मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अपनी बल्लेबाजी के लिए जाने जाते हैं. तेंदुलकर टीम इंडिया के लिए कामचलाऊ गेंदबाज भी रहे और चुस्त फील्डर भी. 24 साल के इंटरनेशनल करियर में उन्होंने एक ही चीज नहीं की और वो है विकेटकीपिंग.
इंटरनेशनल क्रिकेट में तेंदुलकर कभी विकेट के पीछे दस्ताने पहने नजर नहीं आए, लेकिन बचपन में एक बार उन्होंने कीपिंग में भी हाथ आजमाया था और इसका भारी खामियाजा भी भुगता था. अपनी ऑटोबायोग्राफी 'प्लेइंग इट माइ वे' में तेंदुलकर ने इसका जिक्र किया है.
तेंदुलकर ने शिवाजी पार्क में खेले गए एक मैच का जिक्र करते हुए 'प्लेइंग इट माइ वे' में लिखा, 'बचपन में मेरी जिंदगी एडवेंचर से भरी हुई थी. एक बार मैं शिवाजी पार्क में क्रिकेट खेल रहा था. उस समय मेरी उम्र 12 वर्ष थी. मैं अपनी टीम का कप्तान था मेरी टीम के विकेटकीपर को चोट लग गई. मैंने अपने साथी खिलाड़ियों से पूछा कि क्या कोई विकेटकीपिंग कर सकता है. कोई राजी नहीं हुआ अंत में मैं खुद विकेटकीपिंग करने गया.'
सचिन के मुताबिक, 'मैं विकेटकीपिंग करने में सहज नहीं था और इसी दौरान एक बॉल मिस हुई और मेरी ओर तेजी से आई. मैं कुछ रिऐक्ट कर पाता उससे पहले ही वो मेरे चेहरे पर लगी. इस घटना में मेरी आंख बाल बाल बची थी. बॉल से मुझे गहरी चोट लगी और खून बहने लगा.'
उन्होंने आगे लिखा, 'मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं टैक्सी लेकर घर जाता और लहूलुहान चेहरे के साथ बस में बैठकर जाने में भी मुझे शर्म आ रही थी. मैंने अपने एक दोस्त से साइकिल पर लिफ्ट मांगी. क्रिकेट किट के साथ मुझे ले जाना उसके लिए आसान काम नहीं था. ईस्ट और वेस्ट बांद्रा के बीच एक फ्लाईओवर है. जहां वो मुझे लेकर साइकिल नहीं चढ़ा पाया. वहां उतरकर मैं पैदल चलने लगा और लोग मुझे आश्चर्य से देखने लगे.'
सचिन के अनुसार, 'जब मैं घर पहुंचा तो यह देखकर तसल्ली मिली कि मेरे माता-पिता घर पर नहीं थे. घर पर दादी थीं और मैंने उनसे कहा कि छोटी सी चोट है वो घर पर किसी को न बताएं. उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे पता है कि इस तरह की चोट से कैसे निपटते हैं. उन्होंने मेरी चोट पर गर्म हल्दी लगाई. दादी के इस नुस्खे से मेरी चोट जल्दी से ठीक हो गई थी.'