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साहित्य आजतक: 'उसुलों पर जहां आंच आए, टकराना जरूरी है'

साहित्य आजतक: 'उसुलों पर जहां आंच आए, टकराना जरूरी है'

प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी ने साहित्य आजतक के 'एक नायाब शायर' सत्र में एक से एक शेर पढ़े. उनकी लाइनें... मेरे गम को जो अपना बताते रहे, वक्त पड़ने पर हाथों से जाते रहे. इस पर खूब तालियां बजीं. इस सत्र का शम्सताहिर खान ने संचालन किया. इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई नज्में सुनाईं. उन्होंने कहा, उसुलों पर जहां आंच आए टकराना जरूरी है, जो जिंदा हो तो फिर, जिंदा नजर आना जरूरी है.

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