scorecardresearch
 

'सपने में मिलती है...', सुरेश वाडकर के सुरों से सजी साहित्य आजतक की महफिल, IAS अग्निहोत्री की कविताओं ने मन मोहा

साहित्य आजतक 2025 के दूसरे दिन दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में संगीत और साहित्य का अद्भुत संगम देखने को मिला. प्लेबैक सिंगर सुरेश वाडकर ने अपनी मधुर आवाज से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और IAS अधिकारी और कवि आशुतोष अग्निहोत्री ने अपनी कविताओं से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

Advertisement
X
साहित्य आजतक में सुरेश वाडकर
साहित्य आजतक में सुरेश वाडकर

Sahitya Aajtak 2025: साहित्य आजतक के दूसरे दिन दिल्ली का मेजर ध्यानचंद स्टेडियम सुरों और साहित्य से जगमगा उठा. 'आओ बुन लाएं अपनी सरगम' सत्र में जाने-माने प्लेबैक सिंगर सुरेश वाडकर पहुंचे जहां उन्होंने अपनी आवाज से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया. मशहूर सिंगर के साथ IAS अधिकारी, कवि और फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन आशुतोष अग्निहोत्री भी पहुंचे. सिंगर और म्यूजिक कंपोजर श्रेयस पुराणिक ने भी अपनी मौजूदगी से माहौल को संगीतनुमा बना दिया.

सत्र की शुरुआत सुरेश वाडकर ने अपने मशहूर गीत, 'सपने में मिलती है, वो कुड़ी मेरे सपने में मिलती है...' से की तो हर-तरफ तालियां बजने लगीं.

आशुतोष अग्निहोत्री ने बताया कि वो हिंदी और अंग्रेजी में कविताएं लिखते थे और लोगों को शुभ संदेश के रूप में भेजते थे. एक बार एक कविता उन्होंने अपने एक दोस्त को भेजी. कविता थी- अवध में लौटे हैं श्रीराम मनाओ दीवाली. यह कविता सोनू निगम को अच्छी लग गई जिस पर गाना बना दिया गया. इस तरह से अब तक वो सात भजन लिख चुके हैं जिनमें से एक शिव भजन को सुरेश वाडकर ने भी आवाज दी है.

उन्होंने अपने कविता लेखन पर बात करते हुए कहा, 'कई लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं प्रशासनिक सेवा के बीच कैसे कविता लिख लेता हूं. मेरा एक ही उत्तर होता है कि बहुत सारी शक्तियां हैं जो आपके अंदर के मनुष्य को खत्म करने में लगी हुई है. लेकिन मेरी इच्छा है कि मैं मनुष्य बना रहूं इसलिए साहित्य और कविता से जुड़ा रहता हूं. साहित्य मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने का मजबूत साधन है. कविता ईश्वर की अनुभूति है.'

Advertisement

सुरेश वाडकर ने बताया कि उन्होंने सबसे पहला राग भीम पलासी सीखा. उन्होंने राग पलासी पर आधारित गाना 'नैनो में बदरा छाए' गाकर दर्शकों को सम्मोहित कर दिया.

कैसे शुरू हुई सुरेश वाडकर के संगीत की जर्नी?

सेशन के दौरान सुरेश वाडकर ने अपनी संगीत जर्नी की शुरुआत पर बात करते हुए कहा, 'मेरे पिता को गाने का शौक था, वो जिनसे सीखते थे, उन्हें जब सिखाया जाता तो मैं बैठकर सुनता था. एक दिन मेरे पिता के गुरुजी नहा रहे थे और उनके कान में मेरी आवाज पड़ी. मैं भीम पलासी गा रहा था. उन्हें मुझे बुलाकर पूछा कि कहां से सीखा तो मैंने उन्हें बताया कि सुनकर. चार साल की उम्र से मैंने सीखना शुरू कर दिया और आज 72 साल में भी सीखता हूं.'

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement