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नीतीश कुमार के 'खेला' से जुड़े सारे कयास गलत होंगे

अगर किसी को नीतीश कुमार NDA के करीब लग रहे हैं, तो शरद पवार भी उनके आस पास वाले मोड़ पर ही नजर आएंगे. नीतीश कुमार की गतिविधियां तो राजनीतिक हलचल का इशारा करती हैं, लेकिन वो खुद ही खारिज कर देते हैं - वास्तव में कुछ हो भी रहा है या सब हवा हवाई है?

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नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स अक्सर करते हैं, इस बार भी कुछ नया नहीं है
नीतीश कुमार प्रेशर पॉलिटिक्स अक्सर करते हैं, इस बार भी कुछ नया नहीं है

बिहार के राजनीतिक माहौल और लहजे में समझें तो नीतीश कुमार हवा बनाने में भी माहिर हैं. खुद ही धुएं की तरफ इशारा करके जताते हैं कि आग लगी हुई है, और जब सवाल खड़े होते हैं तो खारिज भी कर देते हैं. राज्य सभा जाने की ख्वाहिश और उपराष्ट्रपति बनने से लेकर पाला बदलने की अटकलों को भी वो जानबूझ कर बनाये रखते हैं. ये, दरअसल, खुद को मुख्यधारा की राजनीति में प्रासंगिक बनाये रखने, और अपने तात्कालिक गठबंधन साथियों पर दबाव बनाये रखने का एक खास तरीका भी है.

नीतीश कुमार की राजनीति के इर्द गिर्द बीते 24 घंटे पर ध्यान दें, तो भी यही सब समझ में आता है. वो जेडीयू दफ्तर में पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलते हैं. फिर अचानक राबड़ी आवास की ओर चल देते हैं. पहुंचने पर पता चलता है कि आरजेडी नेता लालू यादव तो बड़े बेटे तेज प्रताप के साथ राजगीर निकल पड़े हैं. कुछ देर रुकते हैं, राबड़ी देवी और तेजस्वी से बात करते हैं - और फिर लौट जाते हैं.

नीतीश के पलटी मारने की चर्चा फिर से क्यों

अचानक पता चलता है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वाले दीन दयाल उपाध्याय के कार्यक्रम में जाने का फैसला कर चुके हैं. एक और भी फैसला कर चुके होते हैं, जो काफी चौंकाने वाला लगता है. ओम प्रकाश चौटाला की रैली से अचानक उनके दूरी बना लेने का पता चलता है. 

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और इसी बीच बिहार विधानसभा के डिप्टी स्पीकर जेडीयू नेता महेश्वर हजारी दावा कर बैठते हैं कि INDIA गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार ही होंगे. ऐन उसी वक्त उनके पुराने साथी उपेंद्र कुशवाहा भी उनकी बेदाग छवि की दुहाई देते हुए एनडीए ज्वाइन कर लेने की सलाह देने लगते हैं. 

जब इतना सब कुछ एक साथ होगा तो क्या चर्चा नहीं होगी? सवाल नहीं उठेंगे? आखिर लालू यादव से मिलने जाने से पहले नीतीश कुमार जेडीयू कार्यकर्ताओं से क्यों मिले? वो लालू यादव से कुछ पूछने गये थे या बताने? या किसी गंभीर विषय पर मंत्रणा करने? दीनदयाल उपाध्याय से जुड़े कार्यक्रम और INLD नेता ओम प्रकाश चौटाला के बुलावे पर हो रही रैली को लेकर नीतीश कुमार के मन में कोई उलझन वाली बात तो नहीं थी? 

नीतीश कुमार की गतिविधियां किसी राजनीतिक हलचल का इशारा करती हैं, लेकिन ऐन उसी वक्त उनका बयान बिहार की राजनीति से जुड़ी तमाम आशंकाओं को खारिज भी कर देता है - क्या वास्तव में कुछ हो भी रहा है या बस हवा हवाई है?

थोड़ा पीछे चल कर देखें तो INDIA गठबंधन की मुंबई बैठक के बाद दिल्ली में एनसीपी नेता शरद पवार के घर पर कोऑर्डिनेशन कमेटी की पहली मीटिंग बुलाई गयी थी. मीटिंग में नीतीश कुमार को तो नहीं लेकिन जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह को पहुंचना था, नहीं पहुंचे. बताया गया कि बीमार हैं. ठीक है, तबीयत का क्या कभी भी खराब हो सकती है. किसी के भी साथ ऐसा हो सकता है. 

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चर्चा तो केंद्र सरकार की तरफ से बिहार को फंड मिलने की भी काफी रही. वो भी G20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार की मुस्कुराते चेहरे वाली तस्वीर आने के बाद. नीतीश कुमार सम्मेलन में आये मेहमानों के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से दिये गये रात्रिभोज में गये हुए थे.

एनडीए में वापसी की कितनी संभावना

अव्वल तो दोनों ही तरफ से संभावनाएं खारिज की जा चुकी हैं. नीतीश कुमार कह चुके हैं कि मर जाऊंगा लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जानेवाला. बीजेपी नेता अमित शाह भी बिहार पहुंच कर साफ साफ कह चुके हैं कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाजे बंद हो चुके हैं. 

जैसे नीतीश कुमार मीडिया के सामने आते हैं, जो कयास लगाये जा रहे हैं उसके बारे में पूछा जाता है. अगर नीतीश कुमार की स्टाइल को समझें तो वो मीडिया के सामने भी तभी आते हैं जब उनको बात करनी होती है. ऐसा भी होता है जब कोई सवाल नहीं होता तो भी वो पकड़ कर अपने मन की बात कह ही डालते हैं. जातीय जनगणना को लेकर मीडिया के सामने बार बार अपडेट देना इसका बेहतरीन उदाहरण है.

नीतीश कुमार से मीडिया का सवाल होता है - सच्चाई है क्या... आपका लगाव एनडीए की तरफ आ रहा है?
बड़ी संजीदगी से नीतीश कुमार थोड़े आश्चर्य का भाव प्रकट करते हैं, और थोड़ा रुक कर बोलते हैं - 'क्या? किसका... हमारा!'
फिर मीडिया की तरफ देखते हुए थोड़ा रुकते हैं, और कहते हैं, 'अरे क्या फालतू बात आप कर रहे हैं?'
तभी मीडिया की तरफ से ध्यान दिलायी जाती है, ...चर्चा चल रही है!
नीतीश कुमार कहते हैं, 'छोड़िये न भाई... किसको क्या चर्चा करते रहना है... आप जान रहे हैं... अपोजिशन को एकजुट करने में लगे रहे.... कितनी बड़ी उपलब्धि हो रही है... आ, कितना बड़ा काम हो रहा है... आ, कौन क्या करता रहता है... उससे हमको क्या लेना देना है...' 

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नीतीश कुमार जो चाहते थे, वो तो हो चुका. लेकिन चर्चाएं थमने वाली कहां है. क्योंकि ऐसी बातें करते करते वो अचानक मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे देते हैं, और फिर नये सिरे से सरकार बनाने का दावा, शपथग्रहण भी कर लेते हैं.

चौधरी देवीलाल की याद में ओम प्रकाश चौटाला ने 2022 में भी विपक्षी नेताओं के साथ रैली की थी. पिछली बार हरियाणा के ही फतेहाबाद में रैली हुई थी. इस बार कैथल में हो रही है. इस बार भी ज्यादातर वे नेता ही शामिल हो रहे हैं जो पिछली बार पहुंचे थे. शरद पवार से लेकर सीताराम येचुरी तक. पिछले साल हुई रैली नीतीश कुमार में लालू यादव के साथ 10, जनपथ जाकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के साथ मीटिंग से पहले शामिल हुए थे.

देखा जाये तो नीतीश कुमार का स्टैंड भी वैसा ही है, जैसा शरद पवार के मामले में देखने को मिलता है. महीना भर ही हुआ होगा, जब शरद पवार पुणे में लोकमान्य तिलक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा किये थे. 

जैसे अभी नीतीश कुमार को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं, INDIA गठबंधन की बेंगलुरू बैठक से पहले शरद पवार के भी एनडीए के साथ चले जाने की काफी चर्चा रही. देर से ही सही, लेकिन शरद पवार विपक्षी नेताओं के साथ बैठक करने भी पहुंचे थे. उस बैठक में तो जो हुआ वो तो हुआ ही, एक विपक्ष की एक मीटिंग से तो नीतीश कुमार के भी जल्दी चले जाने की खूब चर्चा हुई. 

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नीतीश कुमार और शरद पवार की राजनीति में हाल फिलहाल एक और कॉमन चीज है जो अक्सर चर्चा में रहती है. एक सवाल तो बना ही हुआ है कि आखिर शरद पवार, भतीजे अजित पवार के कंधे पर बंदूक रख कर कौन खेल खेल रहे हैं?

जैसे महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार, शरद पवार और बीजेपी के बीच कनेक्टिंग लिंक बने हुए है, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह भी तो उसी रोल में समझे जाते हैं. माना तो यहां तक जाता है कि नीतीश कुमार और शरद पवार दोनों ही बीजेपी के साथ हंसी-खुशी का रिश्ता बना कर चलते हैं. 

करीब करीब वैसे ही जैसे बीजेडी नेता नवीन पटनायक और YSRCP वाले जगनमोहन रेड्डी थोड़ी दूरी बनाकर बीजेपी के साथ ही खड़े रहते हैं - और अब तो नवीन पटनायक के मुंह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कसीदे भी पढ़े जाने की चौतरफा चर्चा हो रही है.

नीतीश के लिए किसका साथ फायदेमंद है

नीतीश कुमार के लिए अब किसी भी एक तरफ रहना फायदेमंद नहीं रह गया है. उनके लिए एक तरफ रह कर दूसरी साइड से नजदीकी होने का संकेत देते रहना ही फायदेमंद है - और ये सब बारी बारी वो लालू यादव के साथ भी करते रहते हैं, और मोदी-शाह के साथ भी. जैसे अभी दीनदयाल उपाध्याय कार्यक्रम में जाकर इशारे कर रहे हैं, बिहार में राज्यपाल की नियुक्ति के बाद अमित शाह से हुई बातचीत को भी नीतीश कुमार वैसे ही प्रचारित किया था.

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