रात के 11 बजे कार में बैठ कर वो दफ्तर से बाहर निकला ही था कि आकाशवाणी पर लता मंगेशकर की आवाज़ में गाना बजने लगा-
हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे है खो बैठे
तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ भूल जाओ...पर भूलने की जगह उसकी आंखों में श्वेता शर्मा का चेहरा घूम गया. वही श्वेता जो बहुत बोलती थी. गोल सा चेहरा, गोरा रंग. लंबे-लंबे बाल, पांच फुट पांच इंच की हाइट. धारा प्रवाह अंग्रेज़ी बोलती थी.
श्वेता के साथ मेरा रिश्ता बनना भी कम दिलचस्प नहीं था. माता-पिता के बहुत मनाने के बाद मैं उससे मिलने गया था.
ये वो वक्त था जब मैं शादी करना ही नहीं चाहता था. दिल्ली में एक टीवी चैनल में नयी-नयी नौकरी शुरू की थी. अपने शहर से मैं टूटा दिल लिये दिल्ली गया था. मन में खुद से इंतकाम लेने की भावना थी. हाथ में गोल्ड फ्लैक की सिगरेट. रात को दोस्तों के साथ शराब की महफिल. मुकेश और रफी के गानों से सारी रात गुलज़ार रहती. हम देवदास की भूमिका में ज़िंदगी का लुत्फ उठा रहे थे. किसी से शिकायत नहीं थी. शिकायत उससे भी नहीं थी जिसने दिल तोड़ा था.
बस एक रिजेक्शन था जो खाये जा रहा था. कोई ना कोई तो मिल ही जायेगा. ये भरोसा खुद पर था. लेकिन जिसके लिये उसने मुझे छोड़ा था वो बहुत पैसे वाला था. बस यही एक बात खाये जा रही थी. दिल में जज़्बा था कि कुछ कर गुज़रना है. दिखा देना है कि मैं भी कुछ कर सकता हूं.
बस यही इरादा था. ऐसे में दोस्त भी ऐसे मिले थे जिनकी ज़िंदगियों का खुद भी कोई ठिकाना नहीं था. एक से एक फक्कड़. एक महीना सेलेरी ना मिले तो खाने के लाले पड़ जायें.
जिंदगी ऐसे ही उबड़ खाबड़ रास्तों से गुज़र रही थी और माता पिता चाहते थे कि मैं शादी कर लूं. 30 साल की उम्र में शादी नहीं करेगा तो बच्चे कब करेगा. बस हर वक्त यही रट लगाये रहते थे. अब तक आये कई रिश्ते मैं टाल चुका था.
उस साल दीवाली पर मैं घर गया तो पिताजी ने फरमान सुना दिया कि आज शर्मा जी के यहां जाना है. उनकी लड़की है दिल्ली में रहती है. तुम्हारे साथ अपनी बेटी का रिश्ता जोड़ना चाहते हैं. पिता जी के सामने उन्हें ना करना मेरे बस में नहीं था. मन मारकर अपने एक दोस्त को साथ लेकर मैं उनके यहां चला गया.
श्वेता के बार में जो मां ने बताया था वो वैसी ही थी. मैं अपना गंभीर सा चेहरा लिये बैठा था. वो मेरे करीब बैठी आकर . पांच मिनट तक हम दोनों के बीच चुप्पी रही. इस चुप्पी को श्वेता ने ही तोड़ा.
आज कुछ बोलते नहीं हैं. उसने मुझे गहरी नज़र से देखते हुए कहा.
बोलता तो हूं लेकिन इतने लोगों के सामने नहीं. मैंने भी उसे गौर से देखा. मुस्कुराहट थी उसके चेहरे पर. मैंने महसूस किया कि मेरे चेहरे पर तनाव है. माथे पर मेरे सलवटे आ रही हैं. मैंने खुद को रिलेक्स किया.
इतने में श्वेता के पिता ने कहा कि बच्चों आप लोग दूसरे कमरे में चल जाओ वहां पर बैठ कर इत्मीनान से बातें कर लो.
हम दोनों दूसरे कमरे में आ गये. वहां आते ही श्वेता ने पूछ लिया, 'बताइये आप क्या करते हैं?'
'मैं जर्नलिस्ट हूं. टीवी चैनल में काम करता हूं.'
'लेकिन आप दिखायी तो देते नहीं हैं. तो काम क्या करते हैं?'
'मैं प्रोड्यूसर हूं. प्रोड्यूसर रिपोर्टर्स की कॉपी लिखता है. एंकर के लिये इंट्रो लिखता है, हैडलाइन लिखता है. आप जो भी देखते हो वो किस रूप में सामने आयेगा वो प्रोड्यूसर तय करता है.'
'आप कभी टीवी पर आते हो?'
'अभी तो नहीं लेकिन शायद किसी दिन. हो सकता है कि मैं एंकर बन जाऊं.'
'तब आप भी मशहूर हो जाओगे. आशुतोष और दीपक चौरसिया की तरह?'. श्वेता ने कहा.
'क्यूं आपको पसंद हैं ये लोग'. मैंने पूछा.
'नहीं मुझे राजदीप सरदेसाई पसंद हैं. मैं हिन्दी न्यूज़ बहुत कम देखती हूं.'
'आप क्या करती हैं?' मैंने टीवी से उसका ध्यान बंटाने की गरज से सवाल कर दिया.
'मैं तो अभी पढ़ायी कर रही हूं. इंटीरियर डिज़ीनिंग का कोर्स कर रही हूं. एक साल बाकी है. फिर कोई जॉब या अपना काम.'
'एक सवाल पूंछूं आपसे?' उसने पूछा.
'बोलिये.'
'आपको शादी के बाद मेरे काम करने से कोई दिक्कत तो नहीं होगी.'
'ये बहुत ही स्टूपिड सवाल है. इसका जवाब ये है कि ये सवाल आपको करना ही नहीं चाहिये. क्यूंकि काम करना आपका अधिकार है. अपने पैरों पर खड़े होना आपका अधिकार है.'
'ओह, थैंक यू. थैंक यू. आपने तो मेरा दिल जीत लिया. मेरी तरफ से शादी पक्की.
उसकी इस बात पर मेरी हंसी छूट गयी.
'डू यू ड्रिंक? उसने हाथ से गिलास का इशारा करते हुए फिर सवाल किया. 'सॉरी , बस ये आखिरी सवाल है.' उसने अपने कानों को हाथ लगाया.
मैंने हां में सिर हिलाया और जेब से सिगरेट का पैकेट निकला कर उसे दिखाया. 'और सिगरेट भी पीता हूं. दो पैकेट तो रोज़ के हो ही जाते हैं.'
'वैसे आपको मेरे सिगरेट और शराब पीने पर एतराज़ तो नहीं है.' मैंने शरारती अंदाज़ में उसकी तरफ झुकते हुए कहा.
'हम्म, विल थिंक अबाउट इट. लेकिन आई कैन एडजस्ट. बीच का रास्ता निकाल जा सकता है.'
'नहीं, फैसला अभी करना है. बीच का रास्ता नहीं होता. पाश ने कहा है. इसलिये अभी बताओ.' मुझे उसके साथ बाते करने में मज़ा रहा था.
'हू इज़ दिस पाश?' उसने कहा.
'ये एक बहुत बड़े पोएट हैं.'
'अच्छा तो पोएट ने कहा है. तो फिर दो की जगह एक पैकेट सिगरेट पर फिलहाल अग्री कर जाते हैं. विल टेक ए कॉल आफ्टर सम टाइम. राईट.'
'राईट. ..और कोई सवाल है.' मैंने पूछा.
'डू यू हैव ए गर्ल फ्रेंड?'
'व्हाट. ये कैसा सवाल है.'
'इट्स ए जेनुइन क्वेश्चन अंड ए वेरी सिंपल वन.'
'पर ये सवाल क्यूं. अगर मेरी गर्ल फ्रैंड होती तो मैं यहां आता ही क्यूं.' मैंने काउंटर किया.
'अंडर प्रेशर. पीपल डू थिंगस अंडर प्रेशर विच दे डोंट मीन टू डू अदर वाईज़.'
'मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं है. मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है. होती तो आपसे मिलने नहीं आता.'
'और आप... आपका कोई बॉयफ्रेंड?' मैंने भी पूछ ही लिया.
'अनफॉरचूनेटली नन, ज़ीरो, ज़िल्च. अब तक कोई मिला ही नहीं.'
इससे पहले कोई बात आगे बढ़ती. श्वेता की मां हमें बुलाने कमरे में आ गयी. हम दोनों उनके पीछे वापस ड्राईंग रूम में वापस आ गये. कुछ देर की बातचीत के बाद हम अपने घर भी लौट आये.
अगले दिन मां ने मुझसे पूछा कि मुझे श्वेता कैसी लगी. क्या इरादा है मेरा.
मैंने शादी के लिये हामी भर दी. फिर मैं दिल्ली चला आया.
कुछ दिनों के बाद मेरे फोन पर घंटी बजी.
'हैलो मिस्टर पाश, हाउ आर यू...; फोन उठाते ही एक लड़की ने मुझसे पूछा.
'कौन बोल रहा है... मैंने थोड़ा तल्खी से पूछा.
'उप्प्स, व्हाई आर यू सो रूड? श्वेता हियर.'
'ओह, सॉरी-सॉरी', अब सकपकाने की बारी मेरी थी.
'आर यू फ्री. कैन वी टॉक,' उसने पूछा.
'अभी थोड़ा बिज़ी हूं. ऐसा करता हूं कि एक घंटे बाद फोन करता हूं. अभी मेरा शो जाने वाला है उसके बाद.'
'डन विल वेट.. बाय.'
ये बाय सुनकर मेरे कानों में मिश्री सी घुल गयी. इस बाय में एक मुहब्बत थी. ये बाय इससे पहले बोले गये सभी बाय से अलग था. इस बाय में एक सरगम थी. मेरे कानों में वो काफी देर तक बजती रही.
एक घंटे के बाद जब मेरा शो खत्म हो गया तब मैंने उसे कॉल किया.
'हैलो मि पाश, एक घंटे 15 मिनट बाद आपकी कॉल आयी है.'
'ये मि पाश क्या लगा रखा है. मेरा नाम अमन है. अमन त्रिपाठी.'
'तो मैं आपको क्या कह कर पुकारूं. अमन, मन या फिर ऐजी, सुनते हो जी.'
'फिलहाल के लिये अमन ही ठीक है.' मैंने जवाब दिया. 'मैं मन के नाम से पुकारा जाना नहीं चाहता था. इस नाम से मेरी सारी भावनाएं मेरी एक्स गर्ल फ्रेंड से जुड़ी हुई थीं.
'आई लाइक मन. मन हैज़ से फीलिंग ऑफ लव. यू नो. सुनने में और बोलने में अच्छा लगता है.'
'ओके मन, कल मिलें'. उसने पूछा.
'मिल सकते हैं. लेकिन सुबह मिलना होगा. मेरी शिफ्ट है 3 बजे से.' उसका मन कह कर पुकारना मुझे कतई पसंद नहीं आया.
'ओह, पर सुबह तो मेरी क्लास है. नेवर माइंड लेट्स मीट ऑन सैटरडे. अब ये मत कहना कि तुम बिज़ी हो.'
'ठीक है हम सैटर डे को मिलते हैं. मेरी छुट्टी है.' उसके बाद वो एक घंटे तक मुझसे बात करती रही. अपनी कहानी सुनाती रही. मैं सुनता रहा.
ना जाने क्यूं श्वेता का साथ मुझे अच्छा लग रहा था. पहले प्यार की चोट भी अब उतनी तकलीफ नहीं दे रही थी. शायद नये ज़ख्म की तैयारी हो रही थी.
हम रोज़ाना बात करने लगे. हर वक्त श्वेता का फोन आता रहता. फोन नहीं आता तो मैसेज आते रहते. मैं अब बिज़ी हो गया था. हर वक्त मेरे साथ श्वेता रहने लगी थी. ये नयी ज़िंदगी थी मेरी.
शनिवार को हम दिल्ली हाट में मिले. जींस और टी शर्ट पहन कर आयी थी वो. अक्टूबर का महीना था. मौसम सुहाना हो गया था. हम दिल्ली हाट में घूमते रहे. फिर एक जगह देख कर बैठ गये. शाम का वक्त था ज़्यादा भीड़ नहीं थीं.
वो बोलती रही मैं सुनता रहा. उसकी बातों पर मुस्कुराता रहा. श्वेता की दुनिया अलग थी पत्रकारिता का पी भी वो नहीं जानती थी. अंग्रेज़ी के तमाम लेखकों को जानती थी. उनकी किताबों पर वो बात कर सकती थी. नये गानों की दीवानी थी.
जब वी मेट उसकी फेवरेट पिक्चर थी औऱ ये इश्क हाय जन्नत दिखाये... उसका फेवरेट गाना.
एक दूसरे का हाथ पकड़े हम घूमते रहे. शाम के 7 बजे उसने कहा कि अब जाना होगा. हॉस्टल में रात 8 बजे के बाद एंट्री नहीं मिलती है.
उस दिन मैं अपनी मोटर साईकिल लेकर नहीं गया था. हमने दिल्ली हाट के बाहर से एक ऑटो लिया औऱ चल पड़े उसके हॉस्टल. वो नॉन स्टॉप बोलती रही. हॉस्टल के गेट पर पंहुचले से पहले उसने मेरे चेहरे को पकड़ा और मेरे होठों पर अपने होठ रख दिये.
झटके से ऑटो रुका तो वो इत्मीनान से उतर गयी. और मुझे बाय कहकर अंदर चली गयी. कुछ ही देर में उसका फोन आ गया और मैं पूरे रास्ते उससे बात करता रहा.
वो जब क्लास में होती थी तब ही मुझसे बात नहीं करती थी. या फिर जब मैं शाम को अपने काम में बिजी होता था तब हमारी बातचीत नहीं होती. अब सारा वक्त श्वेता मेरे साथ थी. और मैं उसके साथ.
अगले हफ्ते एक बार फिर हम साथ थे. दिन भर हम घूमते रहे. पहले हमने पिक्चर देखी. कनाट प्लेस में गये. हमारा इश्क परवान चढ़ रहा था. मुझे उसका बोलना अच्छा लगने लगा था. वो मेरा हाथ पकड़े रहती. मैं भी कभी ये कोशिश ना करता कि उसका हाथ छोड़ूं. मेरा मन करने लगा था कि अब हमारी शादी हो ही जानी चाहिये. अब हम एक-दूसरे के बगैर नहीं रह सकते थे. ये तय हो गया था.
उस दिन लौटते वक्त मैंने उससे कहा कि चलो शादी कर लेते हैं.
सीरियसली... ये सुनकर श्वेता की आंखे चमक उठीं. उसने एक बार फिर मु्झे किस कर लिया. आज वो ये कई बार कर चुकी थी. जैसे ही वो खुश होती तुरंत मुझे किस दे देती. वो जगह और लोग कुछ भी नहीं देखती.
मैंने उसे कई बार समझाया लेकिन वो कहां सुनने वाली. उसने कहा, 'यू डोंट वरी. आई कैन हैंडल.'
हम दोनों ने तय कर लिया कि मां बाप को बोलकर हम जितनी जल्दी होगा शादी की तारीख निकलवा लेंगे. अब हमे दूर रहना गवारा नहीं है.
उस रात मैं अगर लौटा तो मुझे नींद नही आयी. शादी का ख्याल रात भर मेरे दिमाग में चलता रहा. अपने साथ रहने वाले दोस्तों को अपने फैसले के बारे में बताया. वो भी हैरान थे कि मैं इतनी जल्दी शादी करने के लिये तैयार हो गया. लेकिन उस रात मुझे नींद नहीं आयी. सारी रात मैं शादी के बारे में सोचता रहा.
अगले दिन सुबह मैने अपनी मां को फोन करके शादी से इंकार कर दिया. मैंने कह दिया कि मैं ये शादी नहीं कर सकता. मां भौचक्क थीं कि मैं ऐसा क्यूं कह रहा हूं. पिताजी ने भी मुझसे जानने की कोशिश की क्या बात है. मैंने किसी को कोई जवाब नहीं दिया.
कुछ ही देर में श्वेता का फोन भी बजने लगा. मुझे उसे तो जवाब देना ही था. लेकिन मेरे पास कोई जवाब दरअसल था ही नहीं कि आखिर मैं क्यूं शादी नहीं करना चाहता. कल रात तक मैं शादी के लिये तैयार था. आखिर रात भर में क्या हो गया कि मैं पीछे हट गया.
श्वेता का फोन मैंने उठाया तो उसने एक ही सवाल पूछा, 'इज़ दिज़ ए जोक. ऑर व्हाट...?'
'आई एस सॉरी श्वेता. मैं ये शादी नहीं कर सकता.' मैंने धीरे से कहा.
'बट व्हाई, व्हाट हैपेंड. रात को तो तुम शादी करना चाहते थे.'
'बस मैं शादी कर नहीं सकता. मुझे माफ कर देना.' कह कर मैंने फोन काट दिया. उसके और सवालों का जवाब देने की मेरी हिम्मत नहीं थी.
महीने तक मेरे पास उसके फोन पर फोन, मैसेजेज आते रहे. लेकिन मैंने किसी का भी जवाब नहीं दिया. दरअसल मेरे पास जवाब था भी नहीं. मुझे नहीं पता कि मैंने उससे शादी क्यूं नहीं की. वो हर हाल में एक बेहतरीन लड़की थी. मेरे जीवनसाथी बनने के सारे गुण उसमें थे.
एक महीने के बाद मेरे पते पर एक ऑडियो सीडी आयी. इसमें सिर्फ एक ही गाना था. ये गाना फिल्म दिल एक मंदिर का था. आवाज़ लता मंगेशकर की.
हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे हैं खो बैठे
तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ भूल जाओ
मुझे दुख उस दिन भी हुआ था. आज भी है. लेकिन मैं ये आज भी नहीं जानता कि मैंने शादी से इंकार क्यूं किया. आखिर किस बात से घबरा गया मैं. सिवाय इस बात के कि शायद मैं मेंटली और फाइनेंशियली स्टेबिल नहीं था. आज मैं देश के सबसे बड़े चैनल का एंकर कम मैनेजिंग एडिटर हूं. मेरे पास पैसा है. गाड़ी है. सब कुछ है. पत्नी है, बच्चे हैं. ये जानता हूं कि वो मुझे देख चुकी होगी. बस इतना नहीं जानता कि उसने मुझे कभी माफ किया या नहीं. ये बात शायद मैं कभी जान भी नहीं पाउंगा.
मैं जानता हूं कि मैं श्वेता का गुनाहगार हूं. ये अहसास हर वक्त मुझे खाये रहता है. 'आई एम सॉरी श्वेता.'