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'कुछ धागों से सांस बंधी और कुछ धागों से सजी कलाई है...', साहित्य के मंच पर दिखा कवि आशुतोष अग्निहोत्री का भाव जगत

साहित्य आजतक 2023 के मंच पर 'कुर्सी, कलम और कविता' सेशन में आईएएस, कवि आशुतोष अग्निहोत्री और आईआरएस, कवि मुकुल कुमार ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने साहित्य की यात्रा को लेकर अपने अनुभव शेयर किए.

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Sahitya Aaj Tak 2023 Kursi Kalam Aur Kavita (Photo by- Amarjeet Singh)
Sahitya Aaj Tak 2023 Kursi Kalam Aur Kavita (Photo by- Amarjeet Singh)

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में आयोजित शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के मंच पर 'कुर्सी, कलम और कविता' सेशन में आईएएस, कवि आशुतोष अग्निहोत्री और आईआरएस, कवि मुकुल कुमार ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने साहित्य की यात्रा को लेकर अपने अनुभव शेयर किए.

कवि आशुतोष अग्निहोत्री ने बताया कि कविताओं में बचपन से ही रुचि थी. सातवीं कक्षा में प्रेमचंद की मानसरोवर, जो 9 खंडों में थी उससे साहित्य के प्रति रुचि जगी और पढ़ाई के साथ ही लिखना शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा कि आज भी मैं खुद को कवि नहीं कह सकता. मेरे जो शब्द हैं वो मेरी चेतना के साक्षी और हृदय का स्पंदन है.

वहीं, कवि मुकुल कुमार ने साहित्य और लेखन में रुझान को लेकर कहा कि बाकी प्रोफेशन लोग अपनी मर्जी से चुनते हैं लेकिन कला ईश्वर की दी हुई होती है. साहित्यकार को प्रकृति स्वयं चुनती है. कवि मुकुल कुमार ने बताया कि उनके घर का परिवेश साहित्यमय था और उनकी प्रतिभा को आगे बढ़ाने में पिता का विशेष योगदान रहा.

कवि आशुतोष अग्निहोत्री ने कहा कि कलम और कविता का संसार बहुत व्यापक है. रोज कुछ ना कुछ लिखने की आदत होने पर शब्द खुद आपके पास आने लगते हैं. व्यस्त रहने और काम के दवाब में लिखने की अधिक जरूरत होती है. कर्तव्य को प्राथमिकता देनी चाहिए लेकिन अपने लेखन और रुचि दोनों में बैलेंस बनाना जरूरी है. 

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वहीं, मुकुल कुमार ने कहा कि लिखने की आदत से साहित्य संवेदना शब्दों के प्रवाह में बह जाती है. प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते अपने अनुभवों के रंग साहित्य में रंग भर देते हैं. मुकुल कुमार ने कहा कि साहित्य भाषा पर डिपेंड नहीं होता बल्कि भाषा साहित्य पर निर्भर करती है. अग्रेंजी के अलावा हिंदी में भी लिखना चाहूंगा. आशुतोष अग्निहोत्री साहित्य का भाव जगत बहुत व्यापक होता है. उन्होंने भाई-बहनों के रिश्ते को समर्पित कविता सुनाई...

- कुछ धागों से सांस बंधी है और कुछ धागों से सजी कलाई है
जग में आकर जीवन पाकर, जिन रिश्तों का डोर बंधा
मन का ये उन्मुग्ध गगन भी, उन रिश्तों के छोर बंधा
कभी साथ में खेले भी हम, कभी रुठ कर लड़ बैठे
कभी पकड़कर कंधे को हम, दीवारों पर चढ़ बैठे

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