कांग्रेस की कोशिश होगी कि कम से कम 100 सीटें तो उसके हिस्से में आएं हीं.

लेकिन क्या यह संभव है? कांग्रेस ने 70 सीटों पर डेटा एनालिसिस किया, जहां वह बहुत कम मार्जिन से हारी थी . यह उनकी सीट माँग को मजबूत करता है. कांग्रेस ने बिहार में सबसे पहले चुनावी तैयारियां शुरू करके अपने इरादे पहले ही क्लीयर कर दिए थे. नए प्रदेश प्रभारी कृष्ण अल्लावारु और प्रदेश अध्यक्ष एक दलित नेता राजेश राम को बनाकर पार्टी ने दलित-OBC मतदाताओं को जोड़ने की रणनीति दिखाई थी.

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राहुल के बार-बार बिहार दौरे यह बताने के लिए काफी हैं कि इस बार कांग्रेस बिहार को लेकर बहुत गंभीर है. राहुल गांधी जाति जनगणना और वोट चोरी को मुद्दा बनाकर पहले ही आरजेडी को डिफेंसिव मोड में ला चुके हैं. तेजस्वी ने राहुल को बड़ा भाई और 2029 के लिए PM उम्मीदवार कहा जो गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति को मजबूत करता है. जाहिर है कि कांग्रेस चाहेगी कि उसे सीट शेयरिंग में भी बढ़े भाई का सम्मान मिले. 

पर RJD अगर कांग्रेस को 100 सीटें देती है तो उसे अपनी सीटें कम करनी होगी. जो तेजस्वी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकता.
भाकपा (माले) ने 42 सीटें, भाकपा ने 24, और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने भी 60 सीटें माँगी हैं . पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी भी 6-8 सीटें चाहती है. इतने दावों के बीच कांग्रेस को 100 सीटें देना मुश्किल ही नजर आता है.

2020 में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट (70 में से 19 सीटें, 27%) RJD (75/144, 52%) और भाकपा (माले) (12/19, 63%) से कम था. RJD इस आधार पर कांग्रेस की सीटें कम देने का तर्क रखेगा. इस तरह महागठबंधन में कांग्रेस को 100 सीटें मिलना असंभव ही दिखता है.

वास्तव में कांग्रेस की क्या हैसियत हैं बिहार में?

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RJD और BJP के मुकाबले में कांग्रेस का संगठन बिहार में  कमजोर है. जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और बूथ-स्तरीय नेटवर्क की कमी है.बिहार में कांग्रेस के पास लालू या नीतीश जैसा करिश्माई स्थानीय नेता नहीं है. कन्हैया कुमार जैसे नए चेहरों को पार्टी में स्वीकार्यता सीमित है, और उनकी पलायन रोको, रोजगार दो यात्रा ने आंतरिक कलह को बढ़ाया. 

कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक (मुस्लिम, यादव, दलित) RJD ने हथिया लिया है. इसलिए भी आरजेडी कभी नहीं चाहेगी कि कांग्रेस बिहार में मजबूत हो. आरजेडी कांग्रेस के साथ जरूर है पर उसकी कोशिश यही रहेगी कि बिहार में कांग्रेस कभी उभर नहीं सके.

लालू यादव ने तेजस्वी को आगे बढ़ाने के लिए ही कभी कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को आगे नहीं बढने दिए तो कांग्रेस को उभरने का मौका मिलेगा इसमें संदेह ही है.  2020 में कांग्रेस का वोट शेयर 9.48% था, जबकि RJD का 23.11 प्रतिशत. आरजेडी जिस लेवल पर बीजेपी से लड़ रही है उसी लेवल पर अंदर ही अंदर उसकी रणनीति कांग्रेस को भी रोकने की रहेगी. क्योंकि कांग्रेस लगातार जाति जनगणना के मुद्दे को उठा रही है.तेजस्वी यादव बिहार में हुई जाति जनगणना का श्रेय लेते रहे हैं. पर राहुल गांधी उसे खारिज कर चुके हैं. राहुल तो यहां तक कह चुके हैं कि बिहार में हुई जाति जनगणना फर्जी थी. जाहिर है कि ऊपर से देखने में जरूर राहुल और तेजस्वी एक दिखाई दे रहे हैं पर अंदर ही अंदर बहुत द्वंद्व चल रही है. मुस्लिम वोटर्स को लेकर भी दोनों ही पार्टियों में आगे चलकर मतभेद होना तय है.

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