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Sahitya Aajtak 2024: हिंदी साहित्य के सामने क्या है संकट? लेखकों ने बताया किताबें पढ़ने वालों की संख्या में क्यों आई कमी

साहित्य आजतक 2024(Sahitya Aajtak 2024) के दूसरे दिन हिंदी साहित्य के सामने क्या संकट है इसपर विस्तार से चर्चा हुई. इस सेशन में साहित्यकार ममता कालिया, चंद्रकला त्रिपाठी और शिव मूर्ति ने हिस्सा लिया.

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Mamta Kalia, Chandrakala Tripathi, Shivmurti
Mamta Kalia, Chandrakala Tripathi, Shivmurti

साहित्य आजतक का मंच एक बार फिर सज गया है. 22 नवंबर से 24 नवंबर तक यानी पूरे तीन दिनों के लिए दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में साहित्य का मेला लग हुआ है. साहित्य आजतक 2024(Sahitya Aajtak 2024) के दूसरे दिन हिंदी साहित्य के सामने क्या संकट है इसपर विस्तार से चर्चा हुई. इस सेशन में साहित्यकार ममता कालिया, चंद्रकला त्रिपाठी और शिव मूर्ति ने हिस्सा लिया.

क्या ज्यादा विकल्पों के चलते साहित्य कम पढ़ा जा रहा है.

साहित्य पढ़ना कम हो गया है इसपर लेखिका ममता कालिया कहती हैं कि समय वक्र हो गया है. समय टेढ़ा मेढ़ा चलता है. आज आपके पास ज्यादा विकल्प है. किताबों के साथ चुनौती ये है कि उसे पढ़ना पड़ता है. जब तक 10 से 15 पन्ने ना पढ़ लेंगे तब तक जाकर आपको समझ आना शुरू होगा किताब क्या कहना चाहता है. आज लेखन 20-20 जैसा हो गया. पतली-पली किताबें आने लगी है, इसलिए साहित्य की गुणवत्ता कम हुई है और पढ़ना भी कम हुआ है.

समय की कमी के चलते साहित्य पढ़ने वालों में आई गिरावट

चंद्रकला त्रिपाठी कहती हैं कि आजकल के लेखक कम समय में लिखना चाह रहे हैं. ऐसे में उस तरह की रचनाएं नहीं निकल रही हैं. आजकल का साहित्य ऐसा होने लगा है कि एक दिन में हीं आप इसे पढ़ कर खत्म कर देंगे फिर आपको वह याद भी नहीं रहेगी. आपको कोई लाभ भी नहीं होगा.

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जिसकी जितनी बड़ी स्मृति उसका साहित्य उतना बेहतर होगा

चंद्रकला त्रिपाठी आगे कहती हैं  कि बेहतर साहित्य लिखना वैसे भी सबके बस की बात नहीं है. जिसके पास जितनी बड़ी स्मृति होगी  वह उतना ही क्लासिक लिखेगा .आप किसी बात की वैधता कैसे जांचेंगे अगर आपके पास उसकी पूर्व बातों की जानकारी ही नहीं है. देश का इतिहास बहुत बड़ा है.  अगर आपकी याद्दाश्त ही उस तरह की नहीं तो आप जो लिखेंगे वह प्याज की तरह उकट जाएगा.  जिसकी स्मृति ज्यादा होगी उसी की रचना बचेगी. वही लेखक बचा रहेगा.

क्या आगे भी साहित्य पढ़ने वालों में आएगी गिरावट

लेखक शिवमूर्ति कहते हैं ऐसा नहीं है कि साहित्य आगे नहीं पढ़ा जाएगा. यह सही है कि सोशल मीडिया के चलते साहित्य कम पढ़ा जा रहा है.नहीं, जब विदेशों में जाता हूं तो देखता हूं लोग मोटी-मोटी किताबें लेकर घंटों बैठे रहते हैं. मेरी पोती भी खूब किताबें पढ़ती है. ऐसे में जब भी मेरा विश्वास डगमगाता है यह देखकर कायम हो जाता है. आज आप नहीं पढ़ रहे है तो लंबी उम्र है क्या पता कल से पढ़ना शुरू कर दें. बस जरूरी है स्मृति को बचाए रखना है. स्मृति चली गई तो सृजन नहीं होगा. अगर सृजन कर दिया तो ये इंटरनेट संभाल लेगा. लेखक शिवमूर्ति ने इसके अलावा साहित्य में अफवाह को शामिल ना करने और हिंदी भाषा से विदेशी शब्दों को हटाने वालों की बात कहने वालों को भी आड़े हाथों लिया.

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