scorecardresearch
 
Advertisement

ऐसा न हो अंजाम पे पछताओ किसी दिन, बेहतर है कि तुम खुद ही संभल जाओ किसी दिन

ऐसा न हो अंजाम पे पछताओ किसी दिन, बेहतर है कि तुम खुद ही संभल जाओ किसी दिन

ऐसा न हो अंजाम पे पछताओ किसी दिन, बेहतर है कि तुम खुद ही संभल जाओ किसी दिन, शीशे से अदावत का यही हाल रहा तो पत्थर से भी हो जाएगा पथराव किसी दिन...साहित्य आजतक के मंच पर पाकिस्तान को चेतावनी भरी सीख देती मंसूर उस्मानी की शायरी

Aisa na ho ki anjaam me pachhatao kisi din, behatara hai ki tum khud hee sambhal jao kisee din, a poem of Urdu poet Mansoor Usmani

Advertisement
Advertisement