सूचना का अधिकार (RTI) की जानकारी लगभग कितने पन्नों में दी जा सकती है? शायद 100, 500 या 1000. लेकिन इंदौर के पास महू के रहने वाले एक शख्स को 48 से 50 हजार पन्नों में स्वास्थ्य विभाग ने जानकारी मुहैया कराई. जानकारी लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने याचिकाकर्ता को लोडिंग गाड़ी लेकर बुलाया था. याचिकाकर्ता अपनी एसयूवी सफारी गाड़ी से जानकारी लेने पहुंचे. पूरी गाड़ी पन्नों से भर गई.
आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि कोरोनाकाल में इंदौर जिला प्रशासन की ओर से की गई खरीदारी जानकारी सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई. इसमें वेंटीलेटर्स, मास्क, दवाइयां और स्वास्थ्य संबंधित अन्य चीजों की जानकारी चाही गई थी.
धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि सूचना के अधिकार का नियम है कि संबंधित विभाग को 30 दिन के भीतर जानकारी उपलब्ध करानी होती है. यदि समय सीमा में कोई विभाग जानकारी नहीं देता है तो इसके ऊपर अधिकारी के पास प्रथम अपील लगानी होती है. लेकिन जब 32 दिन निकल गए तो फिर प्रथम अपील लगाई गई. वहां से आरटीआई की जानकारी देने के आदेश हुए और स्वास्थ्य विभाग से लगभग 15 से 20 दिन के बाद जानकारी उपलब्ध कराई गई. मतलब सूचना के अधिकार का आवेदन लगाने के 50 दिन बाद जानकारी दी गई.
स्वास्थ्य विभाग ने 50 हजार के आसपास पेज देकर जानकारी उपलब्ध कराई है. अब उसमें देख रहे हैं कि इसमें क्या-क्या भ्रष्टाचार हुआ है और क्या-क्या सामग्री खरीदारी की गई है? क्या खरीदारी में नियमों का पालन हुआ है?
सरकार का हुआ 80 रुपए का नुकसान
RTI कार्यकर्ता नेबताया कि आम आदमी अगर जानकारी के लिए आवेदन देता तो उसे 70 से 80 हजार रुपए खर्चने पड़ते. हालांकि, इस बार 2 रुपए प्रति पेज फोटो कॉपी के हिसाब से करीब 80 हजार का नुकसान सरकार का ही हुआ है. इसके पीछे की वजह यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने प्रथम अपील लगाने के बाद यह जानकारी दी है. मतलब 30 दिन की समय सीमा समाप्त होने के बाद संबंधित विभाग को ही खुद से फोटोकॉपी करवाकर देनी होती है. अगर पहली बार में ही जानकारी देते तो आरटीआई लगाने वाले को फोटो कॉपी का खर्चा देना पड़ता.
लोडिंग गाड़ी करके लाना
खास बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग से आईटीआई लगाने वाले धर्मेंद्र शुक्ला को कॉल आया कि आप लोडिंग गाड़ी करके लाना ताकि जानकारी ले जा सको. क्योंकि जानकारी के पेज इतने ज्यादा थे तो फिर धर्मेंद्र शुक्ला अपनी सफारी गाड़ी से स्वास्थ्य विभाग के दफ्तर पहुंचे.
क्यों लगाई गई RTI?
दरअसल, आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि यह बिना टेंडर और वर्क ऑर्डर पूरी सामग्री खरीदने का मामला था. जबकि शासन का नियम है कि ₹1 लाख से ज्यादा की दवाइयां खरीदना या कोई आइटम खरीदना है, तो नियम के अनुसार टेंडर होगा, वर्कआउट होगा और उसके बाद ही सामग्री खरीदना होती है. लेकिन इस दौरान किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया. स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस सामग्री की खरीद की है. इसमें जिला कलेक्टर का भी रोल होता है. जिन्होंने अपने अधीनस्थों के मौखिक आदेश से यह सारी चीजें उपलब्ध कराईं.
50 करोड़ रुपए से अधिक की खरीदारी
आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि उस समय तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से खरीदारी की थी. अनुमान है कि करीब 50 करोड़ से ऊपर की यह पूरी खरीदारी की गई.
50% तक घोटाले का अनुमान
आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि कोरोनाकाल में खरीदी गई सामग्री में 50% का घोटाला सामने नजर आ सकता है. धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि किसने संयुक्त संचालक को बोलने के बाद सारी जानकारी उपलब्ध कराई गई है प्रथम अपील में शरद गुप्ता से बात की उसके बाद जानकारी उपलब्ध कराई गई है,,
उन्होंने बताया कि इस जानकारी को पढ़ने और भ्रष्टाचार को उजागर करने में 2 से 3 महीने लग जाएंगे. वहीं, आरटीआई कार्यकर्ता ने आगे कहा कि इतनी लंबी प्रक्रिया से पता चलता है कि स्वास्थ विभाग का जानकारी देने का इरादा नहीं था. देखें Video:-