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भोपाल में स्कॉलरशिप घोटाले का खुलासा, 972 फर्जी छात्रों के नाम पर 57 लाख की हेराफेरी, क्राइम ब्रांच ने शुरू की जांच

भोपाल में छात्रवृत्ति घोटाले का बड़ा खुलासा हुआ है, जिसमें 40 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों ने गैरमौजूद छात्रों के नाम पर 57 लाख का सरकारी फंड हड़प लिया. 17 मदरसे और 23 स्कूलों ने 2021-22 में 972 फर्जी नामांकन दिखाकर पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए दी जाने वाली छात्रवृत्ति का दुरुपयोग किया.

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अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के नाम पर बड़ा घोटाला (फोटो क्रेडिट - रॉयटर्स)
अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति के नाम पर बड़ा घोटाला (फोटो क्रेडिट - रॉयटर्स)

Scholarship Scam in Bhopal: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक बड़ा छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) घोटाला सामने आया है, जिसमें 40 से अधिक शैक्षणिक संस्थानों, जिनमें 17 मदरसे और 23 स्कूल शामिल हैं, पर उन छात्रों के नाम पर सरकारी फंड लेने का आरोप है जो सिर्फ कागज़ों में थे, असल में नहीं थे. भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए भोपाल क्राइम ब्रांच ने इन संस्थानों के खिलाफ केस दर्ज किया है. ये छात्रवृत्तियाँ पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों के जरूरतमंद छात्रों के लिए निर्धारित थीं, लेकिन इन छात्रों के नाम पर फर्जी दस्तावेजों से लाखों रुपये की रकम निकाली गई.

केवल मान्यता प्राप्त कक्षा से अधिक छात्रों का नामांकन

इन संस्थानों पर 2021–22 शैक्षणिक सत्र के दौरान कक्षा 11वीं और 12वीं के 972 फर्जी छात्रों का नामांकन दिखाकर छात्रवृत्ति लेने का आरोप है. हैरानी की बात यह है कि इनमें से अधिकतर स्कूल और मदरसे केवल 8वीं या 10वीं कक्षा तक ही मान्यता प्राप्त हैं. इसके बावजूद इन्होंने प्रति छात्र ₹5,700 की दर से छात्रवृत्ति ली और कुल ₹57 लाख की रकम सरकारी खजाने से निकाल ली. जबकि मंत्रालय पहले ही भोपाल जिले के 83 ऐसे संस्थानों को ‘रेड फ्लैग’ कर चुका था, घोटाला तब भी बेरोकटोक चलता रहा. अब क्राइम ब्रांच यह जांच कर रही है कि ये संस्थान वास्तव में शिक्षा देने में कितने गंभीर थे या सिर्फ कागज़ों पर धांधली करने में माहिर हैं.

अल्पसंख्यक समुदायों के लिए बनी योजना बनी घोटाले का जरिया

यह योजना मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी जैसे अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को सहायता देने के लिए शुरू की गई थी. लेकिन इसके लाभ वास्तविक छात्रों तक पहुंचने के बजाय कुछ संस्थानों के लिए ‘पर्सनल एटीएम’ बनकर रह गए. पुलिस का मानना है कि हो सकता है कि यह घोटाला किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि संस्थानों के प्रबंधन, नोडल अधिकारियों और प्रमुखों समेत एक संगठित गिरोह की मिलीभगत से हुआ हो. इसलिए अब सभी की भूमिका जांच के दायरे में है.

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कांग्रेस ने उठाई सीबीआई जांच की मांग

कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख मुकेश नायक ने इस मामले पर बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला. उन्होंने कहा, “कई छात्रों को वर्षों से छात्रवृत्ति नहीं मिली और अब उनके नाम तक का इस्तेमाल घोटाले में किया जा रहा है. यह मामला स्पष्ट रूप से सीबीआई जांच की मांग करता है. अगर जांच एजेंसियां सिर्फ विपक्षी नेताओं को ही निशाना बनाती रहेंगी तो असली जवाबदेही कभी तय नहीं होगी. सरकार को छात्रों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.”

राज्य मंत्री ने खुद को घोटाले से अलग किया

वहीं, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री कृष्णा गौर ने खुद को इस मामले की समय-सीमा से अलग करते हुए कहा, “यह घोटाला मेरे कार्यकाल से पहले का है. हालांकि हमने विभागीय जांच शुरू कर दी है और मैं व्यक्तिगत रूप से यह सुनिश्चित करूंगी कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो. किसी को भी छात्रों की छात्रवृत्ति की राशि हड़पने का हक नहीं है. सरकार अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है.”

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पुलिस कर रही है सभी पहलुओं की जांच

आजतक से बातचीत में भोपाल पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र ने कहा, “पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई है. करीब ₹57 लाख की छात्रवृत्ति घोटाले की बात सामने आई है, जिसमें कुछ संस्थानों ने केवल 10वीं तक मान्यता होने के बावजूद 11वीं–12वीं के छात्रों के नाम से आवेदन कर राशि निकाल ली. जांच जारी है और हम कई पहलुओं को खंगाल रहे हैं, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या ये छात्र पूरी तरह से फर्जी थे.”

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