नीतीश कुमार ने मधुबनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भी संकल्प दोहराया था कि वो कहीं नहीं जाएंगे. मतलब, बीजेपी को छोड़कर एनडीए से कहीं नहीं जाएंगे. मतलब, आरजेडी के साथ महागठबंधन में नहीं जाएंगे. और, उसके 48 घंटे बाद ही नीतीश कुमार ने वही बातें पटना में जेडीयू के एक कार्यक्रम में भी दोहराई.
नीतीश कुमार ने ये भी दोहराया कि पार्टी के कुछ लोगों ने बीच में गड़बड़ी कर दी, उधर चले गये थे. अब कहीं नहीं जाएंगे. जो हम लोगों के साथ थे, उनके साथ ही रहेंगे. मधुबनी में भी नीतीश कुमार ने ऐसी ही बातें की थी. तब नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़कर महागठबंधन में जाने का ठीकरा जेडीयू नेता ललन सिंह पर ही फोड़ दिया था, और वही बाद जेडीयू के कार्यक्रम में भी दोहराई. ललन सिंह पहले जेडीयू के अध्यक्ष हुआ करते थे, और फिलहाल केंद्रीय मंत्री हैं.
और यही वजह है कि नीतीश कुमार के लगातार एक जैसे बयान पर सवाल उठ रहा है. आखिर बार बार कहीं नहीं जाने का संदेश खास तौर पर नीतीश कुमार किसे देते हैं?
क्या नीतीश कुमार का ये संदेश सिर्फ बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए होता है?
क्या नीतीश कुमार का ये संदेश भाई जैसे अपने दोस्त आरजेडी नेता लालू यादव के लिए होता है?
या फिर, अपनी पार्टी JDU के साथियों को एकजुट रखने के लिए ही बार बार वो ये मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या बीजेपी को नीतीश कुमार पर भरोसा नहीं बचा है?
एनडीए और बिहार के महागठबंधन में एक जैसा ही पेच फंसा हुआ है. जैसे कांग्रेस तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा होने में अड़ंगा डाल रखा है, बीजेपी ने भी बिहार में एनडीए के नेता का मामला पार्टी के संसदीय बोर्ड के नाम पर लटका रखा है.
नीतीश कुमार को सबसे ज्यादा डर इसी बात का है कि अगर बीजेपी ने उनका नाम आगे नहीं किया तो क्या होगा. जैसे ही बीजेपी की तरफ से बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की भूमिका से जुड़ी कोई बात कह दी जाती है, नीतीश कुमार खामोश और जेडीयू के प्रवक्ता हद से ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं. फिर दोनो तरफ से बीच बचाव के प्रयास होते हैं, और मामला शांत हो जाता है.
लोकसभा चुनाव 2024 के पहले आरजेडी और विपक्षी दलों का INDIA ब्लॉक छोड़कर एनडीए में लौटे नीतीश कुमार मौका देखकर कई बार कह चुके हैं कि वो बीजेपी का साथ छोड़कर अब कहीं नहीं जाने वाले हैं - और अब, एक नया क्लॉज ये जोड़ रहे हैं कि ये सब सिर्फ ललन सिंह की वजह से हुआ.
और इस तरह मोदी को खुश करने और बीजेपी को भरोसा दिलाने के चक्कर में अपने ही साथी ललन सिंह को सूली पर चढ़ा देते हैं - लेकिन, सवाल यही है कि क्या अपनी इस मुहिम में वो सही रास्ते पर हैं? सफल या असफल होने की बात तो बिहार चुनाव के दौरान ही मालूम हो सकेगी.
क्या लालू यादव को नीतीश कुमार कोई संदेश दे रहे हैं?
बताया गया था कि लालू यादव के साथ ललन सिंह की बढ़ती नजदीकियों से नीतीश कुमार परेशान रहने लगे थे. और, बीजेपी के साथ उनको आरसीपी सिंह नहीं बनने देना चाहते थे, इसलिए ललन सिंह को हटाकर खुद ही फिर से जेडीयू के अध्यक्ष बन गये.
नीतीश कुमार एक साथ दो बातें समझा रहे हैं. पहली बात, वो ललन सिंह के कहने पर ही बीजेपी को छोड़कर लालू यादव की आरजेडी के साथ चले गये थे. और दूसरी बात, वो ललन सिंह के कहने पर ही महागठबंधन छोड़ दिये, और एनडीए में लौट आये.
नीतीश कुमार के बयान में ललन सिंह के कहने पर एनडीए छोड़ने की बात जितना ही महत्व उनके कहने पर महागठबंधन छोड़ने का है. जैसे एनडीए छोड़ना बीजेपी के लिए तकलीफदेह है, वैसे ही महागठबंधन छोड़ने में ललन सिंह की सलाह लालू यादव के लिए बुरा लगने वाली बात है - नीतीश कुमार बड़े ही आराम से एक झटके में ललन सिंह को बीजेपी और लालू यादव दोनो के सामने विलेन ठहरा देते हैं.
फिर तो यही लग रहा है कि लालू यादव को नीतीश कुमार संदेश दे रहे हैं कि उनकी दोस्ती अब भी पहले वाली ही है, बस बीच में ललन सिंह ने गड़बड़ कर दिया था, लेकिन उसको बीच में से हटा दिये. मतलब, अगर आगे फिर से डील करने हुई तो डायरेक्ट होगी.
क्या जेडीयू के साथियों को नीतीश कुमार कोई आश्वासन दे रहे हैं?
एक बात तो जगजाहिर है कि बार बार पलटी मारने से नीतीश कुमार की छवि पर गहरा असर पड़ा है. अगर बीजेपी और लालू यादव का नीतीश कुमार की बातों पर भरोसा कम हुआ है, तो जेडीयू नेताओं के मन में भी शंका तो पैदा हुई ही होगी.
खतरा तो जेडीयू के भी टूट जाने का जताया ही जा रहा है. प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव तो ऐसी बातें करते ही हैं, जेडीयू नेता भी कहने लगे हैं कि निशांत कुमार को नहीं लाया गया तो जेडीयू खत्म हो जाएगी.
ऐसे में जेडीयू विधायकों और नेताओं को भी तो भरोसा दिलाना ही होगा कि वे बिल्कुल निश्चिंत रहें - क्योंकि अब नीतीश कुमार को कहीं नहीं जाना है. सबसे ज्यादा दिक्कत तो कार्यकर्ताओं को होती है, क्योंकि फील्ड में आमने सामने की लड़ाई तो उनको ही लड़नी पड़ती है.
भरोसा तो उनका भी डिगा ही होगा. क्या पता नीतीश कुमार कल फिर पलटी मार लें, और जो अपने इलाके से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, वो आरजेडी के हिस्से में चली जाये. चैलेंज तो ऐसा बीजेपी के साथ रहने पर भी है, लेकिन जैसे तैसे वे ऐडजस्ट करने की कोशिश करते हैं, और फिर एक दिन मालूम होता है कि सब कुछ एक झटके में बदल गया है.