'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की शृंखला जारी है. वर्ष 2023 में कुल 17 श्रेणियों की टॉप 10 पुस्तकों में 'विचार-आंदोलन' श्रेणी की टॉप 10 पुस्तकों में पी साईनाथ, नंदिनी ओझा, हिलाल अहमद, एस इरफ़ान हबीब, नीलम गुप्ता, कैलाश सत्यार्थी और शिरीष खरे के अलावा और किनकी पुस्तकें शामिल हैं.
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शब्द की दुनिया समृद्ध हो और बची रहे पुस्तक-संस्कृति इसके लिए इंडिया टुडे समूह के साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने पुस्तक-चर्चा पर आधारित एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत वर्ष 2021 में की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहद स्वरूप में सर्वप्रिय है.
साहित्य तक के 'बुक कैफे' में इस समय पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं. इन कार्यक्रमों में 'एक दिन, एक किताब' के तहत हर दिन एक पुस्तक की चर्चा, 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में किसी लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृति पर बातचीत और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद होता है. इनके अतिरिक्त 'आज की कविता' के तहत कविता पाठ का विशेष कार्यक्रम भी बेहद लोकप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे 'बुक कैफे' में प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता बढ़ती ही गई. हमारे इस कार्यक्रम को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली. अपने दर्शक, श्रोताओं के अतिशय प्रेम के बीच जब पुस्तकों की आमद लगातार बढ़ने लगी, तो यह कोशिश की गई कि कोई भी पुस्तक; आम पाठकों, प्रतिबद्ध पुस्तक-प्रेमियों की नजर से छूट न जाए. आप सभी तक 'बुक कैफे' को प्राप्त पुस्तकों की जानकारी सही समय से पहुंच सके इसके लिए सप्ताह में दो दिन- हर शनिवार और रविवार को - सुबह 10 बजे 'किताबें मिलीं' कार्यक्रम भी शुरू कर दिया गया. यह कार्यक्रम 'नई किताबें' के नाम से अगले वर्ष भी जारी रहेगा.
'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 में ही पूरे वर्ष की चर्चित पुस्तकों में से उम्दा पुस्तकों के लिए 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की थी, ताकि आप सब श्रेष्ठ पुस्तकों के बारे में न केवल जानकारी पा सकें, बल्कि अपनी पसंद और आवश्यकतानुसार विधा और विषय विशेष की पुस्तकें चुन सकें. तब से हर वर्ष के आखिरी में 'बुक कैफे टॉप 10' की यह सूची जारी होती है. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला अपने आपमें अनूठी है, और इसे भारतीय साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों के बीच खूब आदर प्राप्त है.
'साहित्य तक के 'बुक कैफे' की शुरुआत के समय ही इसके संचालकों ने यह कहा था कि एक ही जगह बाजार में आई नई पुस्तकों की जानकारी मिल जाए, तो पुस्तकों के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'.
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. हमने पुस्तक चर्चा के कार्यक्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया है. वर्ष 2021 में 'साहित्य तक- बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला में केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी की टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई थीं. वर्ष 2022 में लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों के अनुरोध पर कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गईं. साहित्य तक ने इन पुस्तकों को कभी क्रमानुसार कोई रैंकिंग करार नहीं दिया, बल्कि हर चुनी पुस्तक को एक समान टॉप 10 का हिस्सा माना. यह पूरे वर्ष भर पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण का द्योतक है. फिर भी हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, संभव है कुछ श्रेणियों में कई बेहतरीन पुस्तकें बहुलता के चलते रह गई हों. संभव है कुछ पुस्तकें समयावधि के चलते चर्चा से वंचित रह गई हों. पर इतना अवश्य है कि 'बुक कैफे' में शामिल ये पुस्तकें अपनी विधा की चुनी हुई 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकें अवश्य हैं.
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और प्यार देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' वर्ष 2023 की 'विचार-आंदोलन' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं-
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* 'तीसरी फसल: भारत के निर्धनतम ज़िलों की दास्तान' - पी साईनाथ
वर्तमान प्रणाली किसानों का वैसे ही शोषण करती है, जैसे लोग जानवरों का शोषण करते हैं. पी साईनाथ की किताब 'तीसरी फसल' तब तक पढ़ी जाएगी, जब तक पाठकों के मन में सच जानने की इच्छा जीवित रहेगी. - प्रख्यात चिंतक, विचारक, कूटनीतिज्ञ और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी के ये शब्द यह बताते हैं कि यह पुस्तक सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों, एनजीओ या आम लोगों के लिए कितनी ज़रूरी किताब है. पुस्तक ग्रामीण विकास को लेकर बेहद भयावह तथ्यों को रिपोर्ताज की शक्ल में दर्ज करती है. इसमें भारत के सुदूर इलाकों की अड़सठ रिपोर्टें, दस लेख और उनतीस तस्वीरे हैं, जो ग्रामीण भारत की व्यथा को सामने लाती हैं. पुस्तक विकास के दावों के बीच भूख, बदहाल खेती, सूदखोर महाजनऔर बंधुआ मजदूरी की पोल खोलती है. हर संवेदनशील व्यक्ति के लिए एक ज़रूरी किताब है.
मूल: Everybody Loves a Good Drought अनुवाद: आनन्द स्वरूप वर्मा, प्रस्तावना: गोपालकृष्ण गांधी
प्रकाशक: पेंगुइन स्वदेश
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* 'संघर्ष नर्मदा का' - नंदिनी ओझा
यह पुस्तक नर्मदा बचाओ आंदोलन में नर्मदा घाटी के लोगों, ख़ासकर आदिवासी समुदाय के योगदान, संघर्ष और बलिदानों की कहानी को उनके ही नज़रिये से सामने लाती है. सरदार सरोवर बांध से प्रभावित आदिवासियों के जीवन, विस्थापन और पुनर्स्थापन की पीड़ाजनक प्रक्रिया के ब्योरे इस किताब में दर्ज हैं. पुस्तक प्रकृति-अनुकूल जीवनशैली और विनाशकारी विकास-प्रक्रिया के द्वन्द्व के हवाले से, मानव समाज की भावी चुनौतियों और समाधान की ओर तो संकेत करती ही है, वाचिक इतिहास की अहमियत को भी रेखांकित करती है. पुस्तक बताती है कि स्मृति को सुनना राजनीतिक कर्म भी हो सकता है और परिवर्तनकारी भी. कार्यकर्ताओं, पयार्वरण-अध्येताओं, नृतत्त्व में रुचि रखनेवालों तथा मानवाधिकारों की पैरवी करनेवाले लोगों के लिए एक ज़रूरी पाठ.
नर्मदा बचाओ आंदोलन का मौखिक इतिहास, बजरिये आदिवासी नेता केशवभाऊ वसावे और केवलसिंग वसावे. भावांतर: स्वतिजा मनोरमा, सुहास परांजपे. संपादन: जितेंद्र.
- राजकमल प्रकाशन
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* 'नदी सिंदूरी' - शिरीष खरे
नदी किनारे बसे एक गांव के बहाने भारत की आत्मा को उजागर करती पुस्तक. गंवई संस्कृति को नागर सभ्यता खा रही है. तेजी से खो रही गांव की स्मृति कथा को यह पुस्तक कहानियों के माध्यम से आगे बढ़ाती है. पुस्तक में गंवई संस्कृति, राजनीति और समुदाय की अलग-अलग कहानियां जुदा-जुदा पात्रों की मार्फत कही गई हैं. पुस्तक की भाषा और संवाद में गंवई पात्र अपनी माटी की खूशबू के साथ नयापन और पैनापन लिए हुए हैं. पुस्तक में कुल 13 कहानियां हैं. कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इसके किरदारों के साथ पाठक खुद को देखने और महसूस करने लगता है. कथानक इतना सजीव है की पाठक खुद गांव में पहुंच जाता है और अपनी पुरानी यादों के उलझे धागों के सिरे पकड़ने की कोशिश करता है. पुस्तक गंवई अच्छाई, बुराई, प्रेम, झगड़े, उम्मीद, निराशा, सादगी, यहां तक कि चालबाजी को भी दर्ज करती है.
- प्रकाशक: राजपाल एंड संस
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* 'अल्लाह नाम की सियासत' - हिलाल अहमद
भारत में मुसलमानों और इस्लाम को लेकर बहुत सारी गलतफ़हमियां हैं, और सोशल मीडिया के दौर में अज्ञान का बाज़ार गर्म है. यह किताब इस चुनौती से पार पाने की कोशिश करने के साथ ही आज़ादी के बाद भारत में इस्लाम और मुसलमानों के संदर्भ में उठने वाले सारे ज्वलन्त प्रश्नों पर गहराई से विचार करती है. चार खंडों में विभाजित पुस्तक का पहला खंड है- 'इस्लाम या भारतीय इस्लाम? वाद-विवाद और मुद्दे'- इसके उपभाग हैं 'इस्लाम क्या है? धर्म या राजनीति?', 'पैगंबर मुहम्मद कौन थे? इस्लाम की स्थापना और विस्तार', 'पैगंबर मुहम्मद और राजनीति: इस्लामिक राज्य प्रणाली का सिद्धांत', 'मस्जिद क्या है', 'आखिर भारतीय इस्लाम क्या है?' और 'दलित-पसमांदा मुस्लिम कौन है?' दूसरा खंड सैय्यद अहमद खान, मुहम्मद अली जिन्ना, मौलाना अबुल कलाम आजाद, अबू-अला मौदुदी और मुहम्मद इकबाल जैसे प्रमुख मुसलमानों की भूमिका, परिचय और चर्चा का है. तीसरा खंड भारतीय इस्लाम और इसकी विभिन्न व्याख्याओं से संबंधित है, जिसमें 'गांधी के मुसलमान', 'हिंदुत्व के मुसलमान', 'सैयद शहाबुद्दीन के मुस्लिम भारतीय', 'असगर अली इंजीनियर के सर्वहारा मुसलमान' और 'मुशीर-उल-हसन के धर्मनिरपेक्ष' जैसे उप-खंड हैं. चौथा और अंतिम खंड- 'मुस्लिम राजनीति, चुनावी राजनीति: एक वैकल्पिक दृष्टिकोण' पर केंद्रित. यह खंड सांप्रदायिक हिंसा और उसके वैधीकरण और 2019 के बाद मुसलमानों के साथ हिंदुत्व के व्यवहार के विशिष्ट संदर्भ में जिस तरह से राजनीति ने आकार लिया है, उसका विस्तृत विश्लेषण भी प्रस्तुत करता है.
- प्रकाशक: सेतु प्रकाशन
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* 'गांव के राष्ट्रशिल्पी' - नीलम गुप्ता
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्वप्न था कि आज का युवा अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गांवों के उत्थान के लिए कार्य करे. ग्रामशिल्पी कार्यक्रम गुजरात विद्यापीठ का एक अति विशिष्ट कार्यक्रम है, जो महात्मा के उसी स्वप्न को मूर्त रूप प्रदान करने की दिशा में प्रयास कर रहा है. इस पुस्तक में लेखिका ने गहन शोध के पश्चात प्रभावी शैली में ग्रामशिल्पी कार्यक्रम का तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत किया है. पुस्तक में गुजरात के ग्रामीण जीवन, आदिवासी जीवन और सांस्कृतिक परिवेश की झलक भी दिखाई देती है. दो खंडों की पुस्तक में ग्रामशिल्पी कार्यक्रम के सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों ही पक्षों को सम्मिलित किया गया है. पुस्तक ग्रामशिल्पियों के कार्यों की विशेषता तथा उनकी चुनौतियों का भी विस्तृत उल्लेख करते हुए ग्रामशिल्पी कार्यक्रम को किस प्रकार लोकशक्ति के रूप में विकसित कर समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाए, इस संबंध में महत्त्वपूर्ण सुझाव भी देती है.
- प्रकाशकः गुजरात विद्यापीठ
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* 'भारतीय राष्ट्रवाद: एक अनिवार्य पाठ' - एस इरफ़ान हबीब
भारतीय राष्ट्रवाद जिस रूप में आज हमारे सामने है, उसे वजूद में आए सौ साल से ज़्यादा हो गए हैं. यह पुस्तक उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से भारत में राष्ट्रवाद के उदय, विकास और इसके विभिन्न रूपों और चरणों की पड़ताल भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण चिंतकों और नेताओं के विचारों के माध्यम से करती है. संकलन में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं और चिंतकों के लेख और भाषण-अंश हैं. पुस्तक आज की परिस्थितियों में एक सर्वसमावेशी, स्वतंत्र और मानवीय राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए उसी राष्ट्रवाद को समझने और आगे बढ़ाने पर बल देती है. इसमें 'महादेव गोविन्द रानाडे', 'सुरेन्द्रनाथ बनर्जी', 'बाल गंगाधर तिलक', 'लाला लाजपत राय', 'बिपिन चन्द्र पाल', 'श्री अरबिन्दो', 'अल्लामा इक़बाल', 'मौलाना हुसैन अहमद मदनी', 'रवीन्द्रनाथ टैगोर', 'सरोजिनी नायडू', 'प्रफुल्ल चन्द्र राय', 'महात्मा गांधी', 'सरदार वल्लभ भाई पटेल', 'जवाहर लाल नेहरू', 'बीआर आंबेडकर', 'सी राजगोपालाचारी', 'सुभाषचन्द्र बोस', 'भगत सिंह', 'एमएन रॉय', 'मौलाना अबुल कलाम आज़ाद', 'ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान', 'ख़्वाजा अहमद अब्बास' और 'जयप्रकाश नारायण' के लेख शामिल हैं.
अंग्रेजी से अनुवाद: प्रभात सिंह, जितेंद्र कुमार, अभिषेक श्रीवास्तव, अशोक कुमार पाण्डेय, अर्जुमंद आरा और श्रीप्रकाश.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
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* 'टिहरी की जलसमाधि: एक दस्तावेज' - महिपाल सिंह नेगी
यह पुस्तक टिहरी राजशाही के समय टिहरी नगर बसाए जाने से शुरू होकर टिहरी की डूब जाने तक की कथा कहती है. पुस्तक के माध्यम से हम टिहरी बांध के बनने और पलायन-विस्थापन की कथा को जीवंत महसूस कर सकते हैं. लेखक ने तीन दशक से अधिक समय तक जुटाए गए तथ्यों के माध्यम से जल विद्युत परियोजनाओं से जुड़े पूरे तंत्र और इन सबके बीच विस्थापन को मजबूर आम जनमानस की स्थिति को समझने का प्रयास किया है. एक दस्तावेज और मार्मिक संस्मरण के माध्यम से लेखक डूब चुकी गलियों और मोहल्लों के बीच टहलता प्रतीत होता है, जहां उसने कभी जिंदगी के हसीन वक्त गुजारे थे. पुस्तक पुरानी टिहरी से नई पीढ़ी को मुखातिब कराते संग्रहालय सरीखी है.
प्रकाशकः समय साक्ष्य पब्लिकेशन
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* 'डूबते हुए प्यासे शहर' - पंकज चतुर्वेदी
जल प्रंबधन की सरकारी नीतियों को कठघरे में खड़ा करती यह पुस्तक बताती है कि विकास के नाम पर पारंपरिक जल प्रणालियों के साथ की गई छेड़छाड़ ने जो विकराल समस्या खड़ी कर दी है, उससे दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, भोपाल, चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, पटना और बेंगलुरू जैसे शहर पानी के संकट के प्रतीक बन चुके 'केपटाउन' बनने की राह पर हैं. यही नहीं पानी की दो बूंद को तरसने की ओर अग्रसर ये शहर बरसात की इतनी ही बूंदों के गिरने से डूबने-उतराने भी लगते हैं. लेखक चेताता है कि अगर हम जल संकट का वास्तविक समाधान करना चाहते हैं तो हमें स्थानीय समाज के सहयोग से पारंपरिक जल प्रणालियों को पुनर्जीवित करने की कोशिश करनी होगी. इस प्रक्रिया में सबसे पहले हमें बारिश की हर बूंद को सहेजने पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा. लेखक ने ग्यारह अध्यायों के माध्यम से जल संकट और भारत की विभिन्न नदियों की वर्तमान स्थिति पर विस्तार से चर्चा की है.
- प्रकाशक: अद्विक पब्लिकेशन
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* 'तुम पहले क्यों नहीं आए' - कैलाश सत्यार्थी
सत्य कथाओं पर आधारित ये कहानियां अंधेरों पर रौशनी की, निराशा पर आशा की, अन्याय पर न्याय की, क्रूरता पर करुणा की और हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती हैं. लेकिन जीत का यह रास्ता बहुत लम्बा, टेढ़ा-मेढ़ा और ऊबड़-खाबड़ रहा है. उस पर पीड़ा, आशंका, डर, अविश्वास, अनिश्चितता, ख़तरों और हमलों के बीच इन कहानियों के नायक और लेखक, वर्षों तक साथ-साथ चले हैं. इसीलिए इनमें एक सहयात्री की बेचैनी, उत्तेजना, कसमसाहट, झुंझलाहट और क्रोध के अलावा आशा, सपनों और संकल्प की अभिव्यक्ति भी है. पुस्तक में ऐसी बारह सच्ची कहानियां हैं जिनसे बच्चों की दासता और उत्पीड़न के अलग-अलग प्रकारों और विभिन्न इलाक़ों तथा काम-धंधों में होने वाले शोषण के तौर-तरीक़ों को समझा जा सकता है. जैसे; पत्थर व अभ्रक की खदानें, ईंट-भट्ठे, क़ालीन कारख़ाने, सर्कस, खेतिहर मज़दूरी, जबरिया भिखमंगी, बाल विवाह, दुर्व्यापार, यौन उत्पीड़न, घरेलू बाल मज़दूरी और नरबलि आदि. नोबेल पुरस्कार विजेता की कलम से निकली ये कहानियां आपको और अधिक मानवीय, और ज़्यादा ज़िम्मेदार बनाती हैं.
- प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन
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* 'प्रतिरोध का स्त्री-स्वरः चयन-संपादन' - सविता सिंह
विचार-आंदोलन कड़ी में यह पहली पुस्तक है, जो कविता विधा में होते हुए भी यहां स्थान बना सकी है. इसकी वजह यह है कि इस संकलन की कविताएं शक्ति की ऐसी सभी संरचनाओं के विरुद्ध प्रतिरोध की कविताएं हैं, जो स्त्रियों को उनके अधिकार से वंचित करती हैं. वह चाहे पितृसत्ता हो, धार्मिक सत्ता, जातिवादी या राजनीतिक सत्ता हो. कहा जा सकता है कि ये कविताएं अस्मिता विमर्श की सीमाओं का अतिक्रमण करती हैं या उसकी परिधि को और व्यापक बनाती हैं. ये विचारों पर फैल रहे कोहरे को भेदने की कोशिश हैं. घर से दफ़्तर तक, संसद से सड़क तक, सचिवालय से न्यायालय तक सारी जगह इनकी निगाह की हद में है. इन कविताओं में बोलने वाली स्त्री मानती है और जानती है कि उसका प्रतिनिधित्व करने का दावा करती सरकार उसकी नहीं है. ये कविताएं स्त्री की स्वतन्त्रता की व्यापक परिभाषा रचती हैं. वहां सवर्ण और दलित स्त्री के भेद के सवाल भी हैं और यह समझदारी भी कि राजनीतिक लोकतंत्र जब सामाजिक लोकतन्त्र में परिवर्तित होगा तभी सफल होगा. कवि राजेश जोशी की यह टिप्पणी इस संग्रह के इस सूची में होने की गवाही देती है.
- प्रकाशक: राधाकृष्ण प्रकाशन
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वर्ष 2023 के 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' में शामिल सभी पुस्तक लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों और प्रिय पाठकों को बधाई!