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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2022: श्रेष्ठ 'कहानी-संग्रह' सूची में पंकज, भालचन्द्र, सुनीता, सारा के अलावा और कौन

साल 2022 में 'साहित्य तकः बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की कड़ी में आज श्रेष्ठ 'कहानी-संग्रह' की बारी. इनमें पंकज सुबीर, भालचन्द्र जोशी, प्रज्ञा, विनीता परमार, डॉ सुनीता, सारा रॉय, विनोद कुमार शुक्ल के अलावा और किनके संग्रह. देखें, पूरी सूची- पाएं जानकारी

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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2022 के श्रेष्ठ 'कहानी-संग्रह'
साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2022 के श्रेष्ठ 'कहानी-संग्रह'

भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब इंडिया टुडे समूह के साहित्य के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने हर दिन किताबों के लिए देना शुरू किया. इसके लिए एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की गई...इस कार्यक्रम में 'एक दिन एक किताब' के तहत हर दिन किसी पुस्तक की चर्चा होती है. पूरे साल इस कार्यक्रम में पढ़ी गई पुस्तकों में से 'बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला वर्ष के अंत में होती है. इसी क्रम में आज साल 2022 के श्रेष्ठ 'कहानी-संग्रह' की बात की जा रही है.
साल 2021 की जनवरी में शुरू हुए 'बुक कैफे' को दर्शकों का भरपूर प्यार तो मिला ही, भारतीय साहित्य जगत ने भी उसे खूब सराहा. तब हमने कहा था- एक ही जगह बाजार में आई नई किताबों की जानकारी मिल जाए, तो किताबें पढ़ने के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'. 
हमारा लक्ष्य इन शब्दों में साफ दिख रहा था- "आखर, जो छपकर हो जाते हैं अमर... जो पहुंचते हैं आपके पास किताबों की शक्ल में...जिन्हें पढ़ आप हमेशा कुछ न कुछ पाते हैं, गुजरते हैं नए भाव लोक, कथा लोक, चिंतन और विचारों के प्रवाह में. पढ़ते हैं, कविता, नज़्म, ग़ज़ल, निबंध, राजनीति, इतिहास, उपन्यास या फिर ज्ञान-विज्ञान... जिनसे पाते हैं जानकारी दुनिया-जहान की और करते हैं छपे आखरों के साथ ही एक यात्रा अपने अंदर की. साहित्य तक के द्वारा 'बुक कैफे' में हम आपकी इसी रुचि में सहायता करने की एक कोशिश कर रहे हैं."
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. इसी वजह से हमने शुरू में पुस्तक चर्चा के इस साप्ताहिक क्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया. साल 2021 में ही हमने 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला भी शुरू की. उस साल हमने केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी में टॉप 10 पुस्तकें चुनी थीं.
साल 2022 में हमें लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों से हज़ारों की संख्या में पुस्तकें प्राप्त हुईं. पुस्तक प्रेमियों का दबाव अधिक था और हमारे लिए सभी पुस्तकों पर चर्चा मुश्किल थी, इसलिए 2022 की मई में हम 'बुक कैफ़े' की इस कड़ी में 'किताबें मिली' नामक कार्यक्रम जोड़ने के लिए बाध्य हो गए. इस शृंखला में हम पाठकों को प्रकाशकों से प्राप्त पुस्तकों की सूचना देते हैं.
इनके अलावा आपके प्रिय लेखकों और प्रेरक शख्सियतों से उनके जीवन-कर्म पर आधारित संवाद कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' और किसी चर्चित कृति पर उसके लेखक से चर्चा का कार्यक्रम 'शब्द-रथी' भी 'बुक कैफे' की पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने वाली कड़ी का ही एक हिस्सा है.
साल 2022 के कुछ ही दिन शेष बचे हैं, तब हम एक बार फिर 'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' की चर्चा के साथ उपस्थित हैं. इस साल कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई हैं. साहित्य तक किसी भी रूप में इन्हें कोई रैंकिंग करार नहीं दे रहा. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, या कुछ पुस्तकों की चर्चा रह गई हो. पर 'बुक कैफे' में शामिल अपनी विधा की चुनी हुई ये टॉप 10 पुस्तकें अवश्य हैं. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों के प्रति सहयोग देने के लिए आप सभी का आभार.
साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2022 के श्रेष्ठ 'कहानी-संग्रह' हैं ये
* 'हमेशा देर कर देता हूं मैं', पंकज सुबीर. अपने शिल्प और कथ्य में अनूठी ये कहानियां प्रेम से लबालब भरी हुई हैं. प्रेम भी कोई ऐसा-वैसा नहीं. मन और आत्म की गहराइयों से भरा हुआ. संवेदना और यथार्थ के धरातल पर होकर भी इतना गहरा कि उसके साथ डूबे बिना आप रह नहीं सकते. आज बीसवीं सदी के अनुभव जब इक्कीसवीं सदी के यथार्थ से टकरा रहे हैं, तो समाज के उभरते संघर्षों को संवेदना के धागों में पिरो कर सुबीर जहां एक तरफ़ रूढ़िवाद, कट्टरता, स्टीरियोटाइपिंग जैसी समाज विरोधी प्रवृत्तियों से टकराते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ अपने लेखक मन के विभिन्न परतों की भी निरंतर जांच करते हैं. इन कहानियों में हमारे समय का यथार्थ ही अंकित नहीं है; बल्कि इसका व्यापक परिवेश अपने पूरे विस्तार में उपस्थित होता है. प्रकाशक: राजपाल एंड संस
* 'तितली धूप', भालचन्द्र जोशी. इस संग्रह की कहानियों में खिले हुए रंगीन फूलों की खुशबू और उन्माद है तो खुले घाव से रिसते दर्द की कसक भी. इसमें ग्रामीण और आदिवासी जीवन की कहानियों में दुख, शोषण, गरीबी और बर्बर होते समय की यथार्थ और पारदर्शी छवियां तो शामिल हैं ही भूमंडलीकरण के उत्तर समय के आतंक और सूचना-तकनीक की धूर्त प्रविधियों को भी जीवन मूल्यों की चुनौती की तरह प्रस्तुत किया गया है. इन कहानियों में मनुष्य की गरिमा और उसकी करुणा का संसार है, जो इसके विनाश में लाभ का अवसर देखने वालों के लिए घृणा का 'प्रति संसार' भी रचती हैं. इन कहानियों में लोभ-मग्न होते जा रहे इस उत्तर आधुनिक समय में व्यक्ति की जकड़न की यंत्रणा और मुक्ति की इच्छा, दोनों मौजूद हैं. यहां मनुष्य के गरिमापूर्ण सुखद जीवन की दृढ़ लेकिन सरल मांग है, जो बताती है कि बाजार की बदनीयती को समझने के बावजूद व्यक्ति अपने ज्ञान के अकेलेपन के साथ रहने को अभिशप्त है. प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
* 'मालूशाही... मेरा छलिया बुरांश', प्रज्ञा. इस संग्रह की नौ कहानियां यथार्थ के विविध रूपों के साथ हैं. कहीं अच्छे आदमी का अपने भीतर के बुरे को पहचाना जाना है, तो कहीं प्रतिकूल समय की नब्ज़ को टटोलना है. कोई कहानी शिक्षा के दरीचे को पाठक के लिए नए सिरे से खोलती है, तो कोई माटी का राग छेड़ देती है. यथार्थ के अन्तर्विरोधी स्वरों को पकड़ना हो या फिर उसके भीतर प्रवाहित छिपी हुई धवल लहर को देख पाना, या फिर उपेक्षित हाशिए के विविध चेहरों को उनकी आवाज़ों के साथ बेहद मज़बूती से दर्ज कराना, कहानीकार अपने उद्देश्य में सफल रही हैं. संकलन के किरदार अनेक समस्याओं से जूझते हैं पर उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते. प्रतिरोध की ताक़त के साथ वे हौसले की डोर थामे रहते हैं. कई बार टूटते भी हैं पर जीवन से भागते नहीं. प्रकाशक: राजकमल का सहयोगी उपक्रम लोकभारती प्रकाशन
* 'तेरहवां महीना', सुधांशु गुप्त. इस संग्रह की सभी कहानियों के नायक अपना पक्ष छुपाने की जगह उघाड़ने में यकीन रखते हैं. जैसे वह खुद को नहीं, परिस्थितियों और मन की स्थितियों को उजागर कर रहे हों. यहां वैभव का शो बिज नहीं, अभावों के बीच जीने को विवश चरित्रों की त्रासदियां हैं, जो बड़ी सहजता से कथा ढांचे के साथ उठ खड़ी होती हैं. संग्रह की सभी कहानियों में अपने आपको पढ़ा ले जाने की शक्ति है, जो भीतरी और बाहरी दुनिया के संघर्ष के चलते अपनी भाषा से पैदा हुई हैं. इन कहानियों में आत्मीयता है, प्रेम है, साधारण और अभावग्रस्त जीवन की स्थितियां हैं. ये कहानियां बताती हैं कि हमारे इस आधुनिकता से भरे दौर में जीवन संघर्षों में डूबे सुख रहित तमाम लोग प्रेम के एहसास की प्रतीक्षा ही करते रह जाते हैं, और उनका प्रेम केवल संवेदना के मधुर तंतुओं पर सवार मन के किसी कोने में दबा ही रह जाता है. प्रकाशक: भावना प्रकाशन
* 'तलछट की बेटियां', विनीता परमार. आजादी और तरक्की के तमाम नारों और दावों के बावजूद इस संकलन के पात्रों की दशा मर्माहत करती है, सोचने पर मजबूर करती है. कथ्य और भाषा के चयन में ताजगी और अनूठेपन की दृष्टि से ये रचनाएं चौंकाती हैं. स्त्री-लेखन की सीमाओं व संकोचों को फलांगते हुए, कहानीकार ने अक्खड़पन और बेलौसपन को अपनाया है. यहां तक कि उनके लिए यौन प्रवृत्तियों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इतना आवश्यक है कि पर्दादारी यहां अनावश्यक है. इनकी एक नायिका कहती है- 'एक दिन देह की आग के पीछे छिपी बूंदों ने अपनी कैद छुड़ा ली और पानी ने आग को बहा दिया'. महिलाओं की अनछुई समस्या इन कहानियों का मुख्य स्वर है, जिनमें कामकाजी महिलाओं की बेबसी, उनकी दिनचर्या और आवश्यकताएं बहुत कुछ सोचने को बाध्य करती हैं. प्रकाशक: रुद्रादित्य प्रकाशन
* 'चौदह लेफ़्ट-चौदह राइट', चन्द्र शेखर वर्मा. रोचकता के ताने-बाने में बुनी गई इस संग्रह की हर कहानी कई मोड़ों से गुज़रते हुए एक चौंका देने वाले अंत तक पहुंचती है. यह संग्रह कथासागर के कैनवस पर समाज के कुछ अनछुए पहलुओं का दिलचस्प चित्रण है, जिनकी विविधता एवं नवीनता अभूतपूर्व हैं. इनमें कॉलेज के रोमांस की भीनी ख़ुशबू ,भाग्य के खेल के उतार-चढ़ाव, ज़िन्दगी की रेस की हार-जीत, शक्की पत्नी के पति की व्यथा, प्राइवेट नौकरी की अनिश्चितता, पत्रों का आदान-प्रदान, सेवानिवृत्त शिक्षिका की आत्मनिर्भरता, लालच और लापरवाही के बीच ऊंचे ओहदों पर बैठे ईमानदार और भ्रष्ट अफ़सरों की जद्दोजेहद, रेल दुर्घटना की विभीषिका के साथ-साथ जीवन की विषमताएं भी दिखती हैं. जीवन्त, सरल और सरस भाषा की ये कहानियां गुदगुदाती हैं, झिंझोड़ती हैं और रुलाती भी हैं. प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक्स
* 'सियोल से सरयू', डॉ सुनीता. शैली और कथ्य में अनूठी कहानियां. आधुनिकता और मान्यताओं के तमाम अतिक्रमणों के बावजूद प्रकृति यहां प्रेम में आकंठ डूबी है. ये कहानियां एक अलग तरह के पाठ की मांग करती हैं. कथाकार के शब्दों में- फूलों की सफ़ेद पंखुड़ियां उसके कपोलों पर ऐसे डोलती हैं, जैसे किसी प्रेमी के पीठ पर प्रेमिका की अंगुलियां मकरंदी नृत्य करती हैं. मुझे उसका नाम अचानक से याद नहीं आ रहा है. वैश्विक देह दृष्टि के दौर में दर्द का विषय बनाया जाना वर्तमान की जरूरत, असमानता के बीच अस्मिता की मांग मुश्किल है, बावजूद यही श्रेयस्कर है. नागरिकता का सवाल निज दुख से अधिक परदुख कातरता है. संघर्ष के पंख ख्वाहिशों के बन्दरगाह हैं, जो सिखाते हैं कि हालात जैसे भी हों उसे क़ुबूल करना कहानी की तक़दीर होती है. लकीरों में उम्मीद की रोशनी सखियों वाली अंगुली पकड़कर कथाएं आगे बढ़ाती हैं. कमजोर होती स्मृति, जर्जर होते शरीर के साथ पांडुलिपियां वृक्षों से संवाद करते-करते झगड़ पड़ेंगी और कथा का सिरा टूट जाएगा. प्रकाशक: वनिका पब्लिकेशंस
* 'महाविद्यालय', विनोद कुमार शुक्ल. कवि के रूप में स्थापित शुक्ल कथाकार के रूप में भी बहुत प्रभावी हैं. वे साधारण आय वाले मामूली लोग, उनके छोटे-छोटे जीवन संघर्ष और स्मृतियों के संसार से अपनी कहानियों का निर्माण करते हैं. इस संकलन की कुछ कहानियां मामूली लोगों के जीवन में कठिन परिश्रम से कमाए गए रुपयों के मूल्य की कहानियां हैं, जिनका ख़ास परिवेश और पात्रों का मिज़ाज कहानियों को अविस्मरणीय बनाता है, तो कुछ में प्रकृति और मनुष्य के साहचर्य की कथा मिलती है. साहित्य में तानाशाही का विरल चित्र, मनुष्य और बाज़ार का द्वन्द्व, पितृसत्तात्मक विचार के विरुद्ध स्त्री पक्ष और इन सबसे बढ़कर हमारे समय की विद्रूपता पर हमारे समय के महत्त्वपूर्ण कवि की अर्जित की हुई कथाकार दृष्टि भी देखने को मिलती है. प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
* 'नबीला और अन्य कहानियां', सारा राय. घटना नहीं बल्कि घटना की सूक्ष्म प्रक्रिया को एक जीवित इकाई की तरह सांस लेते परिवेश को सुचित्रित करती ये कहानियां किसी एक पात्र की न रहकर अस्तित्व के समूचे बोध की कहानी हो जाती हैं. ये कहानियां प्रचलित फ़ॉर्म्स का अनुकरण न करके एक भाषिक और संवेदनात्मक पथ गढ़ती हैं ताकि पाठकों को अनुभव को एक सम्पूर्ण संसार मिल सके. यह यथार्थ के एक विशाल फ़लक को एक बारीक़ नोक से चित्रांकित करने जैसा है. जैसे कोई छोटी-छोटी लेकिन स्पष्ट तस्वीरों से एक बहुत बड़े कैनवॉस को धैर्यपूर्वक भर रहा हो. बच्चों के आश्चर्य, प्रौढ़ों की उदासियां, वृद्धों का अकेलापन, दुख, मध्यवर्ग का उथलापन, अभावों से जूझते लोगों के भीतरी-बाहरी सन्नाटे, विस्थापन, घर-आंगन, उनके साथ बूढ़े होते स्त्री-पुरुष और पेड़, उपेक्षित बेलें, जीव-जन्तु और प्रकृति की अनेक छवियां इन कहानियों के समग्र अनुभव का निर्माण करती हैं. संग्रह की हर कहानी अपनी अलग और विशिष्ट गढ़न के साथ आती है.  प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
* 'बन्द कोठरी का दरवाजा', रश्मि शर्मा. ये भिन्न जीवन-स्थितियों की कहानियां हैं. प्रेम इनका मूल स्वर है. इन कहानियों में मध्य वर्ग, मजदूर, निम्न वर्ग, सामंत सभी हैं. ये अपने समय, संबंध और यथार्थ रचने की प्रक्रिया में उलझे किरदारों की कहानियां हैं, जो बन्द कोठरियों के दरवाजे खोलने की कोशिश में जुटे हैं. यहां अनावश्यक डिटेल्स और वर्णन-विस्तार नहीं है. फिर भी रचनाकार ने अपने कवि एवं संवेदनशील मन से आस-पड़ोस, विभिन्न स्थानों-स्थलों, गांवों में जड़ जमा चुकी रूढ़ियों-अन्धविश्वासों, डायन-प्रथा, पुलिस फायरिंग, संस्कृत पढ़ने वाली मुस्लिम और गे संबंध रखने वाले पति को भी उकेरा है. यहां महाराजा दशरथ का श्राद्ध करने का साहस रखने वाली बहू सीता भी हैं, तो ऐसा ससुर भी, जो सेवानिवृत्ति के अकेलेपन से अपनी बहू द्वारा खुद की हत्या का वहम पाल लेता है. बाह्म यथार्थ के साथ ही अन्त: संसार को उद्घाटित करती ये कहानियां भाव-संसार एवं वस्तु-संसार के साथ ज्ञान-संसार की झलक लिए मिलती हैं. प्रकाशक: सेतु प्रकाशन
सभी लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों को बधाई!

 

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