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दिखावे का ओबीसी प्यार, राजस्थान से तेलंगाना तक पार्टियों ने संख्या नहीं दबंगई को दी तरजीह

5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में पिछड़ी जातियों के हक की सबसे अधिक चर्चा राहुल गांधी कर रहे हैं पर टिकट बंटवारे में कांग्रेस ने सबसे कम महत्व ओबीसी कम्युनिटी को दिया है. पढ़िए बीजेपी और बीआरएस आदि की क्या स्थित है?

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टिकट देने में पार्टियों ने संख्या बल के बजाय धनबल और बाहुबल को महत्वपूर्ण माना है
टिकट देने में पार्टियों ने संख्या बल के बजाय धनबल और बाहुबल को महत्वपूर्ण माना है

मध्य प्रदेश-राजस्थान-छत्तीसगढ़-तेलंगाना और मिजोरम में बीजेपी और कांग्रेस के ही बीच लड़ाई है. दोनों पार्टियां अपने जन्म से ही सवर्णों की पार्टी रही हैं. पर दोनों ओबीसी पार्टी के रूप में अपना मेकओवर कर रही हैं, जिसमें कांग्रेस से बीजेपी थोड़ी आगे है. हालांकि राहुल गांधी अपनी हर सभा में जाति जनगणना का वादा करते हैं और पिछड़ों के हक की बात कर रहे हैं.पर वास्तविकता बिल्कुल अलग है. जब बात टिकट बंटवारे की आती है तो पिछड़ों से ज्यादा ऐसे लोगों पर भरोसा होता है जो संख्या बल में भले कम हों, धन बल और बाहुबल में मजबूत हों. सवर्णों को भी टिकट देने में यही बात देखी जाती है कि जिस सवर्ण जाति के उम्मीदवार को टिकट दिया जा रहा है धन और बल में मजबूत हैं या नहीं. जैसे तेलंगाना में रेड्डी और राजस्थान में जाट. यही कारण है कांग्रेस ने पिछड़ों को उनकी संख्या के हिसाब से नहीं टिकट दिया जबकि ताकतवर जातियों को उनकी संख्या के अनुपात से भी अधिक टिकट दिया. यह टेंडेंसी सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं है. बीजेपी हो या बीआरएस सभी ने संख्या बल के मुकाबले धनबल-बाहुबल वाले उम्मीदवारों पर अधिक उम्मीद जताया है. 

राजस्थान में  जाटों को वरीयता

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 45 से 48 प्रतिशत ओबीसी की आबादी है. पर दोनों ही दलों (बीजेपी और कांग्रेस ) ने टिकट वितरण में पिछड़े समुदाय की उन जातियों को जनसंख्या के अनुपात में नजरअंदाज किया है जो धन और बल में कमजोर हैं. ओबीसी समुदाय में भी उन्हीं जातियों को टिकट मिला है जो धन बल और बाहुबल से मजबूत हैं. प्रदेश में कुल 200 विधानसभा सीट हैं . 34 क्षेत्र अनुसूचित जाति तथा 25 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं. इस तरह 59 सीट तो आरक्षित हो गई. इस तरह राजस्थान में अपनी जाति के अनुपात में पिछड़ों को टिकट तो मिला है पर पिछड़ों में जो मजबूत हैं उन्हें ही दलों ने तरजीह दी है. राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने धनबल और बाहुबल के कारण ही जाटों को खूब टिकट मिला है.  कांग्रेस ने करीब 72 सीटों पर ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, उनमें से 34 जाट बिरादरी के हैं. इसी प्रकार भाजपा के 70 ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया है जिसमें 33 जाट हैं. इस तरह ओबीसी के हिस्से अधिकतकर सीटें जाट समुदाय को दी गईं हैं क्योंकि प्रदेश में जाट अन्य ओबीसी जातियों के मुकाबले ताकतवर हैं.

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तेलंगाना में सभी दलों को रेड्डियों पर भरोसा

दक्षिण के राज्य तेलंगाना का भी हाल उत्तर भारत के हिंदी बेल्ट जैसा ही है. तेलंगाना में भी चुनाव का प्रचार अन्य पिछड़ा वर्ग के इर्द-गिर्द घूम रहा है. लेकिन तीनों प्रमुख दलों  सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), कांग्रेस और भाजपा को उच्च जाति के उम्मीदवारों पर ही भरोसा है. मुख्य रूप से रेड्डियों पर ही तीनों ही दलों को भरोसा है. जबकि जनसंख्या के अनुपात में रेड्डी बहुत कम हैं पर धनबल और बाहुबल में सबसे मजबूत. भाजपा, जिसने सत्ता में आने पर एक ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है, ने करीब  30 रेड्डी उम्मीदवारों (27% के करीब) को मैदान में उतारा है. पार्टी 199 में से 111 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, बाकी सीटें अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के लिए छोड़ी गई हैं.

बीआरएस, जिसपर ओबीसी की उपेक्षा को लेकर विपक्ष लगातार हमला कर रहा है 35 रेड्डी कैंडिडेट को टिकट दिया है जबकि अन्य ऊंची जातियों के 16 अन्य उम्मीदवारों को टिकट आवंटित किए हैं. इस तरह सबसे अधिक ओबीसी को टिकट यहां भी बीजेपी ने ही दिए हैं.कुल 39 टिकट जो करीब 35% के करीब है. सत्तारूढ़ बीआरएस ने 24 ओबीसी यानि कि 20% पिछड़े समुदाया के उम्मीदवारों को टिकट दिया है. राहुल गांधी की यहां भी नहीं चली है शायद इसलिए कांग्रेस ने केवल 20 पिछड़ी जाति के लोगों को उम्मीदवार बनाया है जो कुल टिकट का करीब 18% ही है.

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मध्य प्रदेश में भी ओबीसी को अनुपात के हिसाब से टिकट नहीं

इंडिया गठबंधन बनने के बाद से ही कांग्रेस नेता जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा लगा रहे हैं.राहुल गांधी घूम घूमकर सभी राज्यों में बिहार की तर्ज पर जातिगत गणना कराने का भी वादा कर रहे हैं. पर उनकी पार्टी कांग्रेस को लगता है कि पिछड़ों को टिकट दिया तो वो जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच सकेंगे. जीत की संभावना उन्हें दबंग जातियों पर ज्यादा है इसलिए ही ओबीसी को उनकी आबादी के अनुपात में आधा टिकट भी नहीं दिया है.मध्यप्रदेश में ओबीसी की आबादी करीब 51 फीसदी है इसके हिसाब से कुल 230 सीटों में से करीब 117 सीटों पर पिछड़े उम्मीदवारों को टिकट मिलना चाहिए था. पर कांग्रेस ने इस वर्ग के महज 62 उम्मीदवार (27 फीसदी) ही मैदान में उतारे हैं. कांग्रेसे से उलट  भाजपा ने पिछड़े उम्मीदवारों पर अधिक भरोसा जताया है.बीजेपी ने राज्य में करीब 71 पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को टिकट दिया है. हालांकि बीजेपी ने भी पिछड़ों को उनकी जाति के अनुपात में कम टिकट दिया है.

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