हर हाल बेगाने
लेखिकाः मृदुला गर्ग
प्रकाशकः राजपाल
मूल्यः 165 रु.
पुस्तक सार: विदेशों में बसे भारतीयों की आकांक्षाओं और संवेदना का बयान करती कहानियां
हमारे देश में विदेश की ललक बहुत ज्यादा है. फिर चाहे वह विदेशी सामान हो या फिर विदेशी मेहमान. जबकि इस पहलू का एक ऐसा सच है जिसकी ओर नजर नहीं जाती. मगर कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें हंसते हुए चेहरे के पीछे की त्रासदी देखने का हुनर आता है. मृदुला गर्ग का शुमार ऐसे ही लोगों में किया जाता है. हर हाल बेगाने उनकी ऐसी ही मर्मस्पर्शी कोशिश है. इसमें उन्होंने उन लोगों को टटोला है, जिनका ताल्लुक किसी न किसी रूप में विदेश से है.
12 कहानियों के इस संग्रह में गर्ग ने बड़ी ही सादगी के साथ उस जज्बात को सहलाया है जिसके साथ हमारे मुल्क की एक बड़ी आबादी जिंदगी बसर कर रही है. फिर चाहे वह किसी के लिए एनआरआइ दूल्हे की चाहत हो या फिर विदेशी जमीन पर जा बसे आप्रवासी, जो अपनी जड़ों के नजदीक आने के लिए हर दम छटपटाते रहते हैं. वे बेशक भारत की हदों से दूर हैं लेकिन एक हिंदुस्तानियत उनके दिल में हर पल सांस लेती है. श्एक और विवाह्य और ''अगर यों होता'' कहानी के किरदारों में गर्ग ने एक ऐसी स्त्री के मन को टटोला है, जो खुद से उस दंश को नहीं निकाल पाती जिससे उसे अपने वजूद के खो जाने का भ्रम हो चुका है. लेकिन ''लौटना और लौटना'' कहानी में एक हिंदुस्तानी माता-पिता और उनके विदेश की हवा खा चुके पुत्र की मानसिकता का सटीक चित्रण है जो पाठक मन को पूरी शिद्दत से झकझोर देता है. तो ''उर्फ सैम'' का किरदार अपनी मजबूरी से टकराने की बजाए उससे बचने के बहाने ढूंढता दिखाई देता है. दूर देशों में बसे भारतीयों की कहानियों में गर्ग ने अपनी शैली और किस्सागोई को इस कदर प्रवाहित किया है कि हम उसमें बहते चले जाते हैं. शब्दों की रूपरेखा और छोटे-छोटे वाक्य कई बार बहुत तीखे हो जाते हैं, जो लेखिका के मन के उद्गारों की गवाही देते हैं.