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तेजप्रताप यादव के मोर्चे को महागठबंधन में जगह तो मिलेगी नहीं, फिर ये लीला क्यों?

तेजप्रताप यादव ने बेहद होशियारी दिखाते हुए  BJP और JDU से दूरी बना ली है. यह उनकी राजनीतिक समझ ही है. तेजप्रताप समझते हैं कि उनको RJD के कोर वोटर बेस यादव, मुस्लिम, और अन्य पिछड़ा वर्ग में ही अपनी जगह बनानी है.

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तेज प्रताप यादव ने मंगलवार को बिहार विधानसभा चुनावों के लिए एक नया मोर्चा बनाया. (Photo: X/@TejYadav14)
तेज प्रताप यादव ने मंगलवार को बिहार विधानसभा चुनावों के लिए एक नया मोर्चा बनाया. (Photo: X/@TejYadav14)

लालू यादव के बड़े पुत्र और आरजेडी से निष्कासित विधायक और पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव को अगर आप भी एक मसखरा नेता समझ रहे थे, तो अब अपने विचार में सुधार कर लीजिए. जब से वे RJD से अलग हुए हैं, तब से नित नई राजनीतिक लीलाएं कर रहे हैं. ताजा ताजा उन्होंने पांच अति छोटे दलों का नया मोर्चा बनाया है. जिसमें तेजप्रताप की ही तरह किन्‍हीं अन्‍य दलों से नाराज या छिटके हुए नेता शामिल हैं. पर बीजेपी और एनडीए से निश्चित दूरी बनाकर तेजप्रताप आरजेडी और कांग्रेस को जिस तरह अपने साथ आने का आमंत्रण दे रहे हैं वह उनकी रणनीतिक कुशलता ही है. क्योंकि आम तौर पर तेजप्रताप जैसे लोग जब अपने ताकतवर परिवार से बगावत करके निकलते हैं तो उन्हें विपक्ष का घर ही सहारे में मिलता है. जाहिर है कि विपक्ष उनका फायदा तो उठाता है पर उस फायदे का कुछ भी अंश बगावत करने वाले को नहीं मिलता है. इस तरह अपने परिवार से बगावत करने वाले नेता का राजनीतिक कैरियर हमेशा के लिए खत्म हो जाता रहा है.  पर तेजप्रताप यादव ने उस राह का मुसाफिर न बनकर अपनी राजनीतिक समझ का बेहतरीन उदाहरण दिया है. 

स्वतंत्र सियासी पहचान की कोशिश

तेजप्रताप की यह रणनीति शायद RJD नेतृत्व, खासकर तेजस्वी यादव, पर दबाव बनाने में भी काम आएगी. तेजस्वी के नेतृत्व में RJD ने बिहार में मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई है, लेकिन पार्टी के भीतर और महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर असंतोष रहा है. तेजप्रताप इस असंतोष का फायदा उठाकर कुछ सीटों पर महागठबंधन की पार्टियों से टिकट न मिलने पर नाराज होने वाले लोगों को अपने साथ लाकर और मजबूत बन सकते हैं.अगर उनका मोर्चा कुछ सीटों पर प्रभाव दिखाता है, तो RJD को उनके साथ समझौता करने के लिए विवश कर सकता है.अगर ऐसा होता है तो यह उनकी बहुत बड़ी राजनीतिक सफलता साबित हो सकती है. 

टीम तेज प्रताप यादव और VVIP सहित अति कुछ और बागी नेताओं जो उनकी ही तरह छोटे छोटे दल  बनाकर अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं के लिए प्राणवायु साबित हो सकती है. महुआ जैसे क्षेत्रों में, जहां उनकी व्यक्तिगत पकड़ है, वे निर्दलीय या नए गठबंधन के जरिए अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं. VVIP का निषाद समुदाय में कुछ प्रभाव काम कर सकता है. तेजप्रताप इस गठबंधन के जरिए यादव और निषाद वोटों को एकजुट करने की कोशिश एक शर्त पर काम कर सकती हैं. अगर सीट बंटवारे के चलते बागी हुए कुछ मजबूत लोग उनके साथ आते हैं तो उनकी कोशिश कामयाब हो सकती है. 

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BJP-NDA से दूरी और महागठबंधन की विचारधारा

तेजप्रताप यादव ने बेहद होशियारी दिखाते हुए  BJP और JDU से दूरी बना ली. यह उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता और सियासी रणनीति का हिस्सा है. तेजप्रताप यादव समझते हैं कि उनको RJD के कोर वोटर बेस यादव, मुस्लिम, और अन्य पिछड़ा वर्ग में ही अपनी जगह बनानी है. सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा ही उनके लिए स्वभावगत है. NDA के साथ जाना उनके लिए आत्मघाती होता. जिस तरह यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हिंदू हृदय सम्राट कल्याण सिंह के लिए मुलायम सिंह यादव के साथ जाना निरर्थक ही नहीं बल्कि नुकसानदेह साबित हुआ था . वैसे ही अगर तेजप्रताप बीजेपी के साथ जाते तो कहीं के नहीं रहते. इससे वे अपने समर्थकों से कट सकते थे. उनका मुकेश सहनी की VIP को बहरूपिया बताना और NDA की आलोचना करना इस बात का सबूत है कि वो आरजेडी के वोट बैंक में ही अपनी ही राह ढूंढ रहे हैं.

महागठबंधन पर दबाव की रणनीति

यह तय है कि तेजप्रताप का नया मोर्चा महागठबंधन और RJD पर दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है. बिहार की सियासत में छोटे दल अक्सर गठबंधन के समीकरण बदल देते रहे हैं. अगर तेजप्रताप का मोर्चा कुछ सीटों पर प्रभाव दिखाता है, तो महागठबंधन को उनके साथ समझौता करना पड़ सकता है, खासकर अगर यह NDA के खिलाफ उनकी स्थिति को मजबूत करता है. इस मोर्चे की स्थिति तब महत्वपूर्ण हो सकती है जब महागठबंधन में पहले से शामिल दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर तनाव पैदा हो. ऐसे में तेजप्रताप के मोर्चे में कुछ स्थानीय तौर पर मजबूत लोग शामिल हो सकते हैं. जाहिर है कि अगर ऐसा होता है तो महागठबंधन दबाव में आ जाएगा.

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सुर्खियों में बने रहने की रणनीति

तेजप्रताप आरजेडी में रहते हुए भी सुर्खियां बटोरने में माहिर रहे हैं. उनकी इसी आदत के चलते लोग उनकी तुलना उनके पिता लालू यादव से करते रहे हैं. लालू यादव भी अपनी इस तरह हरकतों के चलते ही सुर्खियां बटोरते रहे और एक दिन बड़े नेता के रूप में स्थापित हो गए. तेज प्रताप अपनी इसी सियासी शैली को बनाए रखकर कब अपनी तकदीर बदल सकते हैं इसे कहा नहीं जा सकता. बिहार की सियासत ही नहीं पूरे देश की सियासत में व्यक्तिगत छवि और प्रचार महत्वपूर्ण हैं. तेजप्रताप इस रणनीति का इस्तेमाल करके भले ही अपने दल और मोर्चे के लिए कुछ कर पाएं पर कम से कम अपना भला तो करेंगे ही. इस मोर्चे के जरिए बिहार की राजनीति में उनकी उपस्थिति उनके समर्थकों को एकजुट करने में सक्षम हो सकती है.

महागठबंधन में जगह की संभावना

तेजप्रताप को अगर अपनी रणनीति में आंशिक सफलता भी मिलती है तो उनके नए मोर्चे को महागठबंधन के लिए स्वीकार्य बनाने में काम आ जाएगी. आम तौर पर ऐसा लग रहा है कि तेजप्रताप के मोर्चे को महागठबंधन में जगह नहीं मिलने वाली है. यह धारणा काफी हद तक सही लगती है. लेकिन सियासत में कुछ भी असंभव नहीं है. अगर तेजप्रताप का मोर्चा कुछ सीटों पर प्रभाव दिखाता है, खासकर यादव और निषाद बहुल क्षेत्रों में तो महागठबंधन को उनके साथ समझौता करने पर विचार करना पड़ सकता है. हालांकि तेजस्वी यादव कभी नहीं चाहेंगे कि उनके भाई तेजप्रताप महागठबंधन में आएं. उन्होंने तेजप्रताप की अनिश्चित बयानबाजी का डर दिखाकर ही उन्हें आरजेडी से बाहर करवाया था. 

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आखिर में RJD में घर वापसी का विकल्‍प तो है ही

तेजप्रताप यादव की आज की राजनीति में जो भी पहचान है वह उनके पिता लालू यादव और मां राबड़ी देवी के नाम से ही है. तेज प्रताप यादव को पता है कि अपने पिता और परिवार का विरोध करके वो कहीं का नहीं रहेंगे. इसलिए वो अपने पिता की विरासत में ही अपना हिस्सा खोजने का प्रयास कर रहे हैं. RJD से निष्कासन के बावजूद, उनके बयानों से यह स्पष्ट होता रहा है कि वे अपने परिवार के खिलाफ नहीं बोलेंगे. इशारों में अपने भाई तेजस्वी के प्रति नाराजगी जाहिर  करने के बावजूद उनके खिलाफ उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला. बल्कि उन्हें हमेशा आशीर्वाद ही देते रहे. मतलब साफ है कि वे पार्टी के दायरे से पूरी तरह बाहर नहीं जाना चाहते. उनका RJD-कांग्रेस को अपने नए मोर्चे में शामिल होने का न्योता देना इसी बात का संकेत है कि वे RJD के साथ समझौते की गुंजाइश रख रहे हैं.

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