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बुक रिव्‍यू: मौजूदा समाज की पड़ताल करती कहानियों का संग्रह है 'जिद्दी रेडियो'

'जिद्दी रेडियो' युवा लेखक पंकज मित्रा का ताजातरीन कहानी संग्रह है. इसमें 10 कहानियां हैं, जो समाज के मौजूदा हालात की जीती-जागती तस्‍वीरें पेश करती हैं. लेखक ने इन कहानियों के जरिए कई ज्‍वलंत मुद्दे उठाए हैं.

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यथार्थ की पड़ताल करती 10 कहानियां...
यथार्थ की पड़ताल करती 10 कहानियां...

किताब: जिद्दी रेडियो
लेखक: पंकज मित्र
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
कीमत: 250 रुपये (सजिल्‍द)

'जिद्दी रेडियो' युवा लेखक पंकज मित्र का ताजातरीन कहानी संग्रह है. इसमें 10 कहानियां हैं, जो समाज के मौजूदा हालात की जीती-जागती तस्‍वीरें पेश करती हैं. लेखक ने इन कहानियों के जरिए कई ज्‍वलंत मुद्दे उठाए हैं. वैसे सवाल, जिनका सामना हर किसी को अपने जीवन में या तो करना पड़ता है या इन्‍हीं सवालों के जवाब वह औरों को ढूढते हुए देखता है.

मसलन ‘एक चुप्‍पे की चुपकथा’ में एक सरकारी कंपनी है, उसके नए-पुराने कर्मचारी हैं. कोई जरूरत से ज्‍यादा कर्मठ है, तो कोई दूसरे के काम को ही ‘अपने खाते में’ डालने में माहिर है. गरीबी से जूझते, पर ईमान के धनी एक्‍का जी हैं, जो अपने कर्तव्‍य की बलिवेदी पर काल-कलवित हो जाते हैं. इशारों ही इशारों में रिश्‍तों की उलझनें भी परोसी गई हैं, जिसकी हकीकत किसी को नहीं मालूम, फसाना सबकी जुबां पर है.

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‘पप्‍पू कांट लव सा...’, ‘चमनी गंझू की मुस्‍की’, ‘जोगड़ा’, ‘कस्‍बे की एक लोककथा बतर्ज बंटी और बबली’, ‘बिलौती महतो की उधारफिकिर’ आदि में जीवन के हर रंग बेहद संजीदगी से उकेरे गए हैं. हर कहानी में आंचलिक बोलियों का बखूबी इस्‍तेमाल किया गया है.

क्‍यों न पढ़ें:
अगर खड़ी बोली के अलावा अन्‍य क्षेत्रीय बोलियों से अब तक आपका सामना न हुआ हो, तो यह किताब आपके लिए बोझिल साबित हो सकती है. ‘सब छगरी-मुर्गी मोर (मर) गेले. एगो-दूगो बचलो, खा गेलियो, हमरिन से थोड़े होतो इ सब काम...’ जैसे वाक्‍यों के अर्थ समझने के लिए माथे पर विशेष बल डालना पड़ सकता है. ग्राम्‍य व कस्‍बाई जीवन का यथार्थ परोसने और पात्रों को जीवंत बनाने के क्रम में थोड़ी भाषाई जटिलता आ गई है.

कुल मिलाकर यह संग्रह आम आदमियों की जिंदगी की तस्‍वीरें पेश करता है, जो कहानी के ढांचे में यथार्थ के बेहद-बेहद करीब मालूम पड़ता है.

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