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औरतों की जिंदगी के स्याह-सफेद पहलुओं का 'नीला स्कार्फ'

औरतों की जिंदगियों के कई रंगों को अपने में संजोए हुए है किताब 'नीला स्कार्फ'. इस किताब में दूसरों के घर में काम करने वाली स्त्री की कहानी है तो दफ्तर में काम करती स्त्री की भी. कहीं प्रेम के मायाजाल में उलझी स्त्री है तो अस्तित्व के लिए अपनों से लड़ती स्त्री भी. स्वयं में इतराती स्त्री है तो नियति को अपना भाग्य मान बैठी स्त्री भी.

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neela scarf
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किताबः नीला स्कार्फ
लेखिकाः अनु सिंह चौधरी
कीमतः 100 रुपये
पब्लिशरः हिन्द युग्म

औरतों की जिंदगियों के कई रंगों को अपने में संजोए हुए है किताब 'नीला स्कार्फ'. इस किताब में दूसरों के घर में काम करने वाली स्त्री की कहानी है तो दफ्तर में काम करती स्त्री की भी. कहीं प्रेम के मायाजाल में उलझी स्त्री है तो अस्तित्व के लिए अपनों से लड़ती स्त्री भी. स्वयं में इतराती स्त्री है तो नियति को अपना भाग्य मान बैठी स्त्री भी.

'नीला स्कार्फ' अनु सिंह चौधरी का कहानी संग्रह है. इसकी नायिकाएं गांव में रहने वाली सामान्य महिलाएं हैं तो शहर की कथित आजादी में जीने वाली मेट्रो सिटी की लड़कियां भी. इसमें बॉयफ्रेंड से पिटने के बाद भी उससे शादी करने वाली 'मॉडर्न' लड़की लिली है, तो पति के कहने पर किसी और के साथ हमबिस्तर होने को तैयार होने वाली बिसेसर बो भी. अलग-अलग पृष्ठभूमि की होने के बावजूद महिलाओं के किरदार किन स्याह-सफेद गलियों से होकर निकलते हैं, समझना हो तो यह किताब पढ़िए.

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इन महिला किरदारों में जो नहीं बदलता है, वह है उदासी. हर कहानी में 'अपनों' से ही ना समझे जाने के दुख की उदासी है. कुल मिलाकर हर कहानी में विलेन एक पुरुष है जो कहानी की नायिका को समझ नहीं पाता. चाहे वो बिसेसर बो का पति हो या शांभवी का पति अमितेश. लेकिन कई कहानियां पढ़कर तब खुशी मिलती है जब ये नायिकाएं अपने दिल की आवाज सुनती हैं और पुरुषों की संवेदनहीन गुलामी के दायरे को तोड़कर आजाद होती हैं. इसे आप कहानी 'रूममेट' से भी समझ सकते हैं. रूममेट असीमा की दी हुई हिम्मत की बदौलत ही लिली अपने मंगेतर से शादी तोड़ने की हिम्मत जुटा पाती है.

किताब में कुल 12 कहानियां हैं. भाषा सरल, सहज और बोलचाल की है. किताब में एक कहानी है 'नीला स्कार्फ' जिसमें नायिका अपने ही पति के कहने पर अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी कुर्बान कर देती है. गांव में काम करने वाली महिला है, नाम है बिसेसर बो. उसका पति बिसेसर अपनी पत्नी का सौदा मालिक से साथ हमबिस्तर होने के लिए करता है. बिसेसर बो मालिक के पास जाती भी है. लेकिन कहानी में टविस्ट तब आता है जब बिसेसर बो बताती है, 'कह दिए हम बड़का बाबू को, हाथ एक ही शर्त पर लगाने देंगे, उनकी प्यास जितनी बड़ी बड़की कनिया (मालिक की पत्नी) की भी प्यास है. बड़की कनिया को बिसेसर दे दो एक रात के लिए, तुम बिसेसर बो को रख लो चाहे कितनी ही रातों के लिए.'

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किताब की ज्यादातर कहानियां आपको बांधे रखेंगी. कहानी 'कूछ यूं होना उसका' में सुश्रुता की टीचर को आखिर तक पता नहीं चलता कि उसका व्यवहार खराब क्यों है. बाद में पता चलता है कि भाई की आत्महत्या की बात घर वालों पर इतनी ज्यादा हावी है कि सुश्रुता का वजूद छोटा पड़ जाता है और उसे उसके हिस्से का प्यार नहीं मिलता.

किताब की लेखिका अनु सिंह चौधरी ‘गांव कनेक्शन’ नाम के एक ग्रामीण अखबार की कन्सल्टिंग एडिटर हैं. वह रेडियो के लिए भी कहानियां लिखती हैं और अब उपन्यास लिखने की तैयारी कर रही हैं. साथ ही वह हार्पर कॉलिन्स (हिंदी) की कन्सल्टिंग एडिटर भी हैं.

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