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रिश्तों को जोड़ती, संवारती 'ज़िंदगी' की समीक्षा

रिश्तों को जोड़ती, संवारती ‘जिन्दगी’ की समीक्षा कर रहा हूं तो पाता हूं कि संजय का यही मानना है कि मनुष्य भावनाओं से संचालित होता है कारणों से नहीं, कारणों से तो मशीनें चलती हैं.

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संजय सिन्हा की किताब ज़िंदगी का कवर पेज
संजय सिन्हा की किताब ज़िंदगी का कवर पेज

किताबः ज़िंदगी
लेखकः संजय सिन्हा
मूल्यः 195 रुपये
प्रकाशकः प्रभात प्रकाशन

‘अब तो है तुमसे जिन्दगी अपनी’ यह एक कविता की पंक्ति नहीं बल्कि संजय सिन्हा के जीवन का सार है, मकसद है. हर रोज संजय फेसबुक पर अपनी जिन्दगी के अनुभवों से जुड़ी कहानियां लिखते हैं. उन्हीं अनुभवों को ‘जिन्दगी’ पुस्तक में संजोया है संजय सिन्हा ने. मैंने जिन्दगी किताब को प्रारंभ से अंत तक कई बार पढ़ा. कई जगह पढ़ते-पढ़ते खो सा गया. बहुत सी बातें मुझे अपने भोगे हुए यथार्थ से रूबरू करा गईं. पुस्तक जिन्दगी अद्भुत है.

इसका विमोचन जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया तो पटना में विमोचन के गवाह लगभग दस हजार लोग थे. मुझे संजय की ‘रिश्ते’ किताब की समीक्षा का भी अवसर मिला और अब रिश्तों को जोड़ती, संवारती ‘जिन्दगी’ की समीक्षा कर रहा हूं तो पाता हूं कि संजय का यही मानना है कि मनुष्य भावनाओं से संचालित होता है कारणों से नहीं, कारणों से तो मशीनें चलती हैं.

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संजय की भावुकता, रिश्तों के प्रति आत्मीयता और समर्पण का जीता-जागता उदाहरण थी पुस्तक ‘रिश्ते’ जिसने हर किसी का दिल जीता और ब्रिकी का कीर्तिमान स्थापित किया. तीन महीने में ही तीन संस्करण प्रकाशक ने छापे क्योंकि पाठकों की मांग थी. ‘जिन्दगी’ किताब ‘रिश्ते’ की अगली कड़ी है जिसमें लेखक के अपने अनुभव हैं, अपनी कहानियां हैं. उल्लेखनीय बात यह है कि आज जब हिन्दी के बाजार में खरीददार कम हो रहे हैं तब किताब लिखना इस बात का जीवंत प्रमाण है कि आज भी अच्छा कंटेंट (विषय वस्तु) अपनी जगह खुद बना लेता है.

संजय सिंहा की लेखनी में मां और भाई को रिश्तों में सबसे ज्यादा अहमियत दी है. 'जिन्दगी' पुस्तक को संजय ने मां से प्रारंभ करके मां की अहमियत पर ही समाप्त किया है. संजय ने पुस्तक में स्वयं स्पष्ट किया है कि जिस पहली महिला ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया था वह मेरी मां ही थी. मैं मां को कभी खुद से दूर नहीं होने देना चाहता था इसलिए चार पांच साल की उम्र में मां से कहा था कि मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं. मां हंस पड़ी थीं, कहने लगीं मैं तुम्हारे लिए परीलोक से राजकुमारी लाऊंगी. मैं कह रहा था कि मां तुमसे सुंदर कोई और हो ही नहीं सकता. आगे भी संजय ने स्पष्ट किया है कि मृत्यु से एक रात पहले मां ने मुझे बताया था कि वह कल चली जाएगी. मैंने मां से पूछा था तुम चली जाओगी, फिर मैं अकेला कैसे रहूंगा. मां ने कहा था, मैं तुम्हारे आस-पास रहूंगी. हर पल.

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'जिन्दगी' किताब में मां को सर्वोपरि रखा है संजय ने. उनकी पुस्तक जिन्दगी का ही यह अंश अति मार्मिक है 'कहते हैं रामकृष्ण परमहंस को पत्नी में मां दिखने लगी थीं. एक औरत में मां का दिखना ही चेतना का सबसे बड़ा सागर होता है. संसार की हर औरत को इस बात के लिए गौरवान्वित होने का हक है कि वह मां बन सकती है. उसके पास अपने भीतर से एक मनुष्य को जन्म देने का माद्दा है. उसे बहुधा इस काम के लिए किसी पुरूष की भी दरकार नहीं.'

संजय ने अपनी किताब जिन्दगी में कई तरह के नए प्रयोग किए हैं. जैसे कि चैप्टर के स्थान पर तारीख दी है. यह अपने आप में एक नायाब प्रयोग है. जब कभी आप किसी उलझन में हों या आपका मन उदास हो तो मेरा दावा है कि कोई भी दो पन्ने की कहानी को पढ़कर आपको सुकून जरूर मिलेगा.

'जिन्दगी' में संजय ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि मां ने ही तो फेसबुक पर लोगों से मिलने की सलाह दी थी. उसी के परिणाम स्वरूप संजय को कई मां, भाई, बहन, दोस्त और रिश्तों का पूरा कारवां मिला और वह फेसबुक पर नियमित रूप से पोस्ट करने लगे. तारीख 21 नवंबर से 'जिन्दगी' किताब की शुरूआत है. लेखक छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से बड़ा संदेश देते हैं. पहले भरोसा करके आजमाने वाले व्यक्तियों के विषय में संजय कहते हैं कि वह प्रायः तन्हा रह जाते हैं क्योंकि वह भावनाओं से संचालित होते हैं.

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फेसबुक पर लिखना संजय की दिनचर्या में शामिल है. फेसबुक पर ही तो अंजान से अंजान रिश्तों के तार झंकृत होते हैं. आदमी चाहे कितना कुछ कर ले, एक दिन सब छूट जाएगा. रह जाएंगे तो बस रिश्ते. तन की नजदीकियां जब मन की नजदीकियों में तब्दील होती हैं तभी रिश्ता सच्चा और प्यार भरा होता है. अपने और पराए का भेद भी संजय ने लोभी और सोने के उदाहरण से उभार दिया है. 'अपनों की चोट मन तक लगती है. शरीर की तकलीफ आदमी सह जाता है पर मन की चोट से आदमी बिलबिला जाता है'.

जिन्दगी पुस्तक में हमारे मन के सभी गवाक्षों को खोल दिया है. हमारी जिन्दगी बहुत ही आसान सी होती यदि हम मन का कैंसर खुद ही बोकर जिन्दगी को श्राप न बना दें. याद रखिए जिन्दगी सिर्फ हमारी अमानत नहीं उस पर बहुतों का अधिकार है और उस अधिकार को छीनने का हक किसी को नहीं. हम जिन्दगी से प्यार करें और उसे बांधने का प्रयास न करें. प्रेम तो समर्पण है बंधन नहीं. समर्पण से ही खुशी मिलती है. संजय यहां भी मां के आभारी हैं. मां ने कहा था, खुश रहोगे तो बाकी चीजें खुद ब खुद मिलने लगेंगी.

संजय को अपनी मां हर पल अपने पास ही नजर आईं. घर के पौधों के सूखने पर पत्नी का कथन 'जिस आदमी की रूह में बुराई समाहित हो जाती है, उससे छुटकारा बहुत मुश्किल होता है.' संजय को याद आती है मां, जो कहती थीं बस आदमी का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता.

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फेसबुक पर पोस्ट करते-करते संजय के अपनों की फेहरिस्त भी लंबी हुई है और जिन्दगी के अनुभव भी. जीवन में रिश्ते बहुत अहम होते हैं इसलिए प्यार बांटिए. जिन्दगी संदेश देती है कि रिश्तों में खुद को नियंत्रण में रखिये तभी भरोसा पनपेगा. जीवन में बहुत से काम पूरे करने हों तो भी ऐसे लोगों की प्रशंसा कभी न करें जो उसके हकदार नहीं, वर्ना एक दिन वह अपने साथ आपको भी ले डूबेंगे.

मां का साथ संजय ने कहीं नहीं छोड़ा. अमिताभ बच्चन से मुलाकात में जब अमिताभ ने संजय से पानी का गिलास लेकर पीठ पर हाथ रखकर खुश रहो कहा तो मां के साथ घटी ऐसी ही घटना संजय को याद दिला गई कि अच्छी भावना के साथ किए गए काम से आशीर्वाद अवश्य मिलता है.

फेसबुक से जुड़े एक बुजुर्ग का दर्द भी जिन्दगी में बड़ी सहजता से बयां किया गया है कि अगर आप अपने माता-पिता का सम्मान करेंगे तभी आप सम्मान पाने के हकदार हैं. रिश्ते, मन के भाव होते हैं इन्हें जीने की कोशिश कीजिए. बड़ों का सम्मान कीजिए. जब आपको हमेशा यह अहसास रहता है कि कोई आपके साथ है तो आत्मबल बढ़ता है और यही आत्मबल कामयाबी दिलाता है. टूटा हुआ रिश्ता कभी जुड़ता नहीं तो फिर रिश्ते को सहेजिए प्यार से, दुलार से, उसे तोड़िए मत.

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'जिन्दगी' किताब में आखिरी तारीख है 31 मार्च. संजय के ही शब्दों में 'शादी के बाद जो भी मेरी पत्नी से मिला, सबने कहा यह तुम्हारी मां का पुनर्जन्म है और आज उसी का जन्म दिन है. विरोधाभासों और कल्पनाओं के अथाह समंदर का नाम जिन्दगी है.

यह मेरी समझ से परे है कि इस किताब को किस श्रेणी में रखा जाए– इसे रहस्यमय कहें, रोमांच कहें या कुछ और लेकिन इतना जरूर है कि संजय सिन्हा ने सिर्फ शब्दों के साथ अपने प्रयोग को अंजाम नहीं दिया बल्कि पूरी लेखन शैली ही अपने आप में एक प्रयोग है. मन को छू लेने वाली संजय की पुस्तक जिन्दगी अपने आप में अपूर्व है.

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