साहित्य आजतक 2019: 'आज के दौर में बाजारवाद हावी, बाजार ही सब कुछ तय कर रहा'
साहित्य आजतक 2019 के दूसरे दिन कितना जरूरी है बाजार विषय पर लेखक भालचंद्र जोशी ने कहा कि बाजार ने आज के दौर में ऐसी आधुनिकता का बोध विकसित किया है कि पहले की सभी चीजें पुरानी सी प्रतित होने लगी है. ऐसा नहीं है कि पहले के बाजार में आधुनिकता का पुट नहीं था, लेकिन आज बाजारवाद हावी हो गया है.
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'कितना जरूरी है बाजार' विषय पर आयोजित परिचर्चा में हिस्सा लेते 3 लेखक (फोटो-साहित्य आजतक)
साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ साहित्य आजतक 2019 के दूसरे दिन 'कितना जरूरी है बाजार' विषय पर आयोजित परिचर्चा पर मंच पर उपस्थित हिंदी लेखकों ने स्वीकार किया कि आज के दौर में बाजारवाद हावी हो गया है बाजार ही सब कुछ तय कर रहा है. बाजारवाद में किसी चीज का बदलाव बहुत आसान नहीं होता, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि बदलते दौर में बदलाव का दौर आएगा.
साहित्य आजतक 2019 के मंच से मशहूर लेखक भालचंद्र जोशी ने कहा कि आजकल का लेखक मंडी में खड़ा है, और वहां विचार की कोई कद्र नहीं है. मंडी में बाजारवाद हावी है और ऐसे में लेखक के सामने बाजार के हिसाब से लिखने की मजबूरी होती है.
बाजार जरूरतें तय करने लगाः भालचंद्र जोशी भालचंद्र जोशी ने आगे कहा कि बाजार ने आज के दौर में ऐसी आधुनिकता का बोध विकसित किया है कि पहले की सभी चीजें पुरानी सी प्रतित होने लगी है. ऐसा नहीं है कि पहले के बाजार में आधुनिकता का पुट नहीं था, लेकिन आज बाजारवाद हावी हो गया है और आज आदमी जब उपभोक्ता बनता जा रहा है तो बाजार उसे अपने अनुरूप ढालता जा रहा है. बाजारवाद में उसकी जरूरतों के बारे में बताया जाता है.
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हिंदी लेखक भालचंद्र जोशी
आज जो मठाधीश है और वो हर चीज पर कब्जा जमा लेना चाहता है के सवाल पर लेखिका मधु कांकरिया ने कहा कि बाजार किस हद तक मानवता का कत्ल करता है. इनको कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है. स्विट्जरलैंड में एन्थीसिया को लेकर सरकारी मान्यता मिली हुई है और कोर्ट से आदेश लेकर कोई भी इच्छा मृत्यु मांग सकता था. लेकिन वहां भी एन्थीसिया के लिए कई कंपनियां लगी हुई हैं और कंपनियों के अपने-अपने कैटलॉग है और वहां इससे जुड़े कई पैकेज भी चलते हैं और इसके आधार पर मौत दी जाती है. जो पैकेज आप चुनते हैं उसके आधार पर आपको मौत दी जाती है. इसी तरह अमेरिका में 9/11 हमले के बाद बंदूकों की बिक्री बढ़ गई, वहां की माताओं ने बंदूक के बाजार पर अंकुश लगाने की मांग की, लेकिन उस पर रोक नहीं लगाई गई और इसके बंदिश से डर का माहौल बनाया गया. भारत में तिरुपति में मंदिर की बात करें तो भगवान के दर्शन के लिए कई गुट सक्रिय हैं जो आपसे कहते हैं कि पैसे दो और भगवान के दर्शन आराम से करो.
अब बदलाव का पता नहीं चलताः उर्मिला बाजारवाद के दौर में लेखक के रूप में करियर शुरू करने के मामले पर उर्मिला शिरीष ने कहा कि आज के दौर में यह कहना मुश्किल है कि करियर किस मोड़ पर जाएगा. हिंदी का लेखक जब लिखता है उसे इस बात की चिंता होती है कि वह इससे अपना जीवन चला पाएगा.
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हिंदी लेखिका उर्मिला
हिंदी की तुलना में बांगला, मराठी और तमिल भाषी लेखकों की स्थिति बेहतर होने के सवाल पर लेखक भालचंद्र जोशी ने कहा कि बांगला, मराठी और तमिल जैसी भाषाओं में विभाजन नहीं है, लेकिन हिंदी में ऐसा नहीं है. यहां पर कई वर्ग हैं. मीडिया में लेखन को भी लेखक कहा गया है. जबकि बाकि जगहों पर ऐसा नहीं है.
उन्होंने आगे कहा कि खास बात यह है कि बाजार धीरे-धीरे चीजों को इस तरह से बदलता है कि हमें पता नहीं चलता है. कब हम बाजार के हिसाब से चलने लगे इसका अंदाज तक नहीं लगा पाते.
बाजार ने हमारे आदर्श बदल दिएः मधु हमारा लेखक समाज के बीच नहीं जाता, हत्या हो जाती है, दलित हिंसा होती है, मॉब लिंचिंग हो जाती है, लेकिन लेखक वहां नहीं जाता. हिंदी का लेखक लोगों के बीच पहचान नहीं बना पाने और गंभीर मुद्दों पर लेखन से दूर रहने के सवाल पर लेखिका मधु कांकरिया ने कहा कि ऐसा नहीं है कि लेखक वहां नहीं जाता. इन गंभीर विषयों पर हिंदी के लेखकों ने लेखनी चलाई है. किसानों, दलितों, महिलाओं आदि विषयों पर हिंदी में काफी रचनाएं रची गई, लेकिन बाजार हमारी सोच को बदल देता है. जब कोका कोला जब कहता है कि ठंडा मतलब कोका कोला, लेकिन हम भूल जाते हैं कि घड़े से भी ठंडा पानी मिलता है.
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हिंदी लेखिका मधु कांकरिया
मधु ने आगे कहा कि आज के दौर में बाजार हमारे आदर्श को बदल देता है. दूग्ध क्रांति के जरिए हजारों लोगों को रोजगार देने वाले वर्गीज कुरियन, पर्यावरण बचाने की मुहिम छेड़ने वाले सुंदर लाल बहुगुणा जैसे लोग अब आदर्श नहीं रहे. आज के दौर में बाजार हमें हमारा आदर्श बताता है. बाजार ने जिसे बड़ा बतलाया उसे बच्चों ने बड़ा बताया, यही बड़ी चुनौती है.
ज्यादातर लेखक सुविधाजनक हो गएः उर्मिला आज के दौर में कई संवेदनशील विषयों पर युवाओं और लोगों को नहीं बोल पाने की कसक पर उर्मिला शिरीष ने कहा कि लेखक आम लोगों के बीच क्यों नहीं जा रहा यह एक गंभीर विषय है. हमारे ज्यादातर लेखक सुविधाजनक हो गया है. आज के लेखक मठाधीशों को खुश करने में लगे हैं. उनका अपना हित सधा हुआ है. छात्रों के बीच सोया हुआ छात्र दिखाई दे रहा है, आज छात्र जगा हुआ नहीं दिखता. लेखकों का कर्तव्य बनता है कि समाज के हर तबके को जाग्रत किया जाए.
बाजारवाद के हावी होने की स्थिति पर लेखक भालचंद्र जोशी ने कहा कि बाजार जब आता है तो वो पूरी तैयारी के साथ आता है और जब वह हजारों करोड़ रुपये का निवेश करता है तो पूरी योजना के साथ करता है. बाजार हर चीज को अपने हिसाब से तय करता है. बंगाल में 200 रुपये में एक लेखक की 25 किताबों का सेट मिल जातै है जबकि हिंदी भाषा के लेखकों के साथ ऐसा नहीं है. बाजार ही सब कुछ तय करता है. काले लोगों से भरे देश में गोरे होने की क्रीम बेची जाती है. इसलिए बाजारवाद में किसी चीज का बदलाव बहुत आसान नहीं है.
साहित्य का तोहफा आपके लिएः कली पुरी इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने 'साहित्य आजतक 2019' के पहले दिन उद्घाटन संबोधन में सभी साहित्यकारों, संगीतज्ञों, कलाकारों का स्वागत करते हुए कहा कि आप सबका साहित्य आजतक का चौथा संस्करण आ गया है. लेकिन ऐसा लगता है अभी इस कार्यक्रम को शुरू हुए एक साल ही हुआ है. इस साल चुनाव हो रहे थे और पता नहीं चला कि साल कब बीत गया. अच्छी बात है कि हमारी और आपकी ये साहित्य की विशेष तारीख जल्दी आ गई.
वाइस चेयरपर्सन कली पुरी ने आगे कहा कि चुनावी साल एक चैनल के लिए बहुत जरूरी होता है. जिसे कहते हैं मेक या ब्रेक ईयर. हमारा ओलंपिक्स. आपके सहयोग और हौसले के साथ हमारी पूरी टीम गोल्ड मेडल ही गोल्ड मेडल लेकर आई है. एग्जिट पोल हो या प्रधानमंत्री का इंटरव्यू या ग्राउंड रिपोर्ट, कुछ भी कसर नहीं छोड़ी. पूरी टीम ने जान लगाकर काम किया. और आपने हमारे काम को जम कर पसंद किया.
तीन दिन चलेगा साहित्य आजतक साहित्य का सबसे बड़ा महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' का आगाज कल शुक्रवार को हो गया. 3 दिवसीय आयोजन 1 नवंबर से 3 नवंबर तक राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में चलेगा.
'साहित्य आजतक 2019' के बड़े स्वरूप और भव्यता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल आमंत्रित अतिथियों की संख्या 300 के पार है जिनमें कला, साहित्य, संगीत, संस्कृति और किताबों से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शख्सियतें जुट रही हैं.