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टैरिफ की अकड़ में डूबे ट्रंप को मोदी का खुला चैलेंज, क्‍या चीन यात्रा में जन्‍म लेगा नया रणनीतिक 'त्रिकोण'?

पीएम मोदी की शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के लिए हो रही बीजिंग यात्रा से पहले भारत को चीन एक पुराने प्रस्तावित त्रिकोण (Russia-China-India) की याद दिला रहा है. अभी तक भारत एक तरफ BRICS और SCO तो दूसरी तरफ QUAD में सक्रिय भूमिका निभाकर रणनीतिक संतुलन बनाए था, लेकिन ट्रंप की टैरिफ नीतियों ने भारत को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने का मौका दिया है.

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डोनाल्ड ट्रंप, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी
डोनाल्ड ट्रंप, शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी

2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुलकर कर ब्राजील और कुछ अन्य देशों को चेतावनी दी थी कि चीन के साथ करीबी व्यापारिक संबंध अमेरिका के साथ उनके संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है. जाहिर है कि टैरिफ थोपने  के नाम पर भारत के साथ बढ़ती तल्खी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से ट्रंप को सीधा संदेश देगी. यह समझने वाली बात है कि भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा इस तरह अचानक क्यों घोषित हुई.

ट्रंप को यह स्पष्ट संदेश है कि वो भारत को हल्‍के में न ले. यह अमेरिका को बहुत महंगा पड़ सकता है. गलवान संघर्ष के बाद भारत अभी तक चीन से एक दूरी बनाकर चल रहा था. अचानक अगर शंघाई सहयोग समिट में पीएम मोदी के जाने का ऐलान हुआ है तो यह अमेरिका को समझने के लिए काफी है. अगर पीएम मोदी एससीओ समिट में जा रहे हैं तो जाहिर है कि भविष्य में ब्रिक्स में भी सक्रिय भूमिका निभाएंगे. इस तरह चीन की यह यात्रा एक तरीके से अमेरिका को खुला चैलेंज है. अभी तक भारत अगर क्वाड के साथ सक्रिय था तो इसका मतलब था कि अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में सक्षम था. पर अब क्वाड में भी अमेरिका का कमजोर होने की नींव रखी जा सकती है. इससे इं‍डो-पेसिफिक क्षेत्र में भारत को रणनीतिक नुकसान होगा, लेकिन इसका ज्‍यादा खामियाजा अमेरिका को उठाना पड़ेगा.

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भारत के रुख में चीन को लेकर अचानक बदलाव

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगस्त महीने के अंत में जापान और चीन की यात्रा का शेड्यूल जारी हुआ. हालांकि जापान का दौरा द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से है, जबकि पीएम मोदी चीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में हिस्सा लेंगे. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 अगस्त को जापान के लिए रवाना होंगे. जहां वे जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के साथ भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त और 1 सितंबर को बीच चीन के तियानजिन शहर में आयोजित होने वाली SCO समिट में हिस्सा लेंगे. 2019 के बाद ये पीएम मोदी की पहली चीन यात्रा होगी. SCO बैठक में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार सहयोग और बहुपक्षीय सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की जाएगी.

2020 के गलवान संघर्ष के बाद भारत-चीन संबंधों में तनाव के चलते पीएम मोदी चीन नहीं गए थे. हालांकि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य SCO शिखर सम्मेलन में भाग लेना है पर जिस तरह भारत चीन को लेकर कुछ सालों से दूरी बनाकर चल रहा था अचानक उसके रुख में बदलाव बहुत कुछ कहता है. भारत, चीन और रूस SCO और BRICS के सदस्य हैं, और इस मंच पर मोदी की उपस्थिति इन तीनों देशों की एकजुटता का संदेश हो सकती है. क्‍योंकि, पिछले कुछ दिनों से इन तीनों ही देशों को अमेरिका और खासकर ट्रंप से कड़वे अनुभव प्राप्‍त हुए हैं.

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क्या यह ट्रंप को संदेश है?

श्याम सरन जैसे कई विदेश नीति विशेषज्ञों का सुझाव रहा है कि भारत को ट्रंप के दबाव का जवाब देने के लिए चीन और रूस जैसे देशों के साथ संबंधों का उपयोग करना चाहिए. शायद भारत सरकार ने यही सोचकर पीएम मोदी की चीन यात्रा का शेड्यूल घोषित किया है. यह यात्रा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाती है. यह ट्रंप और अमेरिकी प्रशासन को अप्रत्यक्ष रूप से संदेश है कि अभी भी मौका है सुधार कर लो. वास्तव में भारत जिस दिन खुलकर चीन और रूस के साथ आ गया उसी दिन अमेरिका के पतन की उलटी गिनती शुरू हो जाएगी. राजनीति और कूटनीति में कोई भी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. हर देश अपने फायदे के लिए नए संगठनों से जुड़ते हैं. डोनाल्ड की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं पर रोक लगाने के लिए रूस -चीन-ब्राजील और भारत मिलकर डॉलर की जगह एक अन्य करंसी दुनिया को इंट्रोड्यूस कर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो वह अमेरिका के वैश्विक प्रभुत्व के अंत होने जैसा होगा. 

चीन भी भारत से संबंध सुधारने का इच्छुक दिखा रहा है 

ट्रंप की नीतियों से चीन भी परेशान है. चीन पर भी ट्रंप का अनर्गल टैरिफ थोप चुके हैं. वैसे भी चीन के साथ अमेरिका का दूसरी तरह की प्रतिद्वंद्विता है. चीन बहुत तेजी से दुनिया के दरोगा के रूप में अमेरिका की जगह लेने को आतुर है. अमेरिका इसलिए ही चीन के साथ व्यापार युद्ध छेड़ रखा है. अमेरिका चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिए ही हिंद-प्रशांत में क्वाड का विस्तार करना चाहता है. जाहिर है कि चीन के लिए इस चुनौती भर समय में भारत का साथ मिल जाए तो उसके लिए बहुत राहत हो जाएगी. भारत के साथ बेहतर संबंध चीन को क्षेत्रीय प्रभाव बनाए रखने और अमेरिका के दबाव को कम करने में मदद कर सकता है.

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यही सब कारण है कि चीन ने भारत-पाक जंग में भी पाकिस्तान के साथ खुलकर सामने नहीं आया. इसके साथ ही अक्टूबर 2024 में डेपसांग और डेमचोक में गश्त समझौता हुआ, जिसने गलवान (2020) के बाद तनाव को कम किया जा सका है. जनवरी 2025 में कैलाश-मानसरोवर यात्रा यात्रा की बहाली ने दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ाया है. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच कूटनीतिक मुलाकातें भी शुरू हुईं हैं. जुलाई 2025 में SCO विदेश मंत्रियों की बैठक और अगस्त 2025 में मोदी की तियानजिन SCO यात्रा ने उच्च-स्तरीय संवाद को मजबूत किया है.

2024 में भारत-चीन व्यापार 130 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है. प्रत्यक्ष उड़ानों और पर्यटक वीजा की बहाली (2025) ने आर्थिक संबंधों को बढ़ावा दिया है.SCO और BRICS संगठनों में दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है.

चीन का भारत और रूस के साथ एक संघ बनाने का खुला ऑफर  

पिछले कुछ महीनों में चीन, रूस और भारत के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को पुनर्जीवित करने पर अंतरराष्ट्रीय चर्चाएं तेज़ हुई हैं. अभी हाल ही में चीनी अधिकारियों ने एक बार फिर कहा था कि चीन-रूस-भारत सहयोग न केवल हमारे तीनों देशों के हितों की सेवा करता है, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक शांति, सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति को भी बढ़ावा देता है. चीन इस त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए रूस और भारत के साथ संवाद बनाए रखने को तैयार है.

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चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में अंतरराष्ट्रीय समकालीन अध्ययन संस्थान के दक्षिण एशिया अध्ययन संस्थान के कार्यकारी निदेशक वांग शिदा कहते हैं कि अब समय आ गया है कि चीन-रूस-भारत त्रिपक्षीय सहयोग तंत्र को पुनः स्थापित किया जाए. वास्तव में, इस तरह के सहयोग की एक बुनियादी रूपरेखा पहले ही तैयार हो चुकी थी. केवल भारत के हां कहने की देरी है. अगर चीन- भारत और रूस साथ आते हैं तो दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी घटना होगी. यह त्रिपक्षीय संघ पूरी दुनिया की कूटनीति में अमेरिका की भूमिका को ही खत्म कर देगा. जाहिर है ट्रंप को बुरा तो लगेगा ही.

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