scorecardresearch
 

तारिक रहमान की वापसी से बांग्लादेश में क्या बदलेगा, ये 5 सवाल आपको भी कौंध रहे हैं?

बांग्लादेश में BNP के कार्यवाहक अध्‍यक्ष तारिक रहमान की 17 साल बाद निर्वासन से वापसी ने नई बहस को जन्‍म दिया है. ढाका में गुरुवार को दिया गया उनका भाषण आम चुनाव का आगाज तो था ही, उसने बांग्‍लादेश, भारत और हिंदुओं को भी कई इशारे किए.

Advertisement
X
बांग्लादेश में तारिक रहमान की वापसी से क्या सत्ता के दरवाजे खुलेंगे (Photo: Social Media)
बांग्लादेश में तारिक रहमान की वापसी से क्या सत्ता के दरवाजे खुलेंगे (Photo: Social Media)

तारिक रहमान (Tarique Rahman), बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के पुत्र हैं.  17 वर्षों के निर्वासन के बाद उनकी वतन वापसी ने दक्षिण एशियाई राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होने की उम्मीद जगी है. 25 दिसंबर 2025 को ढाका लौटने के बाद, उन्होंने अपनी पहली सार्वजनिक स्पीच में एकता, कानून व्यवस्था और एक सुरक्षित बांग्लादेश की दृष्टि पेश की है.

रहमान की वापसी बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति को तो प्रभावित करने ही वाली है साथ में क्षेत्रीय संबंधों में बदलाव के भी आसार नजर आ रहे हैं.भारत में लोगों के बीच उत्सुकता है कि कि क्या रहमान की वापसी से हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और भारत-बांग्लादेश संबंधों पर कुछ प्रभाव पड़ेगा? पिछले कुछ सालों से बांग्लादेश की राजनीति भारत विरोध पर टिकी हुई है. हाल के महीनों में बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों की घटनाएं भी बढ़ी हैं . जाहिर है कि सबकी निगाहें रहमान की वापसी पर उनके दिए गए स्पीच के विश्वेषण पर लगी हैं. बांग्लादेश की राजनीति को समझने वाले इसको अलग अलग तरीके से डिफाइन कर रहे हैं.

1-भारत के लिए क्या बांग्लादेश बदल जाएगा 

 यह घटना शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद हुई है, जिस दौरान भारत-बांग्लादेश संबंध मजबूत थे. अब BNP की संभावित सत्ता में वापसी से कई बदलाव आ सकते हैं, जो भारत की सुरक्षा, कूटनीति और आर्थिक हितों को प्रभावित करेंगे. सबसे पहले, राजनीतिक स्थिरता के संदर्भ में बदलाव संभव है. रहमान की वापसी BNP को मजबूत करेगी, जो चुनावों में प्रमुख दावेदार है. 

Advertisement

विशेषज्ञों का मानना है कि इससे बांग्लादेश में अस्थिरता कम हो सकती है, जो भारत के लिए फायदेमंद होगा. पूर्व भारतीय उच्चायुक्त रिवा गांगुली दास ने कहा कि रहमान की वापसी केंद्रवादी ताकतों को मजबूत करेगी, जो कट्टरपंथ के उदय को रोक सकती है.
हालांकि, अगर BNP जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी दलों के साथ गठबंधन करती है, तो भारत की चिंताएं बढ़ेंगी, क्योंकि जमात का इतिहास भारत-विरोधी रहा है. 

जमात की बढ़ती ताकत से भारत की पूर्वोत्तर सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है, जहां पहले ULFA जैसे समूहों को शरण मिली थी. कूटनीतिक स्तर पर, भारत को सतर्क रहना होगा. हसीना सरकार भारत-मित्र थी, लेकिन BNP का इतिहास पाकिस्तान-समर्थक रहा है.

हालांकि रहमान की स्पीच में बांग्लादेश फर्स्ट नीति का जिक्र है, जो दिल्ली या इस्लामाबाद पर निर्भर नहीं होगी. रहमान ने कहा कि न पिंडी न दिल्ली. यह तटस्थता भारत के लिए अवसर पैदा कर सकती है.

2-बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए क्या बीएनपी धर्मनिरपेक्ष पार्टी बन जाएगी 

बांग्लादेश में हिंदू समुदाय, जो आबादी का 8-10% है, लंबे समय से उत्पीड़न का शिकार रहा है. तारिक रहमान की वापसी के बाद BNP की संभावित सत्ता में वापसी से सवाल उठता है कि क्या पार्टी धर्मनिरपेक्ष बनेगी. रहमान ने 25 दिसंबर वाली कल की स्पीच में कहा कि यह देश मुस्लिमों, हिंदुओं, क्रिश्चियनों का है, जाहिर है कि यह उनके सेक्युलर दृष्टिकोण का संकेत देती है. 

Advertisement

 लेकिन BNP का इतिहास और वर्तमान राजनीतिक गतिशीलता से यह स्पष्ट नहीं है कि यह बदलाव वास्तविक होगा या चुनावी रणनीति. सकारात्मक पक्ष से, रहमान की स्पीच एक सेक्युलर पिच लगती है. उन्होंने कानून व्यवस्था और सभी नागरिकों की सुरक्षा पर जोर दिया, जो हाल की हिंसा (जैसे मंदिर हमले और लिंचिंग) के संदर्भ में महत्वपूर्ण है. 

BNP ने हाल में कहा था कि राजनीतिक संबद्धता या धर्म व्यक्तिगत है, लेकिन राज्य सबका होगा. अगर BNP सत्ता में आती है, तो हिंदुओं को मुख्यधारा में शामिल करने का प्रयास हो सकता है, क्योंकि हिंदू वोट बैंक महत्वपूर्ण है.  हालांकि, BNP का अतीत सेक्युलर नहीं रहा है.

खालिदा जिया के शासन में हिंदुओं पर हमले हुए, और पार्टी जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन करती रही, जो इस्लामी राज्य की वकालत करता है. रहमान पर भी भ्रष्टाचार और हिंसा के आरोप हैं, जो उनकी छवि को प्रभावित करते हैं. हिंदू समुदाय में संशय है, क्योंकि अंतरिम सरकार के दौरान हिंसा बढ़ी है.

 अगर रहमान के भाषण के I have a plan में अल्पसंख्यक सुरक्षा शामिल है, तो हिंदुओं के लिए सकारात्मक बदलाव आएगा. लेकिन अगर कट्टरपंथी तत्व हावी हुए, तो उत्पीड़न जारी रहेगा. अंत में, BNP के सेक्युलर बनने की संभावना है, लेकिन यह क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा. हिंदुओं के लिए यह एक मौका है, लेकिन इतिहास से सतर्कता जरूरी है. 

Advertisement

3-क्या बीएनपी और जमात का रिश्ता बदल जाएगा

तारिक रहमान की वापसी के बाद BNP और जमात-ए-इस्लामी के संबंधों में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं. पहले BNP जमात के साथ गठबंधन करती रही, लेकिन अब चुनावों से पहले जमात को मुख्य विरोधी मानने की रणनीति अपनाती दिख रही है.
 रहमान की स्पीच में एकता पर जोर है, जो जमात के कट्टरपंथ से दूरी का संकेत देती है.साक्ष्यों से पता चलता है कि BNP जमात को चुनौती दे रही है. रहमान की वापसी से BNP मजबूत हुई है, और विशेषज्ञों का कहना है कि इससे राजनीतिक अराजकता कम हो सकती है.  जमात की बढ़ती ताकत, विशेष रूप से हसीना सरकार के पतन के बाद, BNP के लिए खतरा है.

जमात और NCP के बीच सीट-शेयरिंग की चर्चा है, जो BNP के खिलाफ गठबंधन का संकेत है.  BNP अब जमात को विरोधी मान रही है, क्योंकि जमात की इस्लामी एजेंडा BNP की सेक्युलर पिच से टकराती है. चुनावों में BNP जमात से वोट छीनने की कोशिश करेगी. 

4-क्या बीएनपी का पाकिस्तान समर्थक चेहरा बदल सकता है 

BNP का इतिहास पाकिस्तान से निकटता का रहा है . संस्थापक जिया उर रहमान ने जमात-ए-इस्लामी (जो 1971 के मुक्ति संग्राम में पाकिस्तान के साथ था) को राजनीति में वापस लाया, और 2001-2006 के BNP शासन में पाकिस्तान-समर्थक तत्व मजबूत थे. तारिक रहमान ने 2014 में शेख मुजीब को पाकबंधु (पाकिस्तान का दोस्त) कहा था, जो पाकिस्तान-समर्थक छवि को मजबूत करता है. लेकिन वर्तमान संदर्भ में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं.

Advertisement

तारिक रहमान ने अपनी स्पीच में स्पष्ट कहा कि न दिल्ली, न पिंडी (रावलपिंडी), बांग्लादेश पहले. यह पाकिस्तान (पिंडी) और भारत (दिल्ली) दोनों से दूरी का संकेत है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह BNP को अधिक स्वतंत्र और केंद्रवादी दिखाने की रणनीति है, जो पाकिस्तान-समर्थक छवि से दूर ले जा रही है.

BNP अब जमात को मुख्य विरोधी मान रही है, जो पाकिस्तान की ISI से जुड़ी मानी जाती है. चुनावों से पहले BNP ने जमात के साथ गठबंधन से इनकार किया है. विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम BNP को सेक्युलर और लोकतांत्रिक दिखाने का प्रयास है, जो पाकिस्तान-समर्थक छवि को कमजोर करता है.

5- क्या तारिक रहमान शेख हसीना को लेकर संजीदा हो सकते हैं?

तारिक रहमान के 25 दिसंबर 2025 को दिए गए भाषण में बांग्लादेश में उनके निर्वासन के बाद आए बदलावों को स्वीकार करना और बुनियादी ढांचे तथा विकास की प्रगति की सराहना करना एक महत्वपूर्ण और अप्रत्याशित संदेश थे. 

यह टिप्पणी इसलिए खास है क्योंकि रहमान और BNP लंबे समय से शेख हसीना की अवामी लीग सरकार की कड़ी आलोचना करते रहे हैं, उन्हें तानाशाही, भ्रष्टाचार और दमनकारी बताते रहे हैं.  

रहमान ने कहा कि उनके देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश काफी बदल गया है और विकास तथा इंफ्रास्ट्रक्चर में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. यह स्वीकारोक्ति हसीना सरकार के कार्यकाल (2009-2024) की उपलब्धियों को अप्रत्यक्ष रूप से मान्यता देती है.

Advertisement

यह घरेलू राजनीति में सुलह (reconciliation) का संकेत देता है, क्योंकि BNP अब अवामी लीग के खाली राजनीतिक स्पेस को भरने की कोशिश कर रही है. फरवरी 2026 के चुनावों में अवामी लीग प्रतिबंधित होने से BNP खुद को अधिक उदार और शासन-केंद्रित दिखाना चाहती है.

यह बयान पूर्ण सुलह नहीं है, लेकिन रणनीतिक नरमी जरूर दिखाता है. रहमान ने भाषण में हसीना या अवामी लीग का सीधा नाम लेकर हमला नहीं किया, बल्कि एकता, शांति और सभी समुदायों (मुस्लिम, हिंदू, क्रिश्चियन) की सुरक्षा पर फोकस किया.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement