कवि त्रिलोचन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण आधार स्तंभों में से एक है. आज के दौर में उन्हें याद करना बहुत महत्वपूर्ण है. उनकी रचनाएं मुखर है और बेबाक बोलती है.
त्रिलोचन की महत्वपूर्ण रचना 'ताप के ताये हुए दिन' से चुनी हुई तीन रचनाएं
1. हम साथी
चोंच में दबाए एक तिनका
गौरय्या
मेरी खिड़की के खुले हुए
पल्ले पर
बैठ गई
और देखने लगी
मुझे और
कमरे को.
मैंने उल्लास से कहा
तू आ
घोंसला बना
जहाँ पसन्द हो
शरद के सुहावने दिनों से
हम साथी हों.
2. ताप के ताए हुए दिन
ताप के ताए हुए दिन ये
क्षण के लघु मान से
मौन नपा किए.
चौंध के अक्षर
पल्लव-पल्लव के उर में
चुपचाप छपा किए.
कोमलता के सुकोमल प्राण
यहाँ उपताप में
नित्य तपा किए.
क्या मिला-क्या मिला
जो भटके-अटके
फिर मंगल-मंत्र जपा किए.
3. काठ की हांडी
चढ़ती नहीं दुबारा कभी काठ की हांडी
एक बार में उसका सब-कुछ हो जाता है,
चमक बढ़ाती और कड़ा रखती है मांडी
कपड़े में जब पानी उसको धो जाता है
तब असलियत दिखाई देती है, अधिया की
खेती और पुआर की अगिन आँखों को ही
भरमाती है, धोखाधड़ी, अनर्थ-क्रिया की
होती हैं पचास पर्तें. मैं इसका मोही
कभी नहीं था, यहाँ आदमी हरदम नंगा
दिखलाई देता है, चोरी-सीनाज़ोरी
साथ-साथ मिलती है, निष्कलंकता गंगा
उठा-उठा कर दिखलाती जिह्वा झकझोरी
आस्था जीवन में विश्वास बढ़ाता है जो
वही बटाई में जाता है खंड-खंड हो.
त्रिलोचन के बारे में
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में कटघरा पट्टी के चिरानी पट्टी में 20 अगस्त 1917 को जन्मे त्रिलोचन का मूल नाम वासुदेव सिंह था. त्रिलोचन उनका उपनाम था. उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है. त्रिलोचन जी को कविता संग्रह 'ताप के ताये हुए दिन के लिए' 1981 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. इसके अलावा शलाका सम्मान सहित अनेकों अन्य प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से विभूषित. उनकी मुख्य रचनाओं में धरती (1945), गुलाब और बुलबुल (1956), दिगंत (1957), ताप के ताये हुए दिन (1980), शब्द (1980), उस जनपद का कवि हूँ (1981), अरघान (1984), तुम्हें सौंपता हूँ (1985), चैती (1987) शामिल है.